Friday, December 10, 2010

मखमल की चुभन

भारी गहने, जरी वाले कपड़े और फूलों से गठा माथा आँखों में अजीब सी उदासी लिए जोत्सना अपने कक्ष में बैठी किसी सोच में डूबी है . अचानक कक्ष में उसकी सास का आगमन होता है..... जोत्सना, बाहर बैठक में इतने मेहमान थे . सबको ठीक से विदा करना तो दूर तुम यहाँ फट से चली आई .ये भी कोई बात हुई भला !! 
जोत्सना अचानक चौंक कर कहती है....... माजी, बैठे बैठे पैर सुन्न हो गया था इसीलिए यहाँ चली आई . इतने में ही जमुना काकी (महरी) कहती है ...अरे कोई बात न है बहुरियाँ ऐसे में तुमका आराम की ही जरुरत रही . मेहमान तो सब चले गए . अब जब लल्ला ले आओगी तब भी तो आएँगे तब मिलिहो फिर से .....कहते हुए जमुना बैठक से कुछ सामान लेकर आरही है . अम्मा जी बहुरिया के पीहर से एक से एक भेट लाए थे बियाई जी . 
तू चुप भी रह जमुना, महारानी के तेवर और भी बड़ जाएंगे. क्या कोई इसी के घर से आई है भेंट ! मेरे मिलने वालों की भेंट के आगे तो यह कुछ भी नहीं . हाँ पर तुझे भी क्यों न पसंद आएँगे ?? महरियों की पसंद जैसी ही तो पसंद है इन गाँव के लोगों की. जमुना काकी अपना सा मूह लेकर चली गई... मगर माजी की बात अभी पूरी कहाँ हुई थी . देखों जोत्सना, तुम्हे बुरा लगे या भला लेकिन कहे देती हूँ इस बात पर भास्कर से कुछ कह कर घर में क्लेश न करना .....तुम्हारे माता पिता को इतना विचार करते न बना कि छोटा गाँव है चिकित्सा सुविधा का आभाव बता कर बेटी की जचकी के खर्चे से तो उन्होंने फट से हाथ साफ कर लिए अब क्या बेटी की गोद भराई मैं थोड़ा खर्च नहीं कर सकते थे ...!! तुम्हारी माँ तो मुख्य अतिथि की तरह आई रस्म ख़त्म होते ही हाथ जोड़ कर चल दी. यहाँ काम में हाथ बटाना होगा, यह भाव तो आए ही ना उनके मन में  .. ..मैं क्या कहूँ माजी उनके रुकने पर भी आपत्ति होती है कि बेटी के घर लोग रह कैसे जाते है !! पिताजी के रिटायरमेंट में भी अभी समय है उन्हें ऑफिस का बहुत काम होता है लेकिन माजी वो अपने सामर्थ्य के हिसाब से इतना कुछ लाए तो है .... तुम इतना कुछ तो ऐसे कह रही हो जैसे १-२ गाड़ी भर कर सामान और किलो भर सोना लाएं है . जोत्सना के आँखों से आँसू बह पड़े फिर भी माता पिता का अपमान सहना किसी लड़की के लिए जहर के घूंट पिने जैसा ही तो है. बहुत चाह कर भी वो खुद को रोक न सकी और कह उठी माजी आप भी जानती ही है प्रसूति के लिए मुझे गाँव न भेजने का निर्णय आपके बेटे का है मेरे माता पिता का तो नहीं .....जोत्सना के बोल पुरे ही कहाँ हुए थे कि उसे वज़नदार जवाब सुनने को मिलता है;
"हाँ जैसे हमें तो पता ही नहीं कि यह पट्टी उसे किसने पड़ाई है ....जाने क्या जादू कर दिया है बेटे पर, अब तो कुछ सुनता ही नहीं" . 
फर्क सिर्फ इतना ही था कि इस बार यह जवाब जोत्सना को अपनी सास से नहीं बल्कि ससुर जी से मिला था.बेचारी के ह्रदय को बड़ा आघात हुआ लेकिन सास को तो बड़ा बल मिला, आज जंग में उनका साथ देने के लिए एक सशक्त समर्थक भी है .
महरियां घर में इधर से उधर घूम घूम कर अपना काम कर रही थी उन्हें दूसरी ओर काम करने का निर्देश देते हुए भास्कर के पिता ने एक और विषेला बाण दाग ही दिया ....गाँव में रिश्ता कर कर पछता गए जी तुम ठीक ही कहती थी, पढ़ी लिखी लड़की के चक्कर में कुछ हाथ न लगेगा उल्टा बेटा ही हाथ से चला गया . घैर्य का बाँध टूट ही गया और संतापित जोत्सना कह ही उठी पिताजी ईश्वर साक्षी है मैंने आपके बेटे से कुछ नहीं कहाँ और फिर भी आपको अपने समन्धी से शिकायत ही है तो उन्ही से कह लीजियेगा फिलहाल मुझे न दीजिये अपने माता पिता के नाम के ताने ....क्षमा कीजिये लेकिन अभी मेरे लिए यह तनाव ठीक नहीं .भीगी आँखों से दबे शब्दों में अनुरोध स्वरुप जोत्सना ने ये सब कहा लेकिन इस अनुरोध का असर किस पर होना था .....लो तो अब हमारा कुछ कहना भी इनकी सेहत पर बुरा असर कर रहा है जैसे हम तो अपने बेटे का बुरा ही चाहेंगे .....भगवान बचाएं आज कल की लड़कियों से एक कहों तो दस पकड़ाती है ....कहते हुए भास्कर के पिता दुसरे कक्ष में चले गए !!
अब क्या था माताजी का गुस्सा अपने चरम पर पहुच गया ....वाह तो यह सिखाया है तुम्हारी माँ ने तुमको इस तरह बात की जाती है बड़ों से !! अपने सास ससुर को दो टुक जवाब देते तुम्हे शर्म नहीं आती जोत्सना .......वे आगे कुछ कहती उसके पहले ही जोत्सना बोल पड़ी माजी मुझे क्षमा कीजिये मैं आपके सामने बोल रही हूँ लेकिन कृपा करे अभी ऐसी अवस्था में मुझे न रुलाइये मेरी ही बात नहीं बच्चे के स्वस्थ के लिए भी अच्छा नहीं है ...कल ही डॉक्टर ने हमें सचेत किया है मेरा रक्तचाप उच्य हो रहा है कई दिनों से   ....जो ठीक नहीं .
ओह्हो !! तो अब यह दोष भी हमारे ही सर माड़ो तुम "देखों तुम रो रही हो ये तुम्हारी मर्ज़ी है. हम तुम्हे नहीं रुला रहे है कहते हुए जोत्सना की सास चली गई ...कही न कही उनके मन में डॉक्टर की चेतावनी का डर था लेकिन अपने पोते के लिए ...
अचानक ही कुछ कांच के बरतन टूटने की आवाज़ जोर से आती है .....अरे क्या हुआ !!
जमुना काकी दौड़ कर आती उसके पहले ही माजी पहुच गई . जमना काकी की बहू कजरी के हाथ से कुछ कांच के बर्तन छुट कर टूट गए ... हे भगवान इतना महंगा नक्काशी वाला डिनर सेट था . अरी तुझे भी यही सेट मिला था तोड़ने को . जमुना तेरी बहूँ में कोई लच्छन नहीं है. इतना महंगा सेट तोड़ दिया एक पैसा न मिलेगा आज की मजूरी का तो तुझे ...माफ़ करी देव अम्मा जी भेले ही पैसो न देना, नाराज़ न हो इस पर. पेट से है बिचारी .....हाँ तो इसका मतलब क्या कुछ भी नुकसान करेगी . क्या यह अनोखी है जो पेट से है .....कहती हुई घुस्साई मालकिन चली गई . 
जमुना काकी बहुत प्यार से अपनी बहू को उठाते हुए कहती है का भओ बहुरिया ....माए पैर सुन्न पड़ गओ सो उठते ही सामान हाथ से छुट गओ . ओ कछु नाई  बहुरिया रो नाही, ऐसी दसा में कोई रोत है भला !! चल चुप हो जा तो ....यो काम हऊ करलेत हूँ . तू जा बहुरिया के कमरा की सफाई कर दे फिर दोई घर चले है .
जोत्सना दरवाज़े की आढ़ से सब कुछ देख रही थी. साथ ही साथ स्पष्ट रूप से देख रही थी उस अंतर को जो महल के भीतर पढ़े लिखे पैसे वालों के छोटे विचार में और बड़ी सी पुलिया की छाँव में बसी छोटी छोटी झोपड़ पट्टीयों में रहने वाले अनपढ़ गरीब लोगों के अच्छे और भले विचारों में था . कजरी के कक्ष में प्रवेश करते ही जोत्सना बोली क्यों री, तुझे कहा था न ज्यादा वज़न न उठाया कर. फिर क्यों इतना सब उठा रही थी ?? 
भाभी माए की भी उमर है अब इतना काम कर थक जाती है .  उन्ही का हाथ बटाने को कर रही थी . कहते हुए कजरी जोत्सना के चहरे की ओर देखते ही उसकी सूजी हुई लाल आँखें देख कर कहने लगी ये क्या भाभी तुम रोई हो . माए कह रही थी एसी दसा में रोना अच्छा नहीं........... लल्ला घबरात है गरभ में . 
कुछ कह दियो का आम्मा जी ने ?? अरे ना री वो भला मुझे कुछ क्यों कहेंगी . वो भी एसी दशा में और आज मेरी गोद भराई के दिन !!
वो मेरे सर में बहुत दर्द होने लगा तो आँसू निकल आए ....अब हमसे न छुपाओ भाभी !
तुम इतनी धीरज वाली एसन दरद से कहाँ रोने लगोगी, तोके माँ बाबू गाए न अच्छा नहीं लग रहा होगा इसीलिए न ??  हम न जान सकेंगी का आखिर हम भी तो पीहर छोड़ कर आई है . आओं थोड़ा सर दबा दे.....तकिये पर सर रख कर कजरी जोत्सना का सर दबाने लगी . जोत्सना लेटे लेटे कजरी से कहती है तू  बड़ी भाग वाली है रे कजरी. जमाना काकी कितनी अच्छी है तेरा कितना ख्याल रखती है. अच्छी तो माए है ही मगर ऐसे मैं तो सब ही अपनी बहुरिया का ख्याल रखे है और तौके भाग का कम है भाभी ?? इतनी पढ़ी लिखी हो बड़े स्कूल की मास्टरनी बन गई , भैया जी जैसे अच्छे रूपवान पति है, महल में बहू बन कर आई हो पैसा लत्ता की किसी चीज़ की कोई कमी है का ?? 
इन सभी चीजों के बाद भी जिस कमी का अहसास जोत्सना प्रतिपल कर रही थी वह तो बस उसे सहन ही करनी थी कही नहीं जासकती थी . बात का रुख बदलते हुए जोत्सना कजरी से बोली कजरी पैर तो मेरा भी बहुत सुन्न हो जाता है. तू जरा ध्यान रख अपना . माए कह रही थी हम उची नीची ज़मीन पर रात को सोत है न, तो शीत से सुन्न पड़ जाई है पर भाभी तुम तो मखमल के बिस्तर पर सोने वाली तुम्हे शीत कैसे लगी??  पानी में ज्यादा पैर न रखा करो भाभी .....कजरी की बातें सुनते सुनते जोत्सना सोच रही ही थी इस मखमल के बिस्तर पर काटों की कितनी चुभन है उससे यह ज़मीन पर सोने वाली एकदम अनजान है . इस चुभन का अहसास उसके शरीर को नहीं उसके मन और आत्मा को पीड़ा प्रदान करता है . फिर कजरी को जाने का कह दीवार पर टंगी भास्कर की मुस्कुराती हुई तस्वीर को देख अपनी पीड़ा को भुलाने की कोशिश में एक गहरी सास लेकर जोत्सना अपनी आँखें मूंद अधीर मन को शांत करने कोशिश करने लगती है  ......


35 comments:

Sunil Kumar said...

इस चुभन का अहसास शरीर को नहीं मन और
आत्मा को पीड़ा प्रदान करता है
सन्देश देती हुई सुंदर रचना ,बधाई !

मनोज कुमार said...

बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति। मन को भिगा-भिगा गई यह रचना। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
विचार-मानवाधिकार, मस्तिष्क और शांति पुरस्कार

आपका अख्तर खान अकेला said...

vaah bhaayi vah ajib chubhn he . akhtar khan akela पूजा या नमाज़ कायम करो .....
जिसकी पूजा
या नमाज़ सच्ची
तो उसकी
जिंदगी अच्छी ,
जिसकी जिंदगी अच्छी
उसकी म़ोत अच्छी
जिसकी म़ोत अच्छी
उसकी आखेरत अच्छी
जिसकी आखेरत अच्छी
उसकी जन्नत पक्की
तो जनाब इसके लियें
करो पूजा या नमाज़ सच्ची ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

Arvind Mishra said...

संदेशपूर्ण मार्मिक दास्तान !

Swarajya karun said...

मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण एक अच्छी कहानी . बधाई और आभार .

बाल भवन जबलपुर said...

मर्मस्पर्शी
वाह दीदी वाह

प्रवीण पाण्डेय said...

सच में, मखमल की चुभन सी है यह।

राज भाटिय़ा said...

एक सची कहानी लिख दी आप ने, मैने आम घरो मे यह सब देखा हे, ओर तारीफ़ की जगह जब ऎसे शव्द सुनने को मिलते हे तो कितनी चुभन होती होगी उन को जिसे सुनाए जाते हे, बहुत पीडा भरी आप की यह कहानी धन्यवाद

ममता त्रिपाठी said...

मर्मस्पर्शी रचना ........................एक निशब्द को शब्द दिया आपने

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

’इस मखमल के बिस्तर पर काटों की कितनी चुभन है उससे यह ज़मीन पर सोने वाली एकदम अनजान है . इस चुभन का अहसास उसके शरीर को नहीं उसके मन और आत्मा को पीड़ा प्रदान करता है’
बहुत गहरी संवेदना के साथ संदेश देती कहानी पेश की हैं आपने.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

मर्मस्पर्शी ... मखमली चुभन ... बहुत प्रवाहमयी लिखा आपने....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत संवेदनशील कहानी ...अच्छी प्रस्तुति ....

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

रानी जी! आगे की कहानी मुझसे सुनिये... जब बच्चा पैदा हुआ तो बहुत कमज़ोर था और आज दससाल का होने पर भी उससे ज़राऊँची आवाज़ में प्यार के बोल बोलो तो भी वो डर जाता है...गर्भस्थ शिशु के ऊपर इन घटनाओं का जो असर होता है वो मैंने अपने एक करीबी मित्र के घर होते देखा है..
मुझे तो यह उसी कि सत्यकथा लगी!!

shikha varshney said...

मर्मस्पर्शी ,संवेदनशील कहानी है ..मन को भिगो गई.

hot girl said...

nice post.

निर्मला कपिला said...

सही बात है जो दिखता है वो हमेशा होता नही। मखमली बिस्तरों का सच तो वहाँ सोने वाले ही जानते हओं। अच्छी लगी कहानी। बधाई।

Nitin said...

Well done Rani! You exposed so called civilized and modern people, there are many so called educated people do this to their daughter-in-law in India. It will be horrified for Jyotsana if she gives birth to a baby girl.

Anonymous said...

बहुत बढ़िया आलेख लिखा है आपने!
--
अब आता रहूँगा!
दोवारा से अनुसरण किया है!
अब आपकी फीड मुझ मिलती रहेंगी!

प्रेम सरोवर said...

संदेशपरक अभिव्यक्ति के लिए आपको धन्यवाद।

संजय कुमार चौरसिया said...

bahut badiya

Dr. Zakir Ali Rajnish said...
This comment has been removed by the author.
समयचक्र said...

भावपूर्ण अभिव्यक्ति ... आभार

हरकीरत ' हीर' said...

@ माजी, बैठे बैठे पैर सुन्न हो गया था इसीलिए यहाँ चली आई .
@ हाँ पर तुझे भी क्यों न पसंद आएँगे ?? महरियों की पसंद जैसी ही तो पसंद है इन गाँव के लोगों की.
@तू चुप भी रह जमुना, महारानी के तेवर और भी बड़ जाएंगे. क्या कोई इसी के घर से आई है भेंट !
@ उनके रुकने पर भी आपत्ति होती है कि बेटी के घर लोग रह कैसे जाते है !!
@माता पिता का अपमान सहना किसी लड़की के लिए जहर के घूंट पिने जैसा ही तो है.

ओह .....बहुत कुछ याद दिला गईं आपकी कुछ पंक्तियाँ .....
ऐसे शब्द यूँ ही नहीं लिखे जाते जब तक झेले न गए हों रानी जी .....

खैर पहली कहानी की बधाई .....!!

Anonymous said...

itni lambi kahani mat likha karo sab ke pass padhne ko itna time nahi hai

रानीविशाल said...

@robotics tabhi aap itani der me aae....
ab aapke liye laghu kathaon par bhi haath azamana ho shayad :)

पूनम श्रीवास्तव said...

rani ji
bahut bahut badhai,itni sundar post ke liye .behad bhavpurn v ek sandeshatmak kahani.bahut hi achhe dhang se aapne is kahani ke jariye
saas ke dono rupo ko prati bimbit kiya hai .
bahut hi bhav bhini prastuti ,kab ye prath badlegi jab ek bahu ko beti ka darja diya jayega.
poonam

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरणीया रानी विशाल जी
नमस्कार !
बहुत अच्छी भावपूर्ण कहानी लिखी है , बधाई !
लेकिन हर बहू हर सास की यही कहानी नहीं होती । अभी भी बहुत घरों में तनाव रहित सौहार्दपूर्ण वातावरण बचा हुआ है ।
बहरहाल, आप कविता और कहानी दोनों में सिद्धहस्त हैं, बधाई और शुभकामनाएं ! … और लघुकथाओं की भी प्रतीक्षा रहेगी अब तो …

~*~नव वर्ष 2011 के लिए हार्दिक मंगलकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार

rajesh singh kshatri said...

Bahut Khubsurat Abhivyakti.

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

मानवीय संवेदनाओं को उकेरना कोई आपसे सीखे।
हार्दिक बधाई।

---------
अंधविश्‍वासी तथा मूर्ख में फर्क।
मासिक धर्म : एक कुदरती प्रक्रिया।

दिनेश शर्मा said...

सुन्दर,बहुत सुन्दर!

सदा said...

बहुत ही मार्मिक प्रस्‍तुति ।

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" said...

wakai kisi bhi chubhan ka ehsaas peeda ko mehsoos karna hi nahi sahna bhi sikha deta hai........

bahut sunder likha hai apne.........hridaya sparshi laga....

manoj kant sharma said...

Too good

manoj kant sharma said...

Too good

manoj kant sharma said...

Too good