ओ शीतल मंद पवन तू ही तप्त ह्रदय को शीतल कर
नारी ह्रदय दहक उठा भीषण क्रोध की ज्वाला में जल कर
उथल पुथल होती है मन में, कोई संचार नहीं रहा बदन में
आँसू ख़त्म हो चुके है अब तो, लहू उतर आया नयनन में
कहते बड़े फक्र से आगए इक्कीसवीं सदी में हम
संकीर्णता मन में वही, अभिमान न हुआ है कम
क्या यकीं करे जो हुआ युगों से वो होगा ना अब
पैरों की जुती कहलाई जो अपना हक़ पाएगी कब
वंश विरोधिनी कह कर कहीं भ्रूण में ही मारा गया
नन्हे से जीव को नष्ट कर ममता का दामन उजाड़ा गया
जन्म गर पा भी लिया तो वहशी दरिन्दे मिल गए
नन्ही कली को रौंद कर वासनाओं से कुचल गए
कहीं फूलों का गजरा बन गई कहीं बाज़ार की रौनक बनी
कहीं बिस्तर की चादर बन गई कहीं फर्श का पौछा बनी
लालच दहेज़ का जो बड़ गया तो जिंदा कहीं जला दिया
तो कभी उंच नीच के भेद में पड़ दीवारों में चुनवा दिया
अपमान की ज्वाला में जल कर बनना पड़ा कहीं पर सती
या तंदूर कांड भी सहना पड़ा जिंदगी के मालिक बने पति
कुछ न सही तो सताने का सहारा फिर यूँ लिया
कुलघातिनी कलिंकिनी बेटे को जन्म ना तूने दिया
दम घोंटती आरही है सदियों से हो रही कुप्रथा
सदीयां ही गुज़र जाएगी कहते हुए नारी व्यथा
होंठ सिले है नयन गिले है यातनाए मन में दबी
फिर भी आओ एक दूजे को विश करे हेप्पी वुमनस डे सभी.....
30 comments:
बहुत आक्रोश व्यक्त करती रचना । सच्चाई से दूर नहीं।
फिर भी नारी-- मां, बहन , बेटी और पत्नी के रूप में अपना फ़र्ज़ बखूबी निभा रही है।
सच्चाई बयां करती अच्छी अभिव्यक्ति....महिला दिवस की शुभकामनायें
नारी का मुकाबला कोई भी नहीं कर सकता. उसको पैरों की जूती समझने वाले कृतघ्न हैं.
सशक्त अभिव्यक्ति!
नारी-दिवस पर मातृ-शक्ति को नमन!
sundar aur sashakt rchna,shubhkamna.
Namaskar didi ji
महिला दिवस की शुभकामनायें
नारी-- मां, बहन , बेटी और पत्नी के रूप में अपना फ़र्ज़ बखूबी निभा रही है।
महिला दिवस की शुभकामनायें///////
aakrosh,dard josh sabhi ke saath marmsparshi rachna..mahila diwas ki shubhkamnaye.
होंठ सिले है नयन गिले है यातनाए मन में दबी
फिर भी आओ एक दूजे को विश करे हेप्पी वुमनस डे सभी.....
सच्ची अभिव्यक्ति।
आपका आक्रोश बिल्कुल उचित है....
आज की संसद मे हुइ कारवाई को भी इसमे जोड लीजियेगा ...
महिला दिवस की शुभ-कामनाये
---- राकेश वर्मा
कहते बड़े फक्र से आगए इक्कीसवीं सदी में हम
संकीर्णता मन में वही, अभिमान न हुआ है कम
दोनों पहलू हैं....काफ़ी परिवर्तन आया है...फिर भी...बहुत कुछ बदलाव की ज़रूरत है.
.होगा
आखिर..
मेरे शेर का मिसरा है-
तब्दीलियां तो वक़्त का पहला उसूल है..
महिला दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं.
होंठ सिले है नयन गिले है यातनाए मन में दबी
फिर भी आओ एक दूजे को विश करे हेप्पी वुमनस डे सभी.....
क्रोध,आक्रोश,वेदना,सभी भवनाओ का अनूठा संगम आपकी इन पक्तियो में,बेहद सुदर रचना .
विकास पाण्डेय
www.विचारो का दर्पण.blogspot.com
जबरदस्त....पूरा सच कह दिया दिल में दबा...
विश्व की सभी महिलायों को अंतर राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.
ekdam sahi likha hai..naari ki to bas naari hi dabaaane mein vishwaas hai sabko..
yahi satya hai..
umda prastuti..
जरुर फिर भी .....देनी चाहिए आपको भी ....
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की बहुत शुभकामनायें ....
सशक्त प्रस्तुति
महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
ओ शीतल मंद पवन तू ही तप्त ह्रदय को शीतल कर
नारी ह्रदय दहक उठा भीषण क्रोध की ज्वाला में जल कर
बहुत सहजता और सशक्त रुप से आपने अपने अंतर्तम को अभिव्यक्त किया. सुंदरतम रचना.
महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.
रामराम.
्रानी जी एक औरत के मन का अक्रोश आपकी रचना मे खूब सही दिख रहा है । जो नारी करती है अगर किसी दिन पुरुश को करना पडे तो जूते से बदतर उसका हाल हो जायेगा। बहुत सटीक रचना है बधाई
कम से कम इस बरस महिला दिवस की जो धूम ब्लोगजगत पर रही है ...वो तो देखने लायक है , वक्त आएगा जब सब कुछ वैसा ही होगा जैसा होना चाहिए ..कुछ देर से ही सही , विश्वास है कि ऐसा होगा , बहुत भावपूर्ण रचना लगी
अजय कुमार झा
ज्यादा आक्रोश में कविता अपने मूल भाव से हट गयी , जितना आपने बताने की कोशिश की है उतना होता नहीं , नहीं होता मैं इससे इनकार नहीं करता है , लेकिन ऐसा ही होता है, सरासर गलत अवधारणा है ।
एक सत्य तो हमें स्वीकार करना ही पड़ेगा कि जिस पुरुष को नारी ने जन्म दिया है वह इतना नालायक कैसे हो गया? क्या इसे जन्म देने के समय या पालन के समय हमसे कोई चूक हो गयी? जब हम इन्हें अपना पुत्र मानने लगेंगे तब इन्हें भी झक मारकर हमें माँ मानना ही होगा। आपकी अग्नि किसी एक पुत्र को भी संस्कारित कर सके तो दुनिया बदल सकेगी।
bahut khoob...padh kar bahut achha laga
नारी दमन के बहु विध रूपों पर एक सशक्त प्रहार
सच्चाई,सशक्त अभिव्यक्ति,महिला दिवस की शुभकामनायें.
haaan fir bhi ...mahila divas kee shubhkaananen..
नारी व्यथा का मार्मिक चित्रण…
इन कुरीतियों के होते हुए कैसे सफल हो सकता है महिला दिवस...
प्रासंगिक मुद्दों को छूती हुई रचना…
महिला आरक्षण विधेयक का पारित होना एक बाधा पार करने जैसा है..
बधाई समस्त महिला समाज को..
Hardik badhaiyan
कहते बड़े फक्र से आगए इक्कीसवीं सदी में हम
संकीर्णता मन में वही, अभिमान न हुआ है कम
nice
नारी की व्यथा जरूर उसे अपनी पहचान तक ले जाऐगी। पुरूष प्रधान समाज मे नारी आज कहीं नहीं है, वो मां, बेटी, पत्नी, बहु.....सब है एक पुरूष से जुड़ कर उसे स्वयं पहले अपनी पहचान बनानी होगी। फिर ही वो इस दास्ता को तोड सकेगी।
मेरी शुभकामनाए है।
विचार सार्थक ओर सच्चे है।
मनसा आनंद मानस
सही दर्द झलक रहा है , आप कामयाब हैं
Post a Comment