Friday, January 29, 2010

ननिहाल की यादें (बाल गीत)


हेलो हेलो ज़रा फ़ोन लगाना

हेलो हेलो ज़रा फ़ोन लगाना
याद मुझे आते है नाना
नानी, मामा और है भैया
छोटे से गावं ठौड़ की छैया

हेलो हेलो ज़रा फ़ोन लगाना
याद मुझे आते है नाना ...

मेले में जो झूले आए
मामाजी ने खुब झूलाए
खैल खिलोने , गली महल्ला
पकड़म पाटी, हल्ला गुल्ला

हेलो हेलो ज़रा फ़ोन लगाना
याद मुझे आते है नाना ...

नानाजी तो सैर कराए
नानी माखन मिश्री खिलाए
मामी , मामा , छोटा भैया
खूब शरारती बड़ा लड़ैया

हेलो हेलो ज़रा फ़ोन लगाना
याद मुझे आते है नाना ...


(चित्र में दिखाई देने वाली कन्या भी मेरी ही कृति अर्थात मेरी सु पुत्री अनुष्का है ....अपने नानाजी से फ़ोन पर बात करते हुए !!)

Wednesday, January 27, 2010

जीने दो मुझे (कन्या भ्रूण-हत्या )






जीने दो मुझे, मैं भी जिंदा हूँ

क्या दोष मेरा ? हूँ मैं अंश तेरा

ऐसे समाज पर, मैं बहुत शर्मिंदा हूँ !!



कहलाती पराई सदा ही रही

जन्म मिला तो, मृत्यु सी पीर सही

हैवानो मुझ पर दया करो

ना कुक्ष में कुचलो हया करो !!




अमानवीयता से, सदा मैं हार रही

सुन बिलख-बिलख कर, पुकार रही

तेरे भीतर नन्ही जान हूँ मैं

तेरी ममता का सम्मान हूँ मैं

माँ तू भी, मुझे क्यों मार रही !!!




देवता के वेश में काल खड़ा

समाज को दे रहा मर्ज़ बड़ा

ना मसल मुझे मैं नन्ही कली

खुद धन्वन्तरी देता श्राप तुझे !!




श्रृष्टि का सर्जन तो मेने किया

ऐ पुरुष तुझे भी जन्म दिया

फिर क्यों कोख में मुझको मसल रहा

मैं तड़प रही हूँ, सिसक रही

जीवन की भिक्षा मांग रही !!




जिस देवी को तुम पूजते हो

मुझमे ही उसका रूप बसा

मैं चींख-चींख कर पुकार रही

मानव हो तो सुनो ये मेरी "सदा" !!



(कन्या भ्रूण -हत्या एक जघन्य अपराध है ! सरकार के प्रयत्नों के बावजूद ये समस्या जस की तस बनी हुई है ! प्राकृतिक असंतुलन को निमंत्रण देती हुई ये भयंकरतम समस्या हमारे सभ्य समाज का हिस्सा नहीं हो सकती !! हम सभी को मिलकर साँझा प्रयत्नों एवं जन जाग्रती द्वारा इस कु -कृत्य को जड़ से उखाड़ने के समस्त प्रयत्न करने होंगे !! यही समय की मांग है !!)

Tuesday, January 26, 2010

जिंदगी से अब मिले


बनते रहे हमदर्द और मनमीत हो गए

दूर तुम इतने हुए की , नजदीक हो गए

ना वजूद कुछ मेरा बचा , ना हस्ती रही तेरी

कुछ इस तरह से प्यार की, बस्ती में खो गए

गुलाबों सी नर्मिया, महसूस होती है कदमो तले

कि दो हाथ उठाते है, दुआ में मेरे लिए

ख्वाइश है युही शामिल, रह जाए तेरे अपनो में

फिर आकर तुझे सताए ,हर रात तेरे सपनों में

जी तो रहे थे अब तक, जिंदगी से अब मिले

बदनाम थे गलियों के ,अब नूर-ऐ-नजर हो चले

Monday, January 25, 2010

गणतंत्र दिवस की शुभकामनाए


मेरे सभी हिन्दुस्तानी साथियों को भारतवर्ष के इस पावन एवं महत्वपूर्ण राष्ट्रीय पर्व की हार्दिक शुभकामनाए ॥


जय हिंद


सब सपनों को साकार करे (गणतंत्र दिवस)











नई भौर में,
नए छोर से,
साध कर नए लक्ष्य कई
नवल यतन कर,
नवयौवन संग,
पलको में,
नव स्वप्न लिए
सभी विधा में,
सभी क्षेत्र में
टाके नई उपलब्धियां
छोड़े छोटी सोच पुरानी
सभ्यता को समृद्ध करे
शिक्षा का हो,
अधिकार सभी को
नवप्रतिभा को,
मिले पहचान
राजनीति रहे गंगा सी
घर घर पहुचाए विज्ञान
तकनिकी में,
जा पहुचे शिखर पर
समाज संस्कारो का,
प्रतिबिम्ब बने
दिल जुड़ जाए सबके
प्रेम से
जात -पात के सब
मिटे निशाँ...
बस प्रेम धर्म हो
इस "गणतंत्र" का
सब मिल आज यही
संकल्प धरे
आशाओ की डोर लिए हम
सब सपनों को साकार करे













Friday, January 22, 2010

मैं एक नारी

यह कॉलेज के जमाने की लिखी एक पुरस्कार अर्जित कविता हैं । जिस पर श्रेष्ठ विद्वानों की सराहना प्राप्त करने का अवसर मिला था । आज यही रचना आपने ब्लॉग जगत के मित्रो से बाटना चाहती हूँ ।
महाकालीरूपा, दुर्गा स्वरूपा
चामुंडा भी हूँ, मैं नर्सिहनी
ज्वालामुखी सी ज्वाला मुझमे
विद्रोह का है, लावा मन में
अत्याचारों से लड़ने की
अब मुझमे भी शक्ति हैं
मैं भी कुछ कमज़ोर नहीं
ये मेरी ही अभिव्यक्ति हैं
मैं कभी त्याग की प्रतिमा
भी बनकर रही थी
सुकोमलता, सहनशीलता
से ही मैं सजी थी
पर दुष्टता को रास ना आया
ये मेरा स्वरूप
शोषण कर मेरा इसने
मुझे लुटा हैं, खूब !!
आगे मुझे ही बड़ना पड़ा
हक़ के लिए भी, लड़ना पड़ा
अब वीरता की प्रतिमा हूँ मैं
सुविशाल ह्रदय, एक माँ हूँ मैं
विष्णु की लक्ष्मी, शिव की उमा हूँ
शिक्षित घरो की मैं ही शुशमा हूँ
शर्म से छुपा बदली में चन्द्र वो आधा हूँ
राम की सीता और कृष्ण की राधा हूँ
आज भी मुझमे बसी दया व ममता हैं
किंतु अत्याचारों से लड़ने की
कड़ी क्षमता हैं ......

Thursday, January 21, 2010

मेरे सवाल


विचार मंथन हो रहा मन में मेरे क्यों आज कल ?
घन-घोर चिंतन हो रहा मन में मेरे क्यों आज कल ?

देश की अस्मिता को लुट रहा ये कौन है ?
देश के सब वीरो का क्यों बाहुबल अब मौन है ?

सो गई है क्या वो शक्ति भारत के नौजवान की ?
कहाँ गई वो देश भक्ति हिन्दुस्तान के इंसान की ?

इंन्सानियत की भूमि पर क्यों लालच के बादल छा रहे ?
देशवासी आज क्यों बलिदान से कतरा रहे ?

फैली अशांति देश में अब त्रांहि-त्रांहि मच रही !
आए दिन इस देश में खतरे की घंटी बज रही !!

घूसखोरी रोकती है उन्नति की राहें आज क्यों ?
सिमटी हुई है प्रेम और दया की बाहें आज क्यों?

देश के नेताओं की आत्मीयता क्यों सो रही ?
गाँधी नेहरू की रूहें क्यों आहें भर भर रो रही ??

क्यों इस तरह से देश की नष्ट हो रही एकता ?
इसी सेह से दुश्मन यहाँ बुरी नज़र से देखता !!

मेरे सवाल बस है यही बातों में न इन्हें टालना !
मांगता है हर शिशु क्यों इक सुरक्षित पालना ??








Sunday, January 17, 2010

अंतरमन

सुन जरा तुझे हमराज़ बना,
मैं एक बात बताऊ
बस मेरे दिल की बात नहीं,
जीवन का राज़ सुनाऊ


जो अटल-अमर सा रहता है
और बिखर-संवर सा बहता है
जो "अंतरमन "की तह में बसा


जिसे, संतो ने ढूंडा वन वन में
कबीरा ने बांटा जन जन में
मीरा ने पाया खुद मन में

रहता है अब वो छुपा छुपा
भौतीक जीवन से ढका हुआ
कंही "अंतरमन" में धंसा धंसा

जब जग दुनिया का साथ ना था
तो उसी के साथ में रहते थे
उसका साथ कहे या फिर
खुद ही के साथ में रहते थे

उत्साह वही तो देता था
खुद अकेले आगे बड़ने का
मुश्किलों से उभरने का
सब तकलीफों से लड़ने का

जो विलास-प्रमोद का पड़ाव मिला
उसे छोड़ वही पर ठहर गए
अब संसार के साथ है बसे हुए
पर खुद का साथ ही सिधर गए

जब रंग रंगीली हवा थमी
तो कानो में आवाज़ पड़ी
तेरा "अंतरमन" तेरे साथ ना है
जिसमे परमेश्वर रहता था

तू खुद को खुद से खिंच जरा
जो तेरे भीतर धंसा पड़ा
न ढूंढ मुझे तू यहाँ
न ताक मुझे तू घड़ी घड़ी

बस खुद से खुद में झाँक ज़रा
पा जाएगा ये कहता हूँ
तू बिसर भले ही चले मुझे
मैं तेरे "अंतरमन" में रहता हूँ





Saturday, January 9, 2010

संघर्ष

आओ करे स्वागत हम हर संघर्ष का
प्रगती का मनन, है विषय यह अति हर्ष का

आओ करे स्वागत हम हर संघर्ष का .....

राहों को दिशा प्रदान करना भी कर्मो पर क़र्ज़ है
किंतु कर्मशील बने रहना ही तो जीवन का फ़र्ज़ है

तो क्यों ना इतिहास रचे मिलकर
हम एक नए उत्कर्ष का

आओ करे स्वागत हम हर संघर्ष का........

जो शंकाओ से घिरी रहे, वह चाह सफल नहीं होती
किंतु मेहनत और लगन से जुडी, कोई राह विफल नहीं होती

मुश्किलों में भी बढ़ाते ही रहे सदा
न इंतज़ार करे किसी निष्कर्ष का

आओ करे स्वागत हम हर संघर्ष का.....

उलझनों की युक्तियाँ, निराशा के पार होती है
संघर्ष में भी हंसी, सफलता का सार होती है

स्वाभिमान हो बुलंद सदा
है इलाज यही हर मर्ज़ का

आओ करे स्वागत हम हर संघर्ष का.......

ना तो ऐसा है की, खुद पर भरोसा नहीं है
और ना ही जहाँ में, मंजिलो की कमी है

उम्मीदों से हकीकतो, को तौल कर देखे
नाकि मार्ग चुने कभी, प्रतिकर्ष का

आओ करे स्वागत हम हर संघर्ष का...

Friday, January 8, 2010

ये दुनिया क्या है

एक भौर मैं भाव विभौर हो सोच रही थी ।
ये दुनिया क्या है? इसका उत्तर खौज रही थी ।।

मैंने अपने दिल से बोला तू बतलादे ।
सच्चाई का दर्पण मुझको तू दिखालादे ।।

दिल ने बोला दुनिया है सपनों का मैला ।
प्रलय काल तक जंहा चले है , प्रेम का खेला ।।

इस उत्तर से मन को तो संतुष्टि नहीं हुई ।
जो सच सुनना चाहा उसकी पुष्टि नहीं हुई ।।

चलते चलते देखा इक मैदान बड़ा था ।
जिसके बिच एक सुखा पेड़ खड़ा था ।।

पुष्प-पत्र विहीन यह छीन भिन्न ।
इसने कितनी ही विपदाओ को सहा होगा ।।

आज ऐसा है ये , मगर पूर्व में;
ये भी हरा भरा रहा होगा ।।

ये जीवन है, जीवन का दस्त्तुर यही है ।
सुख यही पर है तो, दुःख भी तो भी तो यही है ।।

कोई हसता है, कोई रोता है ।
कोई पता है, कोई खोता है ।।

कोई मिलाता है, कोई बिछड़ता है ।
कुछ बनता हैकुछ बिगड़ता है ।।

यह सच है की दुनिया बड़ी संघर्षमयी है ।
ये मैंने ही नहीं बड़े पुरखो ने भी कही है ।।

सारी शक्ति और उर्जा का तंत्र यही है ।
"विशवास रखो संघर्ष करो" बस मंत्र यही है ।।

पुकार

नीर, क्षीर, गंभीर, धीर
धैर्यवान , बलवान , सुमन

औरो के हित के खातिर
जो अर्पण कर दे तन मन धन

मात्र पित्र भक्त सेवा अनुरक्त
स्वदेश पर सदेव बलिदान करे जो अपना रक्त

स्वाभिमानी हो जो अभिमानी न हो
विष सी कटु जिसकी वाणी न हो

सर्व गुण समपन्न रहे जो
वो महावीर बनाओ प्रभु

हे कण कण के स्वामी , ज्ञानी ध्यानी
अधर्म और पाप के विनाश हेतु

रची थी जो पूर्व कहानी
फिर एक बार, दोहराओ प्रभु

अब भक्तन की पुकार सुन कर
आओ प्रभु आजाओ प्रभु

सरस्वती वंदना

शवेत कमल पर बैठी माता
बुद्धि ज्ञान की तुम ही दाता

वर दो सरस्वती माँ ...

अँधियारा है इस जीवन में
तू ज्ञान का दीप जला
बुद्धि ज्ञान का हमको वर दो
जग-मग जग-मग जीवन कर दो
अज्ञान का है घनघोर अँधेरा
मन दिव्य ज्ञान भण्डार से भर दो

वर दो सरस्वती माँ ...

रस छंद और अलंकार
राग रागिनी के स्वर भण्डार
नृत्य शास्त्र या कोई कला हो
कुछ ना है ऐसा, जो न तुझसे पला हो
मन में सोच हो, तन में लौच हो
और हाथो में सारी कला

वर दो सरस्वती माँ ...

अभिमानी नहीं स्वाभिमानी बने हम
सहनशील, सदा विनम्र रहे हम
नवजीवन का आदर्श बने जो
ऐसे अपने कर्म करे हम
हौंठो पर हो क्षमा सदा ही
और दिल में बसी हो दया

वर दो सरस्वती माँ ...

Shri Ganeshay Namah




हे गजानन गणपति, बुद्धिविनायक बलधाम !

निशदिन सुमिरे तुमको हो ऐसी मति और पूरण होवे काम !!