Thursday, March 25, 2010

कसक दिल की

सजदे कितने किये
चोखट पर तेरी
पर दर्द दिल का
हुआ न कम
खुशियों की सहर
नहीं शायद
किस्मत में अपनी
ग़म की अँधेरी रात में ही
निकलेगा ये दम

******************

जिनकी आरज़ू में
मिटाया था
खुद को जहां से
जला
इक दिया भी
उनसे सजदे में
यार के
ये मतलब की
दुनिया
घड़ी भर में
बदलती है
नासमझ थे
जो न समझे
समय
के साथ
बदलते है
माने
प्यार के

**************************

वो ही थे न शामिल
मैय्यत में शहीद की
जो अपनी ही कब्रें
सज़ाने गए थे
मज़ारों पर उनकी
न जले दो दिए भी
जो औरो के लिए
जां लुटाने गए थे

Tuesday, March 23, 2010

वो पल.....अब भी मेरे पास है

















कांपते हाथों से मेरे
हाथों को लेकर हाथ में
जो चाहते थे कहना तुम
शब्द वो भी बह रहे थे
समय की तरह
आँसुओं के साथ....!!

भीगते जज्बातों का
वो पल.....जब छुपाई थी
अपनी आँखों की नमी
एक दूजे से हमने, जबकि
दोनों उससे अनजान न थे....!!

कँप कपाते होठों से
कहना चाहते थे वो सब कुछ
जो उमड़ आया था
बस एक ही पल में
मगर कह न सके
किन्तु ये भावनाएँ ही तो हैं
जो शब्दों से परे है ....!!

तभी तो जाना था हमने
नजदीकियों की अहमियत को
जब दूरियाँ आने को थी
जब अहसासों के गहरे समंदर में
मचलने लगी थी अरमानों की तरंगें
तब बांधना चाहा था समय को
मुट्ठी में अपनी हम दोनों ही ने
मगर हम ऐसा कर न सके .....!!

भीगे अहसासों के
उस एक पल ने की थी
जन्मो के अनुपम अद्भुत
अमृत प्रेम की वर्षा हम पर
उस पल जान लिया था हमने
दूरियाँ न कर सकेंगी दूर हमको
न रोक पाएगी ये भौतिक सीमाएँ
हमें पहुचने से एक दूजे तक ....!!


वो रूहानी अहसासों का पल
प्रेमभरी स्मृति में मेरी
अब भी मेरे पास हैं .......!!

Wednesday, March 17, 2010

यह कैसी प्रतीक्षा..













पल
पल अविरल
निर्बाध सदा भावो में
बहता रहता है
पग पग पर हर दम
मखमल सा
राहों में साथ वो रहता है
कण कण में पृथ्वी के
जिसका अस्तित्व
समाहित है
तृण तृण के मूल में
छुपा हुआ
उसका सन्देश
कुछ कहता है
कस्तूरी से मृग का ज्यूँ
ऐसा अपना भी
नाता है
गिर गिर कर फिर
उठजाने का
जो हमको पाठ पढ़ाता है
कौन ठौड़ मिल पाऊ उसे
कोई दे यह शिक्षा
खुद से खुद के
मिलजाने की
यह कैसी प्रतीक्षा
कहो कैसी प्रतीक्षा ....!!!

Sunday, March 14, 2010

तब्दीलियां तो वक़्त का पहला उसूल है..



मौसम के साथ चलिये कि लड़ना फ़िज़ूल है
तब्दीलियां तो वक़्त का पहला उसूल है..

इंसां नहीं कोई भी मुकम्मल जहान में
लेकिन नज़र में और की खामी है भूल है

तारीख में मिलेंगे उनके निशान तक....
जिनको साथ वक्त के चलना कबूल है.....

कश्ती का नाखुदा भी हुआ कितना बदगुमान
खुद को खुदा समझता है ये कैसी भूल है

शोहरत की दौड़ में ये जहां है, हुआ करे
"रानी" सुकूं है दिल को, तो सब कुछ फ़िज़ूल है

Thursday, March 11, 2010

हमें तुम भूल भी जाओ ....













हमें तुम भूल भी जाओ
तुम्हे हम प्यार करेंगे
गवारा जो न हो तुमको
नहीं इज़हार करेंगे

जो ख़्वाबों में चले आए
तो नज़रे तुम चुरा लेना
जो तनहाई में तड़पाए
तो यादों से मिटा देना
बना दो गैर ही हमको
नहीं तकरार करेंगे

हमें तुम भूल भी जाओ
तुम्हे हम प्यार करेंगे

वफ़ा न तुम करो हमसे
तुम्हे दिल से दुआ देंगे
तुम्हारे दर्द सह लेंगे
तुम्हे अपनी दवा देंगे
जो चाहो जान भी लेलो
नहीं इनकार करेंगे

हमें तुम भूल भी जाओ
तुम्हे हम प्यार करेंगे

सूने दिल में तुम आए
तुम्हे उसका सिला देंगे
हो जो भी आरजू तुमको
वही तुमको दिला देंगे
तुम्हारे दिल में भी कसक होगी
हम इंतज़ार करेंगे

हमें तुम भूल भी जाओ
तुम्हे हम प्यार करेंगे
गवारा जो न हो तुमको
नहीं इज़हार करेंगे

Tuesday, March 9, 2010

छोटू पंडित का मंत्र पाठ ......{ गायत्री मंत्र }

पोस्ट का शीर्षक पढ़ कर आप सोचते होंगे अभी - दिन पहले ही तो मेने एक पोस्ट लिखी थी, पोंगा पंडितो के ख़िलाफ और आज मैं ही किसी पंडित का मंत्र पाठ आपके लिए लेकर आई हूँ लेकिन यकीन मानिये ये छोटू पंडित बहुत ही निश्छल और निर्मल है इनका मंत्र पाठ सुन कर आपका मन मुदित हो जाएगा
आपको विशवास नहीं आता...... तो खुद ही देख लीजिये वीडियो पर क्लिक करके ....
देखकर बताइयेगा कैसा लगा आपको छोटू पंडित का मंत्र पाठ ?




(छोटू पंडित जी का परिचय : मेरी सुपुत्री अनुष्का जोशी जो अभी साल की भी नहीं हुई है)

Monday, March 8, 2010

फिर भी आओ एक दूजे को विश करे हेप्पी वुमनस डे सभी


ओ शीतल मंद पवन तू ही तप्त ह्रदय को शीतल कर
नारी ह्रदय दहक उठा भीषण क्रोध की ज्वाला में जल कर


उथल पुथल होती है मन में, कोई संचार नहीं रहा बदन में
आँसू ख़त्म हो चुके है अब तो, लहू उतर आया नयनन में

कहते बड़े फक्र से आगए इक्कीसवीं सदी में हम
संकीर्णता मन में वही, अभिमान हुआ है कम

क्या यकीं करे जो हुआ युगों से वो होगा ना अब
पैरों की जुती कहलाई जो अपना हक़ पाएगी कब

वंश विरोधिनी कह कर कहीं भ्रूण में ही मारा गया
नन्हे से जीव को नष्ट कर ममता का दामन उजाड़ा गया

जन्म गर पा भी लिया तो वहशी दरिन्दे मिल गए
नन्ही कली को रौंद कर वासनाओं से कुचल गए

कहीं फूलों का गजरा बन गई कहीं बाज़ार की रौनक बनी
कहीं बिस्तर की चादर बन गई कहीं फर्श का पौछा बनी

लालच दहेज़ का जो बड़ गया तो जिंदा कहीं जला दिया
तो कभी उंच नीच के भेद में पड़ दीवारों में चुनवा दिया

अपमान की ज्वाला में जल कर बनना पड़ा कहीं पर सती
या तंदूर कांड भी सहना पड़ा जिंदगी के मालिक बने पति

कुछ सही तो सताने का सहारा फिर यूँ लिया
कुलघातिनी कलिंकिनी बेटे को जन्म ना तूने दिया

दम घोंटती आरही है सदियों से हो रही कुप्रथा
सदीयां ही गुज़र जाएगी कहते हुए नारी व्यथा

होंठ सिले है नयन गिले है यातनाए मन में दबी
फिर भी आओ एक दूजे को विश करे हेप्पी वुमनस डे सभी.....

Friday, March 5, 2010

क्या मुक्ति का मार्ग बताएगा....भक्ति का जो व्यापार करे ??





पोंगा पंडित बीन बजाते
अंधों की टोली नाच रही
अधर्मी धर्म का पाठ पढ़ाते
वाहजी.. ये भी क्या बात रही
भोग विलास न खुद ने छोड़ा
और त्याग का राग आलाप रहा
कामनाओं के वश में भान नहीं
क्या पुण्य हुआ क्या पाप रहा
माया के जाल में फंसा हुआ खुद
क्या मोह तुम्हे छुड़वाएगा
प्रभुत्व के लोभ फंसा मनुज
क्या प्रेम, त्याग सिखलाएगा
मानवता पहला धर्म मनुष्य का
सदाचार से ऊँचा कर्म नहीं
आँखें खोल अब तो....पहचाने
आडम्बर में कोई मर्म नहीं
क्या मुक्ति का मार्ग बताएगा
भक्ति का जो व्यापार करे
खुद अंत समय पछताएगा
जो परहित का न ध्यान धरे
ना धन से सिद्ध हुए थे बुद्ध
न सद्गुरुओं ने भेंट का मोह किया
सत्य गुरु की पहचान विरक्ति
चित्त तत्वमीमांसा में ही लीन किया
अब तो भले बुरे का भेद समझ
स्वधर्म का हम सन्मान करे
लुटिया इनकी गर्ग करे
पाखंडियों पर न ध्यान धरे..
दुष्कर्म का चहरा साफ हुआ
ना कहने की कुछ बात रही !!!


{आज कल समाचारों में जो पढ़ा सुना उससे मन बड़ा खिन्न हुआ कि धर्म को व्यवसाय बनाने वाले इन शठ लोगो को इस हद्द तक पहुचने देने वाला कौन है ? अगर कम समय में कम प्रयास में ज्यादा प्रतिफल प्राप्त करने कि लालसा हम त्याग दे तो धर्म को व्यापर बनाने वाले इन पाखंडियों कि दुकाने बंद हो जाएगी. ......इन जैसे तुच्छकर्मियों कि वजह से साधुता पर सवाल खड़े होजाते है !!}

Thursday, March 4, 2010

आज भी बचपन भूखा नंगा .....चाय की प्यालियाँ धोता है !!

नन्हे हाथ मजदूरी करते
शिक्षा को मोहताज फिरे
कूड़े में चुनते रोज़ी अपनी
नुक्कड़ पर भिक्षा माँग रहे...









दो जून के दाने मिलते नहीं,
हड्डियों का चुरा भी करने पर
तन ढाकने को कपड़े नहीं,
सर छुपाने को नहीं है घर !!









आज भी बचपन भूखा नंगा
चाय की प्यालियाँ धोता है !!









स्टेशन पर बुटपोलिश कर
रात फूटपाथों पर सोता है
उन्नति का गीत गाते हुए हम
खुद प्रश्नचिन्ह बन जाते है
जब कभी ऐसे द्रश्यों को
समक्ष अपने पाते है !!!

Tuesday, March 2, 2010

विकास नहीं गुलामी की सिड़ी है GMO......प्रकृति के साथ छेड़ छाड़ विनाश की द्योतक {Bt brinjal}

ज़रा सोचिये आज से कई साल पहले जब पारम्परिक खेती की जाती थी तब कभी आपने सुना था किसी को कहते की हमें टमाटर से एलर्जी है या सोयाबीन या फिर मूंगफली से एलर्जी है ?? शायद नहीं । हाँ, लेकिन आज कल सभी को यह कहते जरुर सुनते है कि अब फल, सब्जियों और अनाज में पहले जैसा स्वाद नहीं रहा....और इसी के साथ तरह तरह की एलर्जिस भी अस्तित्व में आई है । लेकिन इसके ज़िम्मेदार हम खुद है । रासायनिक उर्वरक, केमिकल्स के प्रयोग ने जहाँ उत्पादन को बढाया वही दूसरी तरफ ढेरो नुकसान भी दिए है । मृदा की उर्वरकता तो कम हो ही गई रासायनिक तत्वों के प्रयोग से उत्पादन की गई फसलों में पोषक तत्वों की भी बहुत कमी आई है । लेकिन इतने पर भी हम सुधारने को तैयार नहीं है ।
भारत में भ्रष्टाचार ने तो ऐसी जड़े जमाई है कि कोई भी उत्तरदायी पदाधिकारी या नेता अपने लाभ के सिवा कुछ और सोचने को ही तैयार नहीं है । एसे में देश का भविष्य तो गर्त में जाएगा ही । विकास के नाम पर सरकार एक नया फंडा लेकर आई है । कृषि उत्पादन बढ़ाने का GMO (genetically modified organisms) मतलब अनुवांशिक रूप से संशोधित बीजों द्वारा फसल उत्पादन । जिसमे बीज के मूल स्वरूप में रूपांतरण कर अलग बीज बनाया जाता है । जिसकी फ़लस उसके मूलस्वरूप से बेहतर होती है । ऐसा कहना है.... आनुवंशिक अभियांत्रिकी इंजीनियरों का जिन्होंने ये बीज बनाए है, उन कंपनियों का जो ये बीज बेच रही है, और हमारी भ्रष्ट सरकार का जो इनका प्रचार प्रसार हिन्दुस्तान में कर रही है । किन्तु वास्तविकता यह है की इनसे बनी फसलें स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित है या नहीं ये अब तक सत्यापित ही नहीं हुआ है, जोकि ये बीज बनाने वाली कंपनियों का परम दायित्व है । दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात इन बीजों का पेटेंट ये कम्पनियां लाभकमाने के लिए पेटेंट कर किसानो का शोषण करने के लिए के दोषी हैं। पेटेंट बीज का उपयोग करने वाले किसान अगली फसल के लिए बीज को बचा नहीं सकते हैं, जिससे उन्हें हर साल नए बीज खरीदने पड़ते हैं। चूँकि विकसित और विकास शील दोनों प्रकार के देशों में बीज को बचाना कई किसानों के लिए एक पारंपरिक प्रथा है, GMO बीज किसानों को बीज बचाने की इस प्रथा को परिवर्तित करने और हर साल नए बीज खरीदने के लिए मजबूर करते हैं। वर्तमान में, दस बीज कम्पनियां, पूरी दुनिया की बीज की बिक्री के दो तिहाई से अधिक भाग का नियंत्रण करती हैं। इन कंपनियों के पास अपने बीज का बौद्धिक स्वामित्व है, उनके पास अपने पेटेंट उत्पाद की शर्तें और नियम लागू करने का अधिकार है । मतलब इनके जरिये हम फिर से गुलामी की ही सीड़ियाँ चढ़ने जारहे है और ऐसा करने वाले लोग हमारे अपने ही है.....हमारी सरकार है । विकसित देशो में इन कंपनियों ने अपने ऐसे पैर पसारे है कि किसानो कि जान पर आन पड़ी है । पेटेंट के कारण अगर आपके खेत में इन बीजों से उगने वाली फ़सल है मतलब कानून के हिसाब से आपको पेटेंट धारक कंपनी को रकम अदा करनी पड़ेगी । अब बताइए भला अगर बगल वाले किसान ने यह बीज बोया हवा तो उड़ा कर आपके खेत तक लाएगी ही तो तुरंत ये पेटेंट धारक महाराज आपसे पैसे लेने पहुच जाएँगे जबकि आपने तो बीज ख़रीदे ही नहीं और कानून भी आपकी मदद नहीं कर सकता । आपको सोच कर हँसी तो आई ही होगी .....अब अगर मैं यह कहूँ कि ऐसे मामले वाकई में हो चुके है तो आपको भारतीय कृषि पर मंडराते संकट का आभास अच्छी तरह से हो गया होगा ।
Bt brinja(Bacillus Thuringiensis Brinja) इसका सबसे बड़ा उदाहरण है । बी टी ब्रिन्जेल......बैंगन के बीज को अनुवांशिक रूप से परिवर्तित कर भारत की नंबर वन बीज की कंपनी (Mahyco) ने अमेरिकन मल्टीनेशनल (Monsanto) के योगदान व सहयोग से ये बीज तैयार किया है । जो की खरपतवार कीट तथा अन्य कीड़े स्वयं ही नष्ट कर देता है । जरा सोचिये की जो बीज छोटे छोटे अन्य जीवो के लिए इतना हानिकारक है उसका इंसान के शरीर पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?? वैज्ञानिको का कहना है फेफड़ो व किडनी को यह बहुत नुकसान पंहुचा सकता है । उसके बाद भी इसका समर्थन किया जारहा है । अब सबसे खतरनाक पहलू इस बीज का यह है...अपनी समझ के हिसाब से सरल शब्दों में बताऊ तो, फ़सल के अलावा सब कुछ नष्ट कर देना । लेकिन क्या हुआ फ़सल तो सुरक्षित रहेगी न वो भी कम झंझट के, यही कहेंगे इसके एवज में दलीले देने वाले मगर आप ही सोचिये क्या होगा नाइट्रोजन ग्रहण करने वाले बेक्टेरिया का या किसान के सबसे बड़े मित्र केचुए का ?? बेहतर पैदावार के लालच में पर्यावरण से कितना बड़ा खिलवाड़ करने चले है हम !! किसान भी पूरी तरह से इन कंपनियों के शिकंजे में फस जाएंगे । मतलब कही से कही तक इसमे भलाई नहीं है । इस तरह GMO बहुत बड़ा संताप बन सकता है कृषि के लिए । जानकारी और ज्ञान के आभाव में गरीब अशिक्षित किसान इनका प्रयोग कर सकते है या करने के लिए बहकाए जा सकते है । उसकी कल्पना मात्र से चिंता होने लगाती है । प्रकृति के मूल स्वरूप से छेड़ छाड़ करने के पूर्व में भी भयंकर परिणाम हम भुगत चुके है या कहे भुगत रहे है । सच्ची बात यही है कि सरकार का यह फंडा किसानो के गले का फंदा बन सकता है ।
अमेरिका और इसके जैसे कई विकसीत देशो का आर्थिक ढांचा मल्टीनेशनल कंपनीस पर टिका हुआ है । इसलिए निश्चित तोर पर इन देशो में इन कंपनियों का वर्चस्व बहुत अधिक है । लेकिन भारत जैसे विकासशील देश की अर्थव्यवस्था में कृषि की भी महत्वपूर्ण भूमिका है । यहाँ की बहुत बड़ी जनसँख्या किसी न किसी तरह से कृषि से जुड़ी हुई है ऐसे में भ्रष्ट नेता इन कंपनियों से पैसा खाकर उनका ही ढोल बजा रहे है । और फिर स्वास्थ को प्राथमिकता दी जाए तो भी यह सुरक्षित नहीं है । इनके उपयोग के परिणाम स्वरूप भयंकर विलक्षण बीमारियाँ अस्तित्व में आने की आशंका बहुत ज्यादा है । हाल ही में मध्यप्रदेश में कॉटन फेक्टरी में काम करने वाले अधिकांश मजदूरो में कई तरह की
एलर्जिस की जानकारी मिली क्योकि वो कॉटन बी टी कॉटन ही था । पर इस जानकारी को ज्यादा तूल नहीं दिया गया लेकिन इसे पुख्ता प्रमाण माना जाना चाहिए कि बी टी फ़सले स्वास्थ तथा पर्यावरण के लिए बिलकुल सुरक्षित नहीं है ।
हो सकता है जानकारी , व्याख्या तथा प्रमाणों में कुछ कमी रही हो, किन्तु इस आलेख के माध्यम से मैं अपनी आवाज़ उनसभी ब्लॉगर साथियों तक पहुचाना चाहती हूँ जो वाकई इस दिशा में बहुत कुछ करने का माद्दा रखते है । इस आलेख के माध्यम से आप सभी साथियों से पर्यावरण और हिन्दुस्तान के भविष्य को बचाने की गुहार करती हूँ ।

कुछ कीजिये .....

(अधिक जानकारी के लिए रेडिफ न्यूज़ या विकिपीडिया पर देख सकते है )


Monday, March 1, 2010

तेरे चहरे में उस खुदा की इबारत नज़र आती है

मेरी नन्ही परी अनुष्का


लोग कहते हैं कि गुज़रा ज़माना कभी लौट कर आता नहीं
लेकिन तेरी हर शरारत में अपना बचपन मैं जिया करती हूँ

यूँ तो कर देते हैं बैचेन छुपे हुए कुछ गम जो यादों में मेरी
पर तेरी नटखट सी हँसी इस जीवन में सुकून भर देती हैं

ना देखा हैं कभी भी कही उस खुदा का चहरा मैंने
तेरे चहरे में उस खुदा की इबारत ही नज़र आती हैं

इक पल में ही पा लेती हूँ ज़मीं पर ज़न्नत की ख़ुशी
जब तेरी नाज़ुक उंगलियाँ मेरे गालों को सहलाती हैं

जब भी तेरे नन्हे कदम मेरे आँगन में थिरक उठते हैं
झरने लगते हैं फूल कई और हवाएं भी गुनगुनाती हैं

चहक उठती हूँ मैं मिल जाता हैं करार दिल को
जो तू आकर अचानक मेरे सीने से लिपट जाती हैं

ऐसा लगता हैं जैसे "खुदा का नूर" मुझमे आ समाया हैं
जब तू अपने कोमल लबों से मुझे "माँ" कह कर बुलाती हैं

अनुष्का के साथ प्यार भरे पल