Tuesday, April 26, 2011

परियों की रानी.....अनुष्का

























ओ लाडली, मेरी छैल छबीली
तितलियों सी है चंचल, फूलों सी रंगीली

परियों की रानी, ओ राजदुलारी

तेरी अदाएँ, जहां से निराली

मेरे अंगना में चहके है, चिड़ियों सी ऐसे
मधुर संगीत घोले है, कानों में जैसे

मुस्कराहट सलोनी, लगे प्यारी प्यारी
देख देख मैं तुझको, जाऊं वारी वारी

तू किरणों सी उज्वल, गीतों सी रसीली
है नदियों निश्छल, पर्वतों सी हठीली

मेरे जीवन की आशा, इन नयनो का सपना
तुझको पाकर लगा, सारा संसार अपना

है सबकी तू प्यारी, मेरे मन की सहेली
तेरे संग संग तो, मैं भी खिलौनो से खैली

नन्हे कदमो से तेरे, नाचे मेरी खुशियाँ
तेरे आने से रोशन हुई मेरी दुनियाँ

मेरे जीवन का अनमोल धन मेरी छोटी सी बिटिया अनुष्का आज ४ साल की हो गई है ....इस खास दिन पर मेरे मन के भाव कुछ इस तरह से उभरे .....जन्मदिन मुबारक हो परियों की रानी अनुष्का !!

Tuesday, March 22, 2011

सन्नाटे का शोर

क्या सुन पाते हो
तुम भी कभी
इन खामोश लम्हों में
छिपे अथाह
सन्नाटे का शोर
जो पल पल मुझे
तिल तिल तड़पाता है

गीली आँखों से मैं
जब जब खिड़की से
ताकती हूँ चाँद को तो
भीगा भीगा सा ही
मुझे  चाँद भी
नज़र आता है


हिज़्र की लम्बी
रातों में चिंघाड़ती
तन्हाइयों की सदा
जब घनघोर अन्धियारें
काले बादलों
के गर्जन
सी भयानक
लगती है  तब
होने लगते है
अचानक सैकड़ों  
आघात दिल पर
यादों की बिजलियों
के प्रहारों से


ऐसी तूफानी रातों में
अक्सर बंद कमरे में
भयंकर
बरसात हुआ करती है
जिसमे बह जाते है
अनंत सपने, आशाएं और
विश्वास मन का

भोर होते ही
समेट कर खुद में
इन तूफानी बरबादियों
के निशा मैं एक
नये तूफान का 
इंतज़ार करती हूँ
 
क्या सच
नहीं देख पाते
तुम कभी
इन बरबादियों की
कसक इनके 
गहरे निशान
जो मेरे दिल पर
चस्पा है
जिन्हें  मैं चाह कर भी
छुपा नहीं पाती ....!!!!!

Sunday, March 13, 2011

क्या नाम दें?

अहसासों का इक बंधन
जहाँ बिन बोले ही
सुनाता है  मन ....
न नज़र मिले,न ख़बर मगर
दिल का दर्द
समझ में आता है
दुःख में दुःख
खुशियों से खुशियाँ
मुश्किल में मन घबराता है 

न कहे कभी
पर दिल के गीले
शब्द सुनाई देते है
मिले नहीं पर रूह के
रूखे ज़ख्म
दिखाई देते है
तन्हाई के
चुभते पलों में
मन में मख़मल सा 
अहसास लगे 
दुरी मीलों की फिर भी 
हर पल दिल को 
दिल के पास लगे ...

इस रिश्ते का
कोई नाम नहीं
मगर दुआओं का 
हिस्सा-नाता है
भला- बुरा
सब सच्चा लगे
जब कोई मन से
मन को भाता है 


अनुभूतियों के
कोमल धागे को
और कितने
नए आयाम दें ....
मन से मन के
इस नाते को
मन सोचता है 
क्या नाम दें ??

Friday, January 21, 2011

मृग मरिचिका

यथार्थ और परिकल्पनाओं के अधर
भावनाओं के सागर में उठती लहर
सत्य समझ छद्म आभासों को
पाने को लालायित हुआ ह्रदय
समक्ष यथार्थ के आते ही
आभास क्षणभर में हुआ विलय
तड़पता तरसता व्यथित मन
नित्य प्रतिक्षण बढ़ती तृष्णा का सार पाना चाहता है
अंतरतम की इस तृष्णा से पार पाना चाहता है

होता प्रतीत यथार्थ सा किन्तु
आभास सदा आभास ही तो है
जब लोभ सरिता तट पर गए तो
जो हाथ लगा वो प्यास ही तो है
कर दूर सभी छद्म भ्रांतियाँ
चेतना संचार, विवेक के आधार संग 
काट कर व्यर्थ जंजाल सभी
आशा निराशा के भँवर के उस पार जाना चाहता  है
इस अंतरतम की तृष्णा से पार पाना चाहता है

जब दूर खड़े हो पर्वत से देखा
शीतल, स्वच्छ सरोवर पाया
जब प्यास बुझाने गए पास तो
न बूंद नीर का कही पर पाया
छद्म सरोवर यह आभासी, आभासी ये संसार  है
आभासी सब रिश्ते नाते आभासी प्यार,दुलार है
छल आभास की परिभाषा को
शास्वत सत्य, अटल, अविरत आधार पाना चाहता है
इस अंतरतम की तृष्णा से पार पाना चाहता है

कचोट कर मन से अवसाद सभी
चिर कर अभ्र यह अंधकारमयी
निष्ठा व कर्म के साध पंख
जाना चाहता है परिकल्पनाओं के पार मन
जहाँ उड़ सके चेतना की एक सच्ची उड़ान
यथार्थ के अनन्त विशाल नभ में 
जहाँ मिल पाए व्याकुल पंछी को प्राण 
परम शांति, परम तृप्ति का वह द्वार पाना चाहता है
इस अंतरतम की तृष्णा से पार पाना चाहता है