Tuesday, December 28, 2010

खुशियों भरा हो साल नया आपके लिए



हर पल यही है दिल की दुआ आपके लिए
खुशियों भरा हो साल नया आपके लिए

महकी हुई उमंग भरी हो हर इक सुबह

चाहत के गुल से पथ हो सजा आपके लिए

संघर्ष को सफ़लता की मिलती रहे मुराद

हो जश्न जीत का ही सदा आपके लिए

आंगन में सबके झूमके लहराएं बहारें
जीवन हो जगमगाती छटा आपके लिए


अर्पण सभी को हैं मेरे शुभकामना सुमन
उत्कर्ष लाए साल नया आपके लिए



आप सभी को सपरिवार नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ....!!!



Friday, December 10, 2010

मखमल की चुभन

भारी गहने, जरी वाले कपड़े और फूलों से गठा माथा आँखों में अजीब सी उदासी लिए जोत्सना अपने कक्ष में बैठी किसी सोच में डूबी है . अचानक कक्ष में उसकी सास का आगमन होता है..... जोत्सना, बाहर बैठक में इतने मेहमान थे . सबको ठीक से विदा करना तो दूर तुम यहाँ फट से चली आई .ये भी कोई बात हुई भला !! 
जोत्सना अचानक चौंक कर कहती है....... माजी, बैठे बैठे पैर सुन्न हो गया था इसीलिए यहाँ चली आई . इतने में ही जमुना काकी (महरी) कहती है ...अरे कोई बात न है बहुरियाँ ऐसे में तुमका आराम की ही जरुरत रही . मेहमान तो सब चले गए . अब जब लल्ला ले आओगी तब भी तो आएँगे तब मिलिहो फिर से .....कहते हुए जमुना बैठक से कुछ सामान लेकर आरही है . अम्मा जी बहुरिया के पीहर से एक से एक भेट लाए थे बियाई जी . 
तू चुप भी रह जमुना, महारानी के तेवर और भी बड़ जाएंगे. क्या कोई इसी के घर से आई है भेंट ! मेरे मिलने वालों की भेंट के आगे तो यह कुछ भी नहीं . हाँ पर तुझे भी क्यों न पसंद आएँगे ?? महरियों की पसंद जैसी ही तो पसंद है इन गाँव के लोगों की. जमुना काकी अपना सा मूह लेकर चली गई... मगर माजी की बात अभी पूरी कहाँ हुई थी . देखों जोत्सना, तुम्हे बुरा लगे या भला लेकिन कहे देती हूँ इस बात पर भास्कर से कुछ कह कर घर में क्लेश न करना .....तुम्हारे माता पिता को इतना विचार करते न बना कि छोटा गाँव है चिकित्सा सुविधा का आभाव बता कर बेटी की जचकी के खर्चे से तो उन्होंने फट से हाथ साफ कर लिए अब क्या बेटी की गोद भराई मैं थोड़ा खर्च नहीं कर सकते थे ...!! तुम्हारी माँ तो मुख्य अतिथि की तरह आई रस्म ख़त्म होते ही हाथ जोड़ कर चल दी. यहाँ काम में हाथ बटाना होगा, यह भाव तो आए ही ना उनके मन में  .. ..मैं क्या कहूँ माजी उनके रुकने पर भी आपत्ति होती है कि बेटी के घर लोग रह कैसे जाते है !! पिताजी के रिटायरमेंट में भी अभी समय है उन्हें ऑफिस का बहुत काम होता है लेकिन माजी वो अपने सामर्थ्य के हिसाब से इतना कुछ लाए तो है .... तुम इतना कुछ तो ऐसे कह रही हो जैसे १-२ गाड़ी भर कर सामान और किलो भर सोना लाएं है . जोत्सना के आँखों से आँसू बह पड़े फिर भी माता पिता का अपमान सहना किसी लड़की के लिए जहर के घूंट पिने जैसा ही तो है. बहुत चाह कर भी वो खुद को रोक न सकी और कह उठी माजी आप भी जानती ही है प्रसूति के लिए मुझे गाँव न भेजने का निर्णय आपके बेटे का है मेरे माता पिता का तो नहीं .....जोत्सना के बोल पुरे ही कहाँ हुए थे कि उसे वज़नदार जवाब सुनने को मिलता है;
"हाँ जैसे हमें तो पता ही नहीं कि यह पट्टी उसे किसने पड़ाई है ....जाने क्या जादू कर दिया है बेटे पर, अब तो कुछ सुनता ही नहीं" . 
फर्क सिर्फ इतना ही था कि इस बार यह जवाब जोत्सना को अपनी सास से नहीं बल्कि ससुर जी से मिला था.बेचारी के ह्रदय को बड़ा आघात हुआ लेकिन सास को तो बड़ा बल मिला, आज जंग में उनका साथ देने के लिए एक सशक्त समर्थक भी है .
महरियां घर में इधर से उधर घूम घूम कर अपना काम कर रही थी उन्हें दूसरी ओर काम करने का निर्देश देते हुए भास्कर के पिता ने एक और विषेला बाण दाग ही दिया ....गाँव में रिश्ता कर कर पछता गए जी तुम ठीक ही कहती थी, पढ़ी लिखी लड़की के चक्कर में कुछ हाथ न लगेगा उल्टा बेटा ही हाथ से चला गया . घैर्य का बाँध टूट ही गया और संतापित जोत्सना कह ही उठी पिताजी ईश्वर साक्षी है मैंने आपके बेटे से कुछ नहीं कहाँ और फिर भी आपको अपने समन्धी से शिकायत ही है तो उन्ही से कह लीजियेगा फिलहाल मुझे न दीजिये अपने माता पिता के नाम के ताने ....क्षमा कीजिये लेकिन अभी मेरे लिए यह तनाव ठीक नहीं .भीगी आँखों से दबे शब्दों में अनुरोध स्वरुप जोत्सना ने ये सब कहा लेकिन इस अनुरोध का असर किस पर होना था .....लो तो अब हमारा कुछ कहना भी इनकी सेहत पर बुरा असर कर रहा है जैसे हम तो अपने बेटे का बुरा ही चाहेंगे .....भगवान बचाएं आज कल की लड़कियों से एक कहों तो दस पकड़ाती है ....कहते हुए भास्कर के पिता दुसरे कक्ष में चले गए !!
अब क्या था माताजी का गुस्सा अपने चरम पर पहुच गया ....वाह तो यह सिखाया है तुम्हारी माँ ने तुमको इस तरह बात की जाती है बड़ों से !! अपने सास ससुर को दो टुक जवाब देते तुम्हे शर्म नहीं आती जोत्सना .......वे आगे कुछ कहती उसके पहले ही जोत्सना बोल पड़ी माजी मुझे क्षमा कीजिये मैं आपके सामने बोल रही हूँ लेकिन कृपा करे अभी ऐसी अवस्था में मुझे न रुलाइये मेरी ही बात नहीं बच्चे के स्वस्थ के लिए भी अच्छा नहीं है ...कल ही डॉक्टर ने हमें सचेत किया है मेरा रक्तचाप उच्य हो रहा है कई दिनों से   ....जो ठीक नहीं .
ओह्हो !! तो अब यह दोष भी हमारे ही सर माड़ो तुम "देखों तुम रो रही हो ये तुम्हारी मर्ज़ी है. हम तुम्हे नहीं रुला रहे है कहते हुए जोत्सना की सास चली गई ...कही न कही उनके मन में डॉक्टर की चेतावनी का डर था लेकिन अपने पोते के लिए ...
अचानक ही कुछ कांच के बरतन टूटने की आवाज़ जोर से आती है .....अरे क्या हुआ !!
जमुना काकी दौड़ कर आती उसके पहले ही माजी पहुच गई . जमना काकी की बहू कजरी के हाथ से कुछ कांच के बर्तन छुट कर टूट गए ... हे भगवान इतना महंगा नक्काशी वाला डिनर सेट था . अरी तुझे भी यही सेट मिला था तोड़ने को . जमुना तेरी बहूँ में कोई लच्छन नहीं है. इतना महंगा सेट तोड़ दिया एक पैसा न मिलेगा आज की मजूरी का तो तुझे ...माफ़ करी देव अम्मा जी भेले ही पैसो न देना, नाराज़ न हो इस पर. पेट से है बिचारी .....हाँ तो इसका मतलब क्या कुछ भी नुकसान करेगी . क्या यह अनोखी है जो पेट से है .....कहती हुई घुस्साई मालकिन चली गई . 
जमुना काकी बहुत प्यार से अपनी बहू को उठाते हुए कहती है का भओ बहुरिया ....माए पैर सुन्न पड़ गओ सो उठते ही सामान हाथ से छुट गओ . ओ कछु नाई  बहुरिया रो नाही, ऐसी दसा में कोई रोत है भला !! चल चुप हो जा तो ....यो काम हऊ करलेत हूँ . तू जा बहुरिया के कमरा की सफाई कर दे फिर दोई घर चले है .
जोत्सना दरवाज़े की आढ़ से सब कुछ देख रही थी. साथ ही साथ स्पष्ट रूप से देख रही थी उस अंतर को जो महल के भीतर पढ़े लिखे पैसे वालों के छोटे विचार में और बड़ी सी पुलिया की छाँव में बसी छोटी छोटी झोपड़ पट्टीयों में रहने वाले अनपढ़ गरीब लोगों के अच्छे और भले विचारों में था . कजरी के कक्ष में प्रवेश करते ही जोत्सना बोली क्यों री, तुझे कहा था न ज्यादा वज़न न उठाया कर. फिर क्यों इतना सब उठा रही थी ?? 
भाभी माए की भी उमर है अब इतना काम कर थक जाती है .  उन्ही का हाथ बटाने को कर रही थी . कहते हुए कजरी जोत्सना के चहरे की ओर देखते ही उसकी सूजी हुई लाल आँखें देख कर कहने लगी ये क्या भाभी तुम रोई हो . माए कह रही थी एसी दसा में रोना अच्छा नहीं........... लल्ला घबरात है गरभ में . 
कुछ कह दियो का आम्मा जी ने ?? अरे ना री वो भला मुझे कुछ क्यों कहेंगी . वो भी एसी दशा में और आज मेरी गोद भराई के दिन !!
वो मेरे सर में बहुत दर्द होने लगा तो आँसू निकल आए ....अब हमसे न छुपाओ भाभी !
तुम इतनी धीरज वाली एसन दरद से कहाँ रोने लगोगी, तोके माँ बाबू गाए न अच्छा नहीं लग रहा होगा इसीलिए न ??  हम न जान सकेंगी का आखिर हम भी तो पीहर छोड़ कर आई है . आओं थोड़ा सर दबा दे.....तकिये पर सर रख कर कजरी जोत्सना का सर दबाने लगी . जोत्सना लेटे लेटे कजरी से कहती है तू  बड़ी भाग वाली है रे कजरी. जमाना काकी कितनी अच्छी है तेरा कितना ख्याल रखती है. अच्छी तो माए है ही मगर ऐसे मैं तो सब ही अपनी बहुरिया का ख्याल रखे है और तौके भाग का कम है भाभी ?? इतनी पढ़ी लिखी हो बड़े स्कूल की मास्टरनी बन गई , भैया जी जैसे अच्छे रूपवान पति है, महल में बहू बन कर आई हो पैसा लत्ता की किसी चीज़ की कोई कमी है का ?? 
इन सभी चीजों के बाद भी जिस कमी का अहसास जोत्सना प्रतिपल कर रही थी वह तो बस उसे सहन ही करनी थी कही नहीं जासकती थी . बात का रुख बदलते हुए जोत्सना कजरी से बोली कजरी पैर तो मेरा भी बहुत सुन्न हो जाता है. तू जरा ध्यान रख अपना . माए कह रही थी हम उची नीची ज़मीन पर रात को सोत है न, तो शीत से सुन्न पड़ जाई है पर भाभी तुम तो मखमल के बिस्तर पर सोने वाली तुम्हे शीत कैसे लगी??  पानी में ज्यादा पैर न रखा करो भाभी .....कजरी की बातें सुनते सुनते जोत्सना सोच रही ही थी इस मखमल के बिस्तर पर काटों की कितनी चुभन है उससे यह ज़मीन पर सोने वाली एकदम अनजान है . इस चुभन का अहसास उसके शरीर को नहीं उसके मन और आत्मा को पीड़ा प्रदान करता है . फिर कजरी को जाने का कह दीवार पर टंगी भास्कर की मुस्कुराती हुई तस्वीर को देख अपनी पीड़ा को भुलाने की कोशिश में एक गहरी सास लेकर जोत्सना अपनी आँखें मूंद अधीर मन को शांत करने कोशिश करने लगती है  ......


Friday, November 12, 2010

दुआएँ भी दर्द देती है





दुआएँ भी दर्द देती है 
दवाओं की ख़ता क्या है
 दगाओं से भरा मेरा दामन
तो इक तेरी वफ़ा क्या है 
दुआएँ भी दर्द देती है
दवाओं की ख़ता क्या है


चटक कर बह उठा ये तो  
है लावा दर्द का दिल के 
हमदर्दी ना रास आई
भला दिल की ख़ता क्या है 
दुआएँ भी दर्द देती है
दवाओं की ख़ता क्या है


अब तो दिन रात हर पल
अश्कों की बरसात होती है
वो कहते है बहार आई
मैं क्या जानू समां क्या है 
दुआएँ भी दर्द देती है
दवाओं की ख़ता क्या है


बड़ा मेहरबां सितमगर है
हजारों ज़ख्म देता है
खुद ही अंजान है लेकिन
भला ये भी अदा क्या है 
दुआएँ भी दर्द देती है
दवाओं की ख़ता क्या है


दरिया-ए-आब ये गहरा
डूब जाना ही किस्मत है
मगर इसमे जो ना डूबे
तो जीने का मज़ा क्या है
दुआएँ भी दर्द देती है
दवाओं की ख़ता क्या है

Wednesday, November 3, 2010

उल्फ़त के दीप दिल में जलाओ तो बात है--------------रानीविशाल

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रोशन है कायनात दीवाली की रात है
उल्फ़त के दीप दिल में जलाओ तो बात है

नफ़रत की आग दिल में, जलाकर मिलेगा क्या
रोशन महल उन्हीं के हैं, जिनकी बिसात है

जगमग है एक ओर महल, और इक तरफ़
कुछ घर के दियों को तो अंधेरों से मात है

त्यौहार अधूरे से हैं, खुशियां हैं अधूरी
अपनों से अपने पास हों तो कोई बात है

दिल की तिजोरियों में रहे, प्यार की दौलत
बढ़ती है बाँट कर बहुत, ये वो सौग़ात है

जलने लगे उल्फ़त के दीये,
अमन के चिराग़
तब मान लीजिये कि, दीवाली की रात है

चाहत बुलंदियों की, कहां लेके आ गई
मुश्किल सफ़र है 'रानी' और कोई न साथ है


Tuesday, October 26, 2010

जनम जनम का साथ-----------रानीविशाल



















मांग सिंदूर, माथे पर बिंदिया
रचाई मेहंदी दोनों हाथ
साज सिंगार कर, आज मैं निखरी
लिए भाग सुहाग की आस
प्रिय यह जनम जनम का साथ

पुण्य घड़ी का पुण्य मिलन बना 
मेरे जग जीवन की आस
पूर्ण हुई मैं, परिपूर्ण आभिलाषा 
जब से पाया पुनीत यह साथ
प्रिय यह जनम जनम का साथ

व्रत, पूजन कर दे अर्ध्य चन्द्र को
मांगू आशीष विशाल ये आज
जियूं सुहागन, मरू सुगागन 
रहे अमर प्रेम सदा साथ
प्रिय यह जनम जनम का साथ

हर युग, हर जीवन, मिले साथ तुम्हारा
रहे तुम्ही से चमकते भाग
मैं-तुम, तुम-मैं, रहे एक सदा हम
कभी ना छुटे यह विश्वास
प्रिय यह जनम जनम का साथ 



आज करवा चौथ के पावन दिन पूरी आस्था और विशवास के साथ परम पिता परमेश्वर के चरणों में यह परम अभिलाषा समर्पित है और आप सभी मेरे ब्लॉग परिवार को भी मेरा चरण वंदन आज कमेन्ट में अपने स्नेह के साथ यही आशीष प्रदान करे कि मैं हर जीवन हर जनम अखंड विशाल सौभाग्य प्राप्त करू ....

सादर प्रणाम

Saturday, October 23, 2010

चाँद है मेरा परदेस में

 
आज चंदा तू चमक ना कि
 चाँद है मेरा परदेस में...

उज्जवल सलोना ये रूप तेरा
मुझे उसकी याद दिलाएगा
जा चला जा आज तू कहीं
कब तक मुझे यूँ सताएगा 

चमकेगा जो तू यूँ रात भर
तो मेरी रात ये होगी दूभर
दमकती रहेगी उसी की सूरत
सारी रात मेरे ख़याल में
फिर अहसास उससे दुरी का ये
सुबह तलक रुलाएगा ...

जा कि सोजा तू घड़ी भर
बदलियों की आढ़ में
ताकि मूंद सकूँ आँखों को
अपने चाँद के ही ख़याल में 

पलकों के अम्बर पर जब
चमकेंगे तारे स्वप्न के
तब मचल कर चाँद मेरा
मुझको गले से लगाएगा 

फिर कटेगी जुदाई की रात भी
दिलदार के ही आगोश में
 आज चंदा तू चमक ना कि
चाँद है मेरा परदेस में 

आज तेरा मैं क्या करू
आना किसी दिन फिर से तू
जब आए मेरे आँगन में चाँद
तब देखेगी चाँद की चांदनी में
ये चांदनी भी अपना चाँद ...

होगा तब ही तो ये पता
है तू भला या वो भला
 मनभावना है तू ही ज्यादा या
अधिक है, मोहकता उसके वेश में
आज चंदा तू चमक ना कि
चाँद है मेरा परदेस में
चाँद है मेरा परदेस में...!!!

Wednesday, October 20, 2010

माई ----------------रानीविशाल

आज भी जब कभी
फांस की सी
चुभन हो मन में
या पनप उठा हो
कष्ट कोई तन में
बात कोई दिल की
बताना किसी को चाहूँ
या दिल करे जी भर कर
किसी को आज मैं सताऊं
ये ख़्याल आते ही मन में
सहसा उठती है अचानक
यादों की लहर ......


फिर रह रह कर
मेरे दिल को
तुम याद आती हो 'माँ'
और याद आती है
तुम्हारी वो डांट फटकार
तब ना जानती थी मैं
कि इसमे भी छुपा है
अतुल्य प्यार तुम्हारा 
नाज़ुक क्षणों में जब तुम
ढाढस बंधाती
नित्य दुनियादारी का
पाठ सिखाती
कभी कभी बातों ही बातों
में कही खो जाया करती
मेरे बड़े होकर
पराए घर जाने के ख़्याल से.....


अब याद आता है
बच्चों कि चिंता में
कैसे तुम नीदें गवाती थी !
बची कुची शाक दे हमें
तुम नमक मिर्ची से भी
कभी रोटी खाती थी
आज पकवानों में भी नहीं
वो स्वाद जो तवे पर बनाकर
बेसन दिया करती थी तुम
सब्जियों के आभाव में.....

रहे ज़माने कि तपिश से
बेखबर सदा
हम तुम्हारी
ममता कि छाँव में...
अक्सर ये ज़मीनी दूरियाँ
तुम्हारे मुझसे दूर होने का
अहसास दिलाती है
लेकिन मेरी 'माई' तो
सदा मुझमे समाती है !!

हर विचार, व्यवहार, संस्कार
तुम्हारा ही उपहार है.....
तुम्हारा दिया ज्ञान ही
जीवन का आधार है
सब कहते है
यही कि मैंने
तुम्हारी छवि पाई है
इसीलिए प्रतिपल
मेरे पास मेरी 'माई' है !!!

आज मदर्स डे नहीं लेकिन माँ तो माँ है और माँ कि याद भी माँ की तरह ही प्यारी होती है ....बच्चों को अकेला महसूस करते ही आजाती है और समेट लेती है हमें अपनी ममतामयी यादों के आचँल में और कर देती है जीवन में नए उत्साह का प्रवाह  .....कभी कभी ऐसे ही भावों में प्रवाहित मन से कुछ बोल फुट पड़ते है और धर लेते है रूप कविता का....आज भी कुछ ऐसा ही हुआ.

Thursday, October 14, 2010

हे माँ दुर्गे सकल सुखदाता


हे माँ दुर्गे सकल सुखदाता
हे जगदम्बा भाग्य विधाता
हे माँ शक्ति भव भयहरणी
हे चामुंडे सर्व मंगल करणी
दुर्बुद्धि निवारणी हे ममतामयी
वरदा, विद्या, धात्री, त्रयी 
दिव्य प्रकृति तेरा स्वरुप है
वन, उपवन,सागर, सरिता
झरने, पर्वत सब तेरे अनुरूप है
तू कर्ता, तू कारण, कारक
तू साधन, तू साध्य, निवारक
विकराल, कराल, कालिका तू माँ
स्नेह, ममता, करुणा, तू क्षमा
महिषासुरमर्दिनी, भक्तवत्सला
कृति, कृतिका, कमला, कपिला
सब पाप, ताप हर अखल विश्व के
माँ विश्व शांति का विस्तार करो
सब दुःख हरो माँ दुखियारों के
कल्याणमयी सर्व कल्याण करो
सम्पूर्ण, समर्थ, सशक्त, सहायक
निज बालकों का उद्धार करों
मिटा बैर, दुराचार, कुटिलता
मानव घट घट में प्रेम भरो
सब शोक हरो, हे माँ जगदम्बा 
दुष्टों का परिहार करों
दो आशीष, हो सदा सद्गामी
निज चित्त में सदैव विहार करो
माँ, निज चित्त में सदैव विहार करो .....

Tuesday, October 5, 2010

किसी का दर्द जो समझे...........रानीविशाल



किसी का दर्द जो समझे, वही इंसान होता है
दिलों में प्यार हो जिस दर, वहीँ भगवान होता है

मिलती है नसीबों से, खुदा की ये इनायत है
हर दिल में महोब्बत का, छुपा आरमान होता है

उसी की राह में पलकें, बिछाए हम तो रहते है
बड़ी मुश्किल से वो दिलबर,  मेहरबान होता है

मिल जाता है यादों में, वो खोया प्यार का मंज़र
तनहाई का भी इस दिल पर, बड़ा अहसान होता है
चार दिन है ज़िन्दगी "रानी" प्यार करने को 
दुनिया में हर इनसां, बस मेहमान होता है

Friday, October 1, 2010

आज के दिन "दो" फूल खिले थे


आज के दिन दो फूल खिले थे
दोनों ही बड़े महान
दोनों ने भारत की शान बढाई
दी भारत को नई पहचान
सत्य, अहिंसा का पावन पथ 
बापू ने था दिखलाया
धरती का लाल भी बड़ा बहादुर 
कहा "जय जवान जय किसान"
याद रखे दोनों की ही हम
न भूलें  किसी का भी नाम
दोनों ही भारत की शान हमेशा
दोनों ही वीर महान ...

आज २ अक्टूम्बर गाँधी जयंती हमारे राष्ट्रपिता "बापू " का जन्मदिन हम सभी के लिए एक बहुत बड़े और महान पर्व से कम नहीं .बापू ने जो इस देश के लिए किया है अतुल्य है इसीलिए हम सभी के लिए इस दिन का विशेष महत्व होना स्वाभाविक है ....आज ब्लॉग जगत में कई जगह गाँधी जयंती पर प्रकाशित पोस्ट्स देखने को मिल रही है ......लेकिन आज हमारे देश के एक और महान नेता का भी जन्म दिन है "लाल बहादुर शास्त्री " . जिनके किये महान कार्यों पर प्रकाश डालने की आवश्यकता यहाँ नहीं वो हम सभी जानते है ... इस महापुरुष का भी जन्मदिन आज ही है यह उल्लेख हमें भूलना नहीं चाहिए . मैं महात्मा गाँधी और लाल बहादुर शास्त्री के बिच मैं कोई तुलना नहीं कर रही हूँ ...ऐसा समझने की भूल भी न की जाए .
दोनों ही महापुरुष देश की शान है दोनों ने ही बहुत बड़े और महान कार्य किये है . आज के इस पवन दिवस पर भारत माता के दोनों वीर सपूतों को मेरा शत शत नमन .

Tuesday, September 21, 2010

विरक्ति पथ { अंतिम भाग }------------रानीविशाल

(अब तक : शालिनी और शची वर्षों के बाद दिल्ली में फिर से मिले है लेकिन इतने सालों में काफ़ी कुछ बदल चूका है ....दोनों सखियाँ शेष दिवस साथ बिता कर सुख दुःख बाटने लगती है । बातों ही बातों में पता चला शची अकेली रहती है उसका पति उसके साथ नहीं । कारण पूछने पर शची वृतांत सुना रही है कि किस तरह इम्तहान के बाद जब वो अपने पापा के साथ ससुराल मनाली पहुची तो सिद्धार्ट के व्यवहार में परिवर्तन आगया .....वह साधू सन्यासियों सी बातें कर रहा है । शची समेत संसार कि सभी स्त्रियाँ उसके लिए मातृवत है ......शची आपने सपनों के टूटने के दर्द से सारी रात तड़पती रही )

अब आगे : सिद्धार्थ के कक्ष से जाते समय शची अच्छे से समझ गई थी कि इसके बाद वो कभी इस कक्ष में उसके साथ नहीं हो पाएगी ....अब उसे यह ठीक से समझ आगया था कि शायद वह जिसे सिद्धार्थ का बड़प्पन समझ रही थी वह तो उसका अलगाव ही था . सुबह होते ही शची चाय लेकर आपने सास ससुर कि सेवा में पहुच गई शची के हाथों चाय कि प्याली लेते हुए वे एक टक खिड़की से सुनी राहों को निहार रहे थे . शची के चहरे पर उसकी व्यथा साफ़ नज़र आरही थी . भोर होने से पहले उन्होंने ही इस खिड़की से सिद्धार्थ को दूर सड़क पर जाते हुए देखा था ...मानो आज वो सच मुच ये सारे बंधन ये जिम्मेदारियां छोड़ कर सदा को जारहा है . आखिर वो उसके माता पिता थे उसमे आए इस बदलाव को वो पहले ही भांप चुके थे . शची की सास उसके सर पर हाथ रख कर हिम्मत दिलाती है ......धैर्य रख बेटा सब ठीक हो जाएगा . पीड़ा के इन क्षणों में इस संत्वना ने शची को मोम कि तरह पिघला दिया और शची अपनी सास के घुटनों पर सर रख कर बिलख बिलख कर बच्चों की भाँती रोने लगी ....अब कुछ ठीक नहीं होगा माँ .....वो मुझे इस रिश्ते से स्वतंत्र कर चुके है , वे तो कभी इस बंधन में बंधे ही नहीं सदा विरक्त थे .....वो तो मैं ही थी जो प्रेम की आस लगाए बैठी थी . उन्होंने कहा है कि अब उनका संसार के हर प्राणी से एक ही रिश्ता है जो जीवमात्र का एक दूजे से होता है .....अब मैं क्या करू माँ ??
शची का यह रोदन उसके पापा को पूरी तरह आहत कर गया जो अभी अभी बैठक में पहुचे ही थे कि ये सब उन्हें सुनाई दिया वे तो ख़ुशी ख़ुशी स्वस्थ महसूस करने पर सबसे रवानगी कि आज्ञा लेने आए थे .....अब उन्हें भी समझ में आया कि सुबह ४ :०० के आस पास दूर सड़क पर अपनी ही धुन में चला जारहा वह युवक कोई और नहीं सिद्धार्थ ही था .
उन्होंने शची से कहा बेटी तू मेरे साथ ही चल ....शायद इसीलिए मैं अब टक यहाँ रुका था , वे दुखी मन से बोले
नहीं नहीं भाईसाब हम सिद्धार्थ को ढूंढ़ कर लाएंगे उसे समझाएंगे.....आप हौसला रखे .
मैं आपकी बात समझता हूँ लेकिन फिलहाल शची का मेरे साथ ही जाना ठीक है . अपने लोगो के बिच इसके तड़पते ह्रदय को ठाह मिले ...सिद्धार्थ के माता पिता बहुत शर्मिंदा थे लेकिन शची और उसके पिता समझते थे कि इसमे उनका क्या दोष दोनों पुनः दिल्ली के लिए रवाना हो गए .सारे रस्ते बाप बेटी एक दुसरे से कुछ न कह सके , कुछ बोलते भी तो कंठ भर आता
शाम ढले जब दोनों घर पहुचे तो शची की माँ उसे अपने पापा के साथ देख अचंभित रह गई ...माँ के ह्रदय से लगते ही शची का सारा दर्द आँखों से बहाने लगा ....
शालू , उस रात इस सदमे को लेकर पापा सोए तो सुबह नहीं उठ पाए ....यह समाचार पाकर जब सिद्धार्थ के माता पिता आए तो पता चला कि उस दिन के बाद सिद्धार्थ घर नहीं लौटा .....वो तो निकल पड़ा था अपने विरक्ति पथ पर अपने बूढ़े माता पिता को निसहाय छोड़ कर इतना ज्ञान अर्जन कर कर्तव्य पथ और विरक्ति पथ में उसने विरक्ति पथ चुन लिया था जाने कौनसा परमानंद पाने को ...जब कि बड़े बड़े ज्ञानी कह गए है ...माता पिता के चरणों में स्वर्ग होता है
भाई की नौकरी मुंबई में लग गई थी ....इसीलिए हम सब घरबार बेच कर मुंबई ही चले गए ..
कुछ साल बीते भैया और माँ के हौसले से मैंने खुद को संभाल ही लिया और भैया के साथ ही उसकी कंपनी के मार्केटिंग डिविज़न में जाब करने लगी ....लेकिन अन्दर का सूनापन हमेशा मसोसता रहा
भाई और माँ यह जानते थे कि आत्मनिर्भर और कुछ कर पाने का अहसास ही मुझे कुछ सुकून दे सकेगा ....इसी लिए जब मुझे यह जॉब मिली तो उन्होंने ख़ुशी से मुझे आने कि आज्ञा दी .....इस शहर में मेरी बचपन कि यादें रची बसी है जो मुझे इस तन्हाई का अहसास नहीं होने देती .....
लेकिन शची तुमने दूसरी शादी क्यों नहीं की ??
एक बार इस बंधन में हुई आसक्ति को तोड़ कर सिद्धार्थ ने मेरी आस्था को वो ठेस पहुचाई है कि अब इस पर विश्वास नहीं होता ...हाँ कभी कभार साल में एकाध बार सिद्धार्थ के बूढ़े माता पिता से मिलाने चली जाती हूँ उनके अकेलेपन और लाचारी का ख्याल आता है तो दुःख होता है ...वे भी अब मुझे बेटी सा ही स्नेह देते है वो रिश्ता तो अब बहुत पीछे छुट गया
बातों बातों में अविनाश (शालिनी ) के पति भी पार्क में आपहुचे .....सब लोगो का हसी ख़ुशी संवाद हुआ शची भी खुश थी ......फिर सब अपने अपने घर को निकल पड़े . सारे रस्ते शालिनी के नेत्रों से अश्रुधाराएं बह रही थी , जिन्हें वो शची से तो छुपा रही थी लेकिन अपने हमराज़ से ना छुपा सकी .
शालिनी एकांत में घंटों सोचती रही कि वो निर्दोष जो अपने समस्त प्रेम का अर्ध्य देकर अपने जीवन को आस्था और विश्वास के सुरों से झंकृत करना चाहती थी .......उसके जीवन को खुशियों और विश्वास से विरक्त करके .........बूढ़े मजबूर माता पिता को जीने कि चाह से विरक्त करके अपने विरक्ति पथ पर अग्रसर हुआ सिद्धार्थ -कौनसा परमानन्द किस तरह पाएगा .....क्या निर्थक नहीं अपने कर्तव्यपथ को छोड़ कर जाने वाला यह विरक्ति पथ !!!!

Monday, September 20, 2010

विरक्ति पथ { भाग ३ }-----------------------रानीविशाल

(अब तक : कालेज ख़त्म होने के बाद से बिछड़ी परम सखियाँ शची और शालिनी दिल्ली में किसी मॉल में अचानक टकराती है । शची मुंबई से पिछले महीने ही आई है........ इसी माल में मेनेजर है । दोनों मिलकर शेष दिन साथ में बिताने का तय करते है ताकि एक दुसरे से सुख दुःख की बातें कर सके । बातों के दोरान शची शालिनी को बताती है अब वो और उसके पति सिद्धार्थ साथ नहीं है .......इम्तिहान के बाद जाब वो अपने पिता के साथ ससुराल गई तो हमेशा के लिए आगई । शालिनी अचंभित है .....शची वृतांत सुनती है )

अब आगे :
परिणाम आने पर मैं बहुत उत्साहित थी ....सिद्धार्थ का पी. एच. डी. भी अब तक पूर्ण हो चूका था । तब पापा के साथ दिल्ली से मनाली अपने ससुराल जाते वक्त मार्ग में पुरे समय मैं सिद्धार्थ के साथ अपने मिलन के सपने सजा रही थी । मनाली की खुबसूरत वादियों में ख्यालों में अपने साथ उन्हें ही पाती . हर्षित मन और ढ़ेर सारी उमंगें...... . शादी के ३ सालों में मैं, भावात्मक रूप से सिद्धार्थके साथ पूरी तरह जुड़ चुकी थी । वैसे भी हम कितने भी मार्डन क्यों न हो जाए अपने पति को परम प्रिय मानना तो हिन्दुतानी लड़कियों की फितरत होती है । रात होते होते हम लोग घर पहुच गए ....सफ़र की थकान ने पापा को बहुत लुस्त कर दिया था । वे पहले ही दिल के मरीज़ थे और उस पर मौसम भी कुछ ठीक ना था अगर भाई की इंजीनियरिंग की परीक्षा नहीं होती तो पापा शायद उसे ही साथ भेजते । घर में सास ससुर हमें देख बहुत खुश हुए ......पापा, आप आराम कीजिये मैं आपका भोजन आपके कक्ष में ही लेकर आजाऊंगी.....कह कर शची एक ज़िम्मेदार बहु की तरह रसोई में चली गई । सास ससुर को भोजन करते वक्त वो महसूस कर रही थी जैसे उनके ह्रदय पर कोई बोझ सा है पता नहीं किस उलझन मैं है ! सबको भोजन करा कर शची अपने पापा के लिए भोजन लेकर कक्ष में जाती है मगर ये क्या ....पापा आपको तो बड़ा तेज़ बुखार हो गया है ! अभी तो दवाई दे रही हूँ ये लेकर आराम कीजिये लेकिन कल तक आप एक दम ठीक ना हुए तो नहीं जाने दूंगी । शची के सास ससुर भी उसके पिताजी से २-३ दिन रुक कर पूर्ण स्वस्थ होने का आग्रह करने लगे ।
शची की सास जो उसे अपनी माँ की ही तरह लगाती थी बड़े प्यार से कहती है शची बेटा तुमने अब तक कुछ नहीं खाया ...सफ़र की थकान है तुम भी भोजन करो और जाकर आराम करो । थोड़ी शरमाई हुई शची कहती है ....नहीं माँ उन्हें आने दीजिये । यह सुन कर शची की सास के सर पर चिंता की लकीरे खीच गई । क्या हुआ माँ आप कुछ चिंतित दिखाई देती है ....बेटा तुम्हे तो पता ही है पहले भी सिद्धार्थ अक्सर शाम को पहाड़ों में टहलने चला जाया करता था .....हाँ , वो कहते थे एकांत में प्राकृतिक सोंदर्य के बिच पढ़ाई अच्छी होती है इसीलिए .....हाँ बेटा , लेकिन अब तो वो शाम से जाता है तो देर रात तक आता है कभी कभी तो १२ -१ बज जाते है रत के । शची सोचने लगी ४-५ महीनो से वो भी नहीं थी शायद अकेलेपन के कारन सिद्धार्थ ऐसा करते है । अपनी सास को समझती है माँ, अब मैं आगई हूँ न सब ठीक हो जाएगा । आप निश्चिंत होकर सो जाइए जब वो आएँगे मैं उन्हें खिला दूंगी । जैसी तुम्हारी ईच्छा बेटा ....कह कर शची की सास भी चली गई ।
घंटों बीत गए सिद्धार्थ का कोई अता-पता न था । शची गैलरी में खड़ी हो कर दूर सड़क पर सिद्धार्थ को देख रही थी .....सर्दी भी बहुत बड़ गई थी । उसका मन अब व्यथित होने लगा ...... सोचने लगी आज तो सिद्धार्थ को पता ही था मैं आजाऊगी फिर भी अब तक न आए ....सहसा शची को कक्ष में किसी की आहट सुनाई देती है , अचानक शची अन्दर आई
आप आगए .....
हाँ आगया .......अपनी ही सोच में डूबा सिद्धार्थ ....गंभीर स्वर में जवाब देता है .
ये क्या ? न स्वेटर न शाल ! बाहर कितनी सर्दी है रात की १ बजने को है खाना भी नहीं खाया आपने अब तक .....कहाँ थे ?
पहाड़ों के शिखर पर एकांत में परमानन्द को महसूस कर रहा था .....वो तो मुझे माँ ने बता ही दिया ...मैं भी मनाली की हसीं वादियों में आपके साथ साथ घूमना चाहती हूँ ३ साल में हम कभी भी नहीं घुमे यहाँ ...
लेकिन आपने गरम कपड़े क्यों नहीं पहने .....सर्दी लग जाएगी ऐसे तो ।
शची , सर्दी या गर्मी का अहसास सिर्फ शारीर को होता है....आत्मा इनसे परे है । आपकी बड़ी बड़ी बातें आप ही समझे चलिए ...भोजन परोस दिया है ...
मैं अमृत सुधापान कर तृप्त हो चूका हूँ । अब भूख कहाँ.....!!
अरे, ऐसे कैसे नहीं खाएंगे.......... इस तरह रहेंगे तो कमज़ोर हो जाएंगे ।
कमज़ोरी इस नश्वर शरीर को आसकती है मुझे नहीं ....इस शारीर का मोह त्याग दो शची .....
माँ के चहरे पर खिंची चिंता की लकीरे शची उसके और सिद्धार्थ के बिच अब बहुत अच्छी तरह देख सकती थी । हिम्मत कर शची सिद्धार्थ के नज़दीक जाने का प्रयास करती है ...लेकिन, तुरंत उसे लगा जैसे सिद्धार्थ की निगाहें उसे इसकी अनुमति नहीं देती ....सिद्धार्थ उससे कहता है शची अब मैं भौतिक जीवन के बंधनों से पूरी तरह मुक्त हो चूका हूँ बल्कि मैं तो कभी इस बंधन में बंधा ही नहीं था। तुम मेरा हाथ थम जिस राह पर चलना चाहती हो वो मेरा मार्ग नहीं .....
मैं तो विरक्ति पथ पर सतत अग्रसर हूँ ।
विरक्ति पथ ??? शची के शरीर में बिजली सी कौंध गई .....
हाँ शची, ये संसार , ये रिश्ते , ये बंधन .....ये गृहस्थ मेरे लिए नहीं ...... मैं तो विरक्ति पथ पर चल कर परमानन्द को प्राप्त कर निर्वाण तक पहुचना चाहता हूँ ।
शची के ह्रदय पर जो आघात हुआ कि उसका संभलपाना मुश्किल हो गया ....सारे सपने क्षणभर में टूट कर बिखर गए ....
मेरे लिए अब कोई रिश्ता अलग नहीं सब एक जैसे है .....संसार की सारी स्त्रियाँ मात्रतुल्य है .....तुम चाहो तो मेरी भावनाएं जानने के बाद भी बिना मुझसे कोई अपेक्षा किये पुरे अधिकार से इस घर में रह सकती हो अन्यथा तुम अपना घर संसार बसने के लिए स्वतंत्र हो ...मुझे तुम्हे रोकने की रत्ती मात्र चेष्ठा नहीं ....सिद्धार्थ फिर से लाइब्रेरी में जाकर अपनी किताबों में खो गया .....
ये रात उसके जीवन में इतना बड़ा कहर गिराएगी शची ने सोचा न था .....सारी रात उसके नेत्रों से उसकी पीड़ा बहती रही .....
क्रमशः

Friday, September 17, 2010

विरक्ति पथ { भाग २ }-----------------------रानीविशाल

(अब तक : बचपन की प्रिय सहेलियाँ शची और शालिनी अचानक शोपिंग मॉल में शालिनी की बेटी मीसा के जरिये मिल जाती है । शची मॉल में ही मेनेजर है वो कई सालों के बाद शालिनी से मिली है । दोनों एक दुसरे को बहुत कुछ सुनना सुनना चाहती है इसीलिए बाकि का दिन हाफ डे लेकर शची शालिनी साथ साथ लंच लेकर शेष दिन साथ बिताने का तय करते है । दोनों मॉल से एक साथ निकल गए )

अब
आगे :
दोनों एक रेस्टोरेंट में जाते है । खाना आर्डर करने के बाद शालिनी खुद को रोक न सकी ......शची, इम्तहान के बाद एक दम कहाँ गायब हो गई थी तुम ? तुम्हे तो पता भी न होगा मैं तुम्हे कितना याद करती थी .....ना कोई ख़त न कोई फोन ! अपनी शादी का कार्ड देने तुम्हारे घर जब गई तो पता चला चाचाजी के देहांत के बाद सब लोग मुंबई चले गए । इम्तहान के तुरंत बाद हम लोग उंटी चले गए थे जब आए तो पता चला इतना कुछ हो गया ।
अपने पापा की याद आते ही शची की आँखें नम हो गई कही न कही उनकी मौत का जिम्मेवार वो खुद को ही समझने लगी थी ....हालाँकि माँ और भाई ऐसा बिलकुल नहीं मानते है ।
ये लीजिये आपका आर्डर मेम .....सर्व कर दूँ ? धन्यवाद हम ले लेंगे। {वेटर खाना रख कर चला गया ....}
दरसल शची की शादी कालेज के प्रथम वर्ष में ही हो गई थी । उसके पापा को २ दिल के दोरे पड़ने के बाद वो यही चाहते थे कि उनकी आँखों के सामने शची का घर बस जाए इसीलिए शची के मामा और मौसी ने मिलकर उसकी मौसी के ही रिश्तेदारों में एक रहिस खानदान के सुन्दर इकलौते बेटे से उसकी शादी कर दी । लड़का सुन्दर था । फिलोसोफी में पी. एच. डी कर रहा था और शची के भी आगे पढ़ने पर ससुराल में किसी को कोई आपत्ति नहीं थी । और क्या चाहिए..... सबने मिलकर जल्द से जल्द शादी कर दी । शची ने भी अपने माता पिता कि ख़ुशी को अपनी ख़ुशी मान उनके इस निर्णय को स्वीकार किया । अब शची वर्षभर अपने ससुराल में रहती और इम्तहान के ३-४ महीनो पहले अपने माईके चली आती । इम्तहान ख़त्म होते ही दुसरे दिन वो अपने ससुराल चली जाया करती थी । ऐसे ही पढ़ाई के ३ वर्ष बीते । लेकिन हाँ जब जब शची कालेज आती उसका अलग ही रुतबा होता ...एक तो उसका उजला रूप उस पर सिंदूर भरी मांग, आधे-आधे हाथों तक भरी चूड़ियाँ, महंगे महंगे कपड़े और उस पर उसकी डाइमंड की ज्वैलरी सारी सहेलियाँ आँखे फाड़ फाड़ कर देखा करती थी । शची और शालिनी में स्कुल के समय से ही प्रगाड़ मित्रता थी ....लेकिन शादी के बाद शची कुछ चुप चुप सी रहती थी । सब समझते थे रहिस घर में शादी होजाने पर शची घमंडी हो गई है लेकिन शालिनी के लिए तो वो हमेशा ही उसकी परम सखी रही ।
शालिनी समझती थी, कि शादी के बाद माहौल बदल जाने के कारण शची में ये बदलाव आया है .....वो अक्सर शची से उसके पति सिद्धार्थ के बारे में पूछा करती और शची सिद्धार्थ की बहुत प्रसंशा किया करती..... सिद्धार्थ बहुत पड़ा लिखा और बुद्धिमान है यही जान कर शची अपने पति के ज्ञान और इस रिश्ते का बहुत आदर करती थी
इधर मीसा अपना खाना ख़त्म कर शालिनी की गोद में सोजती है .....दोनों सखियाँ कुछ देर बाद वही पास एक पार्क में बैठ अपने सुख दुःख की बातें करती है ।
अपने पापा की याद में शची का चहरा एक दम भाव विहीन हो गया था
शालिनी भी दुखी हो गई लेकिन फिर शची को हिम्मत दिलाने लगी माहौल हल्का करने के लिए शालिनी शची से बोली और कहो जीजू कैसे है ? क्या यही दिल्ली में जॉब करते है ? उन्हें लेकर घर आना शची ...
शची अतीत से वर्तमान में लौट आई ...नहीं शालू मैं यहाँ एक शेयर्ड अपार्टमेन्ट में रहती हूँ ३ और लड़कियों के साथ
सब बहुत अच्छी है , वे भी जॉब करती है दरसल मैं पिछले महीने ही मुंबई से यहाँ आई हूँ ......लेकिन सिद्धार्थ जीजू ! {शालिनी बड़े आश्चर्य से पूछा....}
शची शालिनी के अचरझ को उसके चहरे पर देख रही थी ....धीमी आवाज में बोली अब हम साथ नहीं है

क्या ?? कब
से ?

इम्तिहान के बाद जब मैं ससुराल गई तो ..उल्टे पाँव ही आना पड़ा

लेकिन क्यों ? शालिनी ने तुरंत पूछा ......क्योंकि शालिनी अपने कन्धों पर उस रिश्ते का बोझ ढोने में कोई सार न था जिसका कोई अर्थ ही न हो मुझे सिद्धार्थ से कोई शिकायत नहीं शायद मेरा भाग्य ही ऐसा था ...लेकिन उस नाव की सवारी भी कोई कैसे करे जिसका कोई नाविक ही न हो , इसीलिए मैं लौट आई शालू
शालिनी तो ये सब सून स्तब्ध थी वो तो हमेशा से यही जानती थी की शची का वैवाहिक जीवन बहुत सुखी है
शादी के बाद सिद्धार्थ हमेशा अपने शोध कार्य में व्यस्त रहते मुझसे बात करने की उन्हें फ़ुरसत हि नहीं होती । रात रात भर लाइब्रेरी में किताबे पढ़ा करते
घर में सब उनके ऐसे सारा दिन शोध में लगे रहने पर खुश नहीं थे ...चिंता भी करते लेकिन उनके विचार जितना मैं समझी उनके चरित्र को लेकर सोचना व्यर्थ था मुझे लगा गृहस्थी में व्यस्त हो वो हम दोनों की पढ़ाई में बाधा नहीं डालना चाहते ....इसीलिए जी तोड़ मेहनत कर अच्छे से अच्छे अंक लाकर में उन्हें प्रभावित करना चाहती थी
कालेज के अंतिम वर्ष इम्तहान के बाद माँ का स्वस्थ्य ठीक न होने के कारण सास ससुर की आज्ञा से मैं परिणाम तक दिल्ली ही रुक गई माँ के स्वस्थ्य में सुधार हुआ और परिणाम भी निकल गए मेरी आशा के अनुरूप मैंने यूनिवर्सिटी में सर्वाधिक अंक प्राप्त किये थे दुसरे ही दिन पापा और मैं मेरे ससुराल जाने के लिए निकल गए ...
क्रमश :

Tuesday, September 14, 2010

विरक्ति पथ.................रानीविशाल

वी आर सॉरी मैम ........इस पीस में पिंक कलर नहीं है हमारे स्टॉक में आप रेड ट्राई कर के देख सकती है ..यह रेड देखिये । नहीं रेड नहीं लाल रंग बहुत है मेरे पास मेरे पति अक्सर लाल रंग की ड्रेसेस ही लाते है मेरे लिए ...थैंक यू । मीसा, तुम यही इस कुर्सी पर बैठना मैं यह ग्रीन वाला ड्रेस ट्राई कर के देखती हूँ । अपनी ५ वर्ष की बेटी को कुर्सी पर बिठा कर शालिनी ट्रायल रूम में चली गई ।
देखो मीसा, अच्छा लग रहा है न ?.....अरे मीसा ! मीसा कहाँ चली गई २ मिनिट में..... अभी तो यही बैठी थी । शालिनी भाग भाग कर मॉल में अपनी बेटी को ढूंडने लगी । थोड़ी सी ही देर देखने पर जब मीसा न दिखी शालिनी के तो पसीने छूटने लगे, हाथों में कम्पन होने लगा । घबराई हुई शालिनी अपने पति अविनाश को फोन करने की कोशिश करने लगी लेकिन ये क्या मॉल में तो मुआ नेटवर्क ही नहीं मिल रहा अचानक सोचने लगी ....अविनाश भी नाराज़ होंगे कि तुम शोपिंग में इतनी व्यस्त हो गई कि मीसा का ध्यान भी न रख सकी .....तभी उसके मन में ख्याल आया रिसेप्शन पर जाकर पेज करती हूँ । मीसा बहुत समझदार है मेरी आवाज़ सुनते ही जहाँ कही होगी चली आएगी । बस ये ५ ही मिनिट का समय अंतराल था, जिसमे शालिनी के दिमाग में इतने विचार दौड़ गए । वह जैसे ही रिसेप्शन पर जाने को पलटती है .....एक महिला कि गोद में मीसा को देख तमतमा उठती है । वह महिला मीसा को गोद में लिए थी और मीसा उसके साथ खुश होकर खेल रही थी ।
ओ..... हेलो मीस, बच्चे चुराने का बिजनेस करती हो क्या ? अभी पुलिस को कॉल करती हूँ .....ऊँचे स्वर में उस महिला को झिड़कते हुए शालिनी ने मीसा को अपनी गोद में ले लिया । जैसे ही दोनों कि आपस में नज़रें टकराई... अरे शालिनी तुम ! सुनते ही शालिनी ने उसे ध्यान से देखा .....शची तुम ? और पल भर मैं दोनों सखियाँ पुरानी यादों के गलियारों में घूम आई । इतने साल बाद भी दोनों में उतना ही प्रेम भी तो था । शालिनी ने तुरंत शची को गले से लगा लिया । सॉरी शची, मैंने तुम्हे पहचाना ही नहीं ....दरसल कभी सोचा नहीं था कि तुमसे इस तरह यहाँ मुलाकात होगी । कोई बात नहीं शालू, तुम माँ हो न घबराना तो स्वाभाविक ही था । वो हुआ यूँ कि मैं यहाँ से गुज़र रही थी इतनी प्यारी बच्ची को बैठे देख उससे बात करने का दिल किया और बात करते करते उसे प्यार करने को गोद में लिया ही था मैंने कि मेरा एक ज़रूरी फोन आगया ...... यहाँ मॉल में तो नेटवर्क मिलाता ही नहीं तो मैं थोड़ा गेट तक चली गई लेकिन बच्ची को गोद से उतरना ही भूल गई ....गलती तो मेरी ही है ।
खैर छोड़ो ....ये बताओ तुम यहाँ कैसे ? मैं यहाँ के सेल्स डिविज़न की मेनेजर हूँ ....अरे वाह ये तो बड़ी अच्छी बात है । तुम इतने साल कहाँ थी शची और जीजू कैसे है ?
मैं खुश हूँ.... तुम्हे इस तरह देख बहुत अच्छा लग रहा है । मीसा बिलकुल तुम्हारी तरह लगती है इतने साल में तुम बिलकुल नहीं बदली । बचपन की दोनों सहेलियाँ इतने साल बाद एक दुसरे से मिलकर बहुत खुश थी । दोनों ही एक दुसरे से बहुत कुछ पूछना चाहती थी और बताना भी ।
घड़ी की और निगाह डालते हुए शची कहती है ........शालू, अगर तुम व्यस्त न हो तो आज हम लंच साथ ही लेते है । मैं हाफ डे लेलेती हूँ कही बैठ कर इतने बरसों की सारी बातें करेंगे ...अरे क्यों नहीं, अविनाश तो अपना टिफ़िन ऑफिस लेकर ही जाते है । ये ठीक भी रहेगा..... मेरा भी तो इतनी छोटी सी मुलाकात से मन न भरेगा और तुमसे बहुत कुछ जानना भी तो है । पता है ....मैंने तुम्हे कितना याद किया (और इसी तरह बातें करते करते दोनों शोपिंग मॉल से बहार निकल गई शची ने बड़े प्यार से मीसा को फिर अपनी गोद में उठा लिया और शालिनी अपने शोपिंग बेग्स उठा कर चल पड़ी )
क्रमशः

Friday, September 10, 2010

कह ना सकेंगा -----------रानीविशाल














पलकें
उठी
उठ कर झुकी
पल में सावल
करती कई
न मिली नज़र
कभी कही
पर नज़र में बस
हरसू वही
न नाम तो लिया
मगर
हर बात में
वही
वही
दिल जाने
वो नहीं कहीं
फिर भी ढूंढे उसे
इधर उधर
उसके नाम से
हर शाम ढले
उसी के नाम से
होती सहर
खामोशियों का
गुंजन वही
बेकली वही
तड़पन वही
न दुआएं अब
करें असर
दूभर हुआ
पहर पहर
क्यों न
खुद ही राही तक
चलकर अब
मंज़िल ही आजाए
पल पल इतना
तड़प लिए
अब और ना
तड़पाए
वो आजाए
बहार बन कर
मन की बगिया
महकाए

हर वक्त
अब तो दिल को
उसी पल का
इंतज़ार है
क्योंकि ये जानता है
दिल मेरा
यूँ तो
कह
ना सकेंगा
प्यार है ......!!

Thursday, September 2, 2010

अक्सर रुखी रातों में ......रानीविशाल















अक्सर रुखी रातों में
बेबस यादों के साए
जब मंडराते है
इधर उधर

तब दर्द मसकते
दिल के छाले
चटक चटक कर
फूटते है

तब टिप टिप कर
रिसने लगता है
वो दर्द का दरिया
जो छुपा हुआ था
तपस आलोक में
जो कई तहों में
दबा हुआ था

जू रिसने लगा हो
मर्म की मांद में
मेंह का पानी
जो सुख जाता है
झंझावात के बाद ही
छोड़ कर पत्थरों पर
कुछ मायूस से निशान

यूँ ही सिमट जाता है
दर्द और कशिश का ये रेला
खामोश और तनहा
तिमिर मिट जाने के बाद

बस छुट जाते है लकीर नुमा
बंज़र से निशान इनके
जो दिखाई नहीं देते
बस महसूस हुआ करते है .....

Wednesday, September 1, 2010

बड़ा नटखट है रे .........रानीविशाल




















आज
श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर सभी ओर कृष्ण भजन और कृष्ण लीला का माहौल छाया रहता है, तो मैंने सोचा क्यों ना आज आपको कृष्ण लीला ही दिखाई जाए ....हाँ मेरे लिए तो यह कृष्ण लीला ही है । निश्चित तौर पर आपने भी आपने जीवन में श्री कृष्ण की ऐसी बाल लीलाओं का आन्नद लिया होगा और अपनी आँखों से श्री कृष्ण के बालरूप के दर्शन भी किये होंगे .....आज मेरी आँखों से आप यहाँ नटखट कन्हैया के चपल चंचल स्वरूप को देखिये । देख कर आप भी यही कहेंगे कि बड़ा नटखट है रे ...







चल चित्र में नज़र आने वाले नटखट कन्हैया मोहिनी रूप धर (मेरी बिटिया अनुष्का के रूप में) मेरे घर आँगन और जीवन में खुशियाँ बिखेर रहे है ।

आप सभी को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाए ...!!
जय श्री कृष्ण

Monday, August 30, 2010

टूटे तारों ने तो किस्मतों को सवाँरा है .......रानीविशाल














कैसा मंज़र है, ये क्या गज़ब नज़ारा है
दर्द का दरिया, और दिल गमों का मारा है

इतने तनहा है की, परछाइयों से डरते है
अब तो बस दिल को, अंधेरों का ही सहारा है

ठोकरें खा कर, ज़माने की ना घायल हम है
वो तो अपने थे, जिनके बोलो ने हमको मारा है

महफ़िल में अपनो की, तो हरदम रुसवाई मिली
साथ गैरो का ही, अब तो दिल को प्यारा है

टूट कर बिखरे भी, 'रानी' तो क्या ग़म है
टूटे तारों ने, तो किस्मतों को सवाँरा है

Friday, August 20, 2010

मेरे भैया .....रानीविशाल

आज जब देश के हर घर में बहनें भाइयों की कलाई पर अपने प्यार और विश्वास को रेशम के खुबसूरत धागे में संजो कर बाँध रही हैं और भाई भी पुरे आत्मप्रेम और निष्ठा के साथ आस्था के इस अटूट बंधन को अपनी कलाइयों पर सजा कर अभिभूत हो रहे हैं.....वहीँ कुछ और हम जैसे भाई बहन भी है जो आज के दिन भी दूर हैं लेकिन हम सभी जानते हैं की यह दूरी सिर्फ भौगोलिक दूरी ही हैं।
भावनाएँ कभी दूरियों की मोहताज नहीं रही ...फिर भी आज के दिन जब इस दूरी का ख्याल मन में आया तो मन द्रवित हो गया ......आँखों से बहते प्रेम के साथ जो भाव बहने लगे उन्होंने कविता का रूप लिया .....

आज होगी सुनी तुम्हारी कलाई
जब यह याद मुझे आई
दिल को जाने क्या हुआ
मेरी आँख भर आई
दिल से निकली ये दुआ
चाहे दूर रहो तुम
या मेरे पास रहो
जहाँ भी रहो न उदास रहो
चाँद तारों सी रोशन हो दुनिया तुम्हारी
वो मंज़िल मिले जो तुमको हो प्यारी
न संघर्ष मिले, ना आए मुश्किलें
तरसे सफलता तुम्हारे लिए ....
ये उम्मीदों की डोर
जनम का बंधन हैं
जिसका मोल न कोई
गहना, साड़ी या कंगन हैं
याद तो तुम्हे भी आरहे होंगे
दिन वो सुहाने
ढेरों शरारते और बीसों बहने
वो हँसना, वो रोना, वो झगड़ा पुराना
जो मेरे आँसू बहे तो कोहराम मचाना
ओ भैया मेरे तुम हो
ज़माने भर की खुशियों से प्यारें
सदा जगमगाते रहें मेरे आँखों के तारे ....


चलते चलते इस पवित्र प्रेम को बखूबी बयां करता यह गीत जो हमेशा से मैं अपने तीनो भैया को याद कर गुनगुनाया करती हूँ .....सच कहूँ तो मैं क्या दुनिया की सभी बहने अपने भाइयों के लिए यही सोचती हैं ।

आप सभी को रक्षाबंधन की ढेरों शुभकामनाए !!



Thursday, August 19, 2010

बूढी पथराई आँखें .....रानीविशाल




















बूढी
पथराई आँखें
एक टक त़कती
सूनी राहों को
जहाँ फैला है
सूनापन
इनकी खाली
जिंदगी
सा
ये सूनापन ये तन्हाई
अब गैर नहीं
रोज़ मिल जाया करती है
वृद्धाश्रय के
गलियारों
में
जहाँ ये आँखें
ढूँढती रहती है
बीते समय के निशान
यहाँ खो गए
सब रिश्ते नाते
रुखी, सल पड़ी
चमड़ी
से खोई
नमी
जिस तरह

हो चुकी है अब
शिथिल भावनाएँ
जू हुई जाती है शिथिल
चेतना तन की
फिर भी अक्सर
जतन से
जाकर कई बार
खिड़की के पास
ये बूढी पथराई आँखें
घंटों एक टक
तका करती है
इन सूनी राहों को
की बी
इन राहों पर
आता हुआ कभी कोई
अपना भी दिखे
अक्सर यूँही
ये
बूढी पथराई आँखे....
तकती रहती है
इन सूनी राहों को....!!

Monday, August 16, 2010

एक चहरे पर कई चहरे { रानीविशाल }






















एक
चहरे पर कई चहरे लगाए रखते है लोग
सच्चाई को कितने पर्दों में छुपाए रखते है लोग

लबों पर नाम है जिनका उन्ही से शिकवे हज़ार है
यूही नफ़रत को दिलों में दबाए रखते है लोग

फ़र्ज़ से अपने ही खुद मुह मोड़ कर बैठे रहते है
वफ़ा की उम्मीदे सभी से लगाए रखते लोग

उनके रुतबे ओ शान का बस ध्यान हो सदा
कमज़ोर को हर जगह सताए रखते है लोग

इस ज़िन्दगी में "रानी" दिए लोगो ने बहुत ज़ख्म
यादों में फिर भी अक्सर जगह बनाए रखते है लोग

यूँ बदली है दुनिया( रानीविशाल)

खामोशी भी
सरगम गाए
करे तन्हाई अब
चहल पहल
पंख हजारों मिले
सपनों को
अरमानो ने
भरी उड़ान
खिले मन की
बगीया में
कई फूल
अचानक
उमंगों के भँवरें
गुन गुनाए
तन मन
महक उठा
चन्दन सा
बरखा
भी गीत
ख़ुशी के गाए
इन्द्रधनुष से
रंग सजे और
खुद मैं ही सहसा
बनी बहार
बस दो पल मैं
यूँ बदली है
दुनिया
हुई है जबसे
आँखें चार...!!
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आज आपको केलिफोर्निया के कुछ सिनिक ड्राईवस के चित्र दिखा रही हूँ । ये पॉइंट्स लॉस एंजेलिस से सेन डिएगो तथा लॉस एंजेलिस से सेन फ्रांसिस्को जाते हुए आते है । इनमे सी ए १ , हाफ मून , और १७ माईल्स प्रमुख है । हर एक पॉइंट आपने आप में बहुत खुबसूरत है । प्राकृतिक सुन्दरता से संपन्न ये स्थान रुकने को मजबूर करते है ....देखिये




























































Friday, August 13, 2010

चलो ऐसा हिन्दुस्तान बनाए........... और एक वीडियो












ये
वक्त नया है
नया साज़ ले
सब मिलकर
नई एक तान बनाए
नफ़रत का हो अब
नाश सदा को
स्वर अमन के
हरसू छा जाएं
नए जोश से
बढकर आगे
हम अपनी मंज़िल को पाएँ
अन्न मिले
भूखे पेटों को
और नन्हे हाथ कलम उठाए
अज्ञान मिटे
सब भ्रम भी हटे
घर घर तक सब तकनीके जाएं
जहाँ प्रेम धर्म हो
प्रेम ही जाती
चलो ऐसा हिन्दुस्तान बनाए
आओं ऐसा हिन्दुस्तान बनाए !!

जय हिंद

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{देखा मम्मी ....आपने }

आदरणीय ताउजी और गिरीश भाईसाहब के आग्रह पर अनुष्का की वर्तमान शरारतों से आपका परिचय करने के लिए ये वीडियो दिखा रही हूँ । यह लॉस एंजिलिस में हमरे होटल के पास ही चल रहे समर केम्प का है । जहाँ जाकर अनुष्का की मस्ती और भी परवान चढ़ गई है ।

Thursday, August 12, 2010

एक कविता और कुछ नए द्रश्य

उलझती जाती है
हर बात
उन यादों के
जंजाल में जैसे
जिन यादों को
बातों की ज़रूरत ही नहीं

दोगे हर दोष
मुझ पर ही तो तुम
भूल जाओगे
मेरे उस हाल
उन हालत को सभी

न सोचोगे खुद
क्या किया तुमने
अपनी गलतियों को
तुम दिल
से भुला दोंगे

हाँ ये गिला है
मेरा की
मैंने समझा
मैं भी इंसान हूँ
सांस लेने का
हक़ है
मुझको भी

ना जाना था कभी
की तुम तो
मुझे बेजान समझते हो

तुम्हारी हर
बेरुखी पर भी
कर के बस
वफ़ाएँ तुमसे
न सोचा था
कभी की
मिलेंगी
इस कदर
रुसवाईयाँ हमको !!

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केलिफोर्निया अमेरिका का बहुत ही बड़ा बड़ी आबादी वाला खुबसूरत राज्य है । इसी राज्य की लॉस एंजेलिस काउंटी में हालीवूड है । केलिफोर्निया के एक और बहुत ही बड़ा रेगिस्तान , एक और समुद्र और दूसरी और विशाल पहाड़ियां यहाँ की खूबसूरती में चार चाँद लगाती है । यहाँ का मौसम सोने पर सुहागा ........ हमेशा ही ख़ुशनुमा होता है । लॉस एंजेलिस में बहुत ही खुबसूरत और साफ सुथरे बीचेस है । जिनमे रोडेंनडो बिच, मैनहटन बीच, लोंग बीच, हरमोसा बीच और संता मोनिका बीच इत्यादि है । जहाँ सी शोर के मज़े लेने के साथ साथ और भी बहुत कुछ है करने को जैसे कायक, नोर्मल और पवार बोट्स रेंट पर ली जा सकती है ।। गाईडेड बोट टूर लिए जासकते है जिनमे व्हेल वाचिंग और अंडर वाटर फिश वाचिंग प्रमुख है पेराग्लईडिंग , फिशिंग और शोपिंग के साथ साथ बोर्डवाक और राईडस भी बहुत बड़ा फन है यहाँ करने को .....रोडेंनडो बिच की खासियत यही है की यह नोर्मल बिचेस की तरह सेंड बिच नहीं है मानव निर्मित राक्स की बोर्डर से इसका बड़ा किनारा बनाया गया है बोर्ड वाक तो सुन्दर है ही फिशिंग के लिए यहाँ बहुत लोग आते है । यहाँ सील बहुत आसानी से दिखाई देते है । हमने भी यहाँ का एक गाईडेड बोट टूर लिया था जिसमे बोट के ऊपर से तो आप बे एरिया और दूर तक निहार सकते है साथ ही साथ बोट के निचले भाग में जाकर कांच की दीवारों से दोनों और सुन्दर मछलियाँ देख सकते है ...मतलब लाइव एक्वेरियम का आनंद है । साथ ही साथ बोर्ड वाक का अपना मज़ा है । यहाँ हर जगह ढेर सारे पाम के वृक्ष दिखाई देते है ....जो इसे और सुन्दर बना रहे है ।
यह कुछ चित्र है रोडेंनडो बिच और संता मोनिका बीच की खुबसूरत शाम के :





























Wednesday, August 11, 2010

घर आए फिर परदेसी .....{वापसी}

आप सभी ब्लॉगर साथियों को मेरा सादर नमस्कार .......लगभग चार महीनो के अवकाश के बाद मैं आप सभी के समक्ष पुन: उपस्थित हूँ ।
पिछले सभी दिनों की ढ़ेर सारी बातें लेकर जिस तरह कविताएँ लिखना एक नशा है उसी तरह ब्लॉगिंग भी बड़ी लत है इससे मज़बूरीवश दूर हुआ जसका है मगर इसे छोड़ना मेरे बस की बात नहीं वो भी जब , जहाँ मुझे आप सभी का इतना प्यार और प्रोत्साहन मीलता है ।
इन दिनों जाब मैं ब्लोगिंग से दूर रही लगभग सभी साथियों ने समय समय पर मुझे याद किया अपनी चिंता और प्यार जताया उसके लिए मैं ह्रदय से आप सभी की आभारी हूँ और दिल से दुआ करती हूँ की आपका प्यार इसी तरह बना रहे ।
अब हुआ यूँ कि मार्च महीने मैं न्यू यार्क से न्यू जर्सी शिफ्ट होने के बाद अनुष्का (ईवा) बहुत अस्वस्थ हो गई ....तक़रीबन दो महीनो में उसका स्वस्थ्य संभला और यहाँ बहुत ही सुहाना मौसम शुरू हो गया फिर क्या था ......हर साल कि तरह इस बार भी हम समर में फिर पर्यटक बन गए और प्रकृति की सुन्दरता को अपनी आँखों के माध्यम से ह्रदय में बसाने निकल पड़े । सच्चे मायनों में टूरिस्ट का लाइफ स्टाइल भी खानाबदोश की तरह ही होता है । उसी जीवन के अनुभव में अपने ही ब्लॉग तक पहुचने का समय न जुटा पाई .......अन्य ब्लॉग पर तो न जाने कितना कुछ मिस कर दिया मैंने.... पिछले दो महीनो में बहुत सुन्दर जगहों पर जाने का मौका मिला तभी से सोच रही थी की इतना सब कुछ है अपने ब्लोगर साथियों से बाटने को, सुन्दर द्रश्यों को निहार कर जो ख़ुशी हो रही थी अकेले सही नही जारही थी आपको बहुत कुछ बताना तो था ही लेकिन अब जाकर कुछ समय भी मिला और खलबली तो दिल में तब हुई जब मैं लोस एंजेलिस में बने डीज़नी लैंड में एक दिन बॉलीवुड म्यूजिक परफोर्मेंस देख रही थी .....हिंदी फिल्मो के गानों पर धिरकते विदेशी कदमो और उसे देख झूम कर तालियाँ बजाते हाथों को देख दिल ख़ुशी से भर आया बहुत गर्व भी महसूस हुआ ....मन मैं आया की सबको बताऊ बदलते समय के इस दौर मैं भारत के संगीत ने किस तरीके से विश्व को आकर्षित किया है ..... तभी मुझे याद आई अपने ब्लॉग की बस समय ही तो जुटाने की जरुरत है तो क्यों न मैं अपनी आँखों से आप सभी को वो सारे मंज़र दिखाऊ जिन्हें देख कर मेरा मन प्रफुल्लित हो जाता है ।






















फिलहाल इतना ही कुछ और सचित्र अनुभवों के साथ मिलूंगी अगली पोस्ट में
धन्यवाद !!





Monday, April 19, 2010

कभी देखी है ऐसी मनुहार ??..........दो कविताएँ {रानीविशाल}

कहते है कि सावन के अंधे को सब हरा ही हरा दिखाई देता है .....बस कविता प्रेमीयों के साथ भी कुछ ऐसा ही है जिन्हें कविताएँ कहने और पड़ने का रोग लग जाए, फिर क्या उनका तो सारा क्रिया-कलाप यहाँ तक की वार्तालाप भी काव्यमय ही होकर रह जाता है
जीवन की बहुत ही सुन्दर अविस्मर्णीय स्मृति की बात है .... हमारे घर में मेरे दादाजी (बप्पा), पिताजी (डैडीजी) , माताजी (माई ), भाईसाब और दोनों छोटे भाई सबके सब कविताओं के बहुत शौक़ीन है मेरा हाल तो आप से छुपा नहीं मौका था हमारे बड़े भाईसाब की शादी का ....माई-डैडीजी की शादी के बाद यह घर में पहली शादी थी, मतलब सबका उत्साह तो आसमान को छू रहा था हर कोई अपने स्तर पर जबरदस्त तैयारियों में लगा था बात आई शादी के निमंत्रण पत्र की तो उसमे भी कोई कमी क्यों रहे !!

हमारे यहाँ शादी के निमंत्रण पत्र के कुछ दिनों पहले कुछ खास रिश्तेदारों को विशिष्ठ आमंत्रण पत्र भेजा जाता है जिसे मनुहार पत्र कहते है लेकिन हमारे लिए यह तय करना कठिन था की किसे मनुहार भेजे क्योंकि सभी खास थे इसलिए एक ख़ास निमंत्रण पत्र तैयार करवाया गया जिसमे कवर के बाद तीन पत्र हो एक मनुहार का दूसरा , परिचय और तीसरा कार्यक्रम सूची का और मनुहार के लिए एक कविता लिखी मैंने, जिसे सारे अतिथि गण ने बहुत सराहा कुछ ने तो निमंत्रण पत्र बहुत सहेज कर रख लिये
रचना का शीर्षक था "मीठी मनुहार" जो ये रही ...


मीठी मनुहार

सपनें बुन बुन , कलियाँ चुन चुन मनोरम बेला आई
प्रभु कृपा और प्यार आपका जो, घर बाजेगी शहनाई

साथ दिया है सदा सदा ही "प्रियजी" अब इतनी प्रीत निभाना
राह तकेगीं अखियाँ "पूज्य " आप खुशियाँ बाटने आना ॥

भूल हुई या चूक कोई हो, ध्यान सभी तज देना
अनमोल बड़ा है प्रेम आपका सानिध्य "रतन रज" देना ॥

यतन-जतन कर आ ही जाना , आप ही से सुखमय हमारा संसार है
पीपल सी पाती पर, कुमकुम सी स्याही और अक्षत सी पावन मनुहार है ॥

ललाहित मन , उत्सुक नयन, करबद्ध तन और दिलों में आपका प्यार है
मनमोहिनी सी इस बेला में "पूज्यवर" बस आपका इंतज़ार है ॥

रानीविशाल

भाईसाहब की शादी के दो महीने बाद ही मेरी शादी तय हुई .....तीन भाईयों ( एक बड़े दो छोटे.....नितिन, सचिन, विपिन) की इकलौती बहन और माई डैडीजी की लाड़ली बेटी की शादी भी धूम धाम से ही की गई उसमे भी निमंत्रण पत्र का प्रारूप यही रहा लेकिन इस बार मनुहार लिखने वाले थे, डैडीजी......उनकी लिखी यह कविता मेरे जीवन की अनुपम कृति बन गई कविता का शीर्षक था "मधुर अनुग्रह" जो यह रही


मधुर अनुग्रह

बिटियाँ "रानी" हम सबकी दुलारी है
घर-आँगन की यह शोभा न्यारी है ॥

भगवती सृजन कर सृष्टि में आई है
अब विवाह आयोजन की अनुपम छटा छाई है ॥

"श्री केदारधाम " में विशाल परिहार है
पहले भी सब आए थे, पुन: "मीठी मनुहार" है ॥

अबके भी पधारियेगा यह दिल की पुकार है
केवल अनुग्रह की बात नहीं "श्रद्धेय" यह आपका प्यार है ॥

रूठना मनाना तो दुनिया की रीत है
मनुहार बड़ी नहीं बड़ी आपकी प्रीत है ॥

न बहाने बनाना, न अपनों को भूलाना
डगर निहारेंगीं पलकें, दरस दे राहें सजाना ॥

'मुनियाँ' और 'मुन्नी' की लाज रख जाना
"पूज्य श्री" आगमन से खुशियों को दुगनी बनाना ॥

ओमप्रकाश ठाकुर

इस कविताँ को कितनी गहराई से लिखा गया है जानने के लिए कुछ और बाते बताती हूँ .......कुंडली के हिसाब से मेरा जन्म नाम दुर्गा है और मेरे बड़े दादाजी प्यार से मुझे भगवती बुलाया करते थे इस शादी में हम लोगो को दुल्हे (विशाल) वालों के यहाँ जाना था मतलब ससुराल में जाकर ही शादी की थी इस कारण स्थान को संबोधन "श्री केदारधाम" दिया गया मेरे ससुरजी (पापाजी) का नाम केदार जोशी है और अंतिम पंक्तियों में मुनियाँ और मुन्नी का ज़िक्र किया गया है जहाँ मुनियाँ तो स्वाभाविक है मैं ही हूँ लेकिन मुन्नी मेरी माताजी (माई ) का प्यार का नाम है आप भी आनन्द लीजिये इन दोनों कविताओं का जो मेरी सुखद स्मृति का हिस्सा है और बताइए कैसी लगी ऐसी मनुहार ??