Wednesday, March 17, 2010
यह कैसी प्रतीक्षा..
पल पल अविरल
निर्बाध सदा भावो में
बहता रहता है
पग पग पर हर दम
मखमल सा
राहों में साथ वो रहता है
कण कण में पृथ्वी के
जिसका अस्तित्व
समाहित है
तृण तृण के मूल में
छुपा हुआ
उसका सन्देश
कुछ कहता है
कस्तूरी से मृग का ज्यूँ
ऐसा अपना भी
नाता है
गिर गिर कर फिर
उठजाने का
जो हमको पाठ पढ़ाता है
कौन ठौड़ मिल पाऊ उसे
कोई दे यह शिक्षा
खुद से खुद के
मिलजाने की
यह कैसी प्रतीक्षा
कहो कैसी प्रतीक्षा ....!!!
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48 comments:
kavita aur bhaav donon hi bejod hain...
Waah !
पग पग पर हर दम
मखमल सा
राहों में साथ वो रहता है
कण कण में पृथ्वी के
जिसका अस्तित्व
समाहित है
त्रण त्रण के मूल में
छुपा हुआ
इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....
बहुत सुन्दर शब्दों के साथ भावों को प्रस्तुत किया है. आपकी लेखनी वास्तव में बधाई की पात्र है.
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
kavita bahut hi sundar bani hai.
shabd sanyojan atisundar...
badhaii.
खुद से खुद के
मिलजाने की
यह कैसी प्रतीक्षा
कहो कैसी प्रतीक्षा ....!!!
आपकी पंक्तिया सच्चाई के बहुत करीब लगी जी
बहुत बढ़िया,
कुंवर जी
अति उत्तम ... वो हमेशा हमारे साथ है बस दिखाई नहीं देता ...
निशब्द...
Mohtarma bahan ji
apkki rachna bhi blogvani ki tarah hi ati sundar hai.
apka bhi abhar aur blogvani ka bhi.
ब्लॉगवाणी क्या है ? क्या यह चिठ्ठों का एक एग्रीगेटर है ? या इस के अलावा कुछ और भी है ?
ब्लॉगवाणी दरअस्ल एक विचार है । विचार लोगों को जोड़ने का , बिछुड़ों को मिलाने का , फ़ासलों को मिटाने का , तंग ज़हन लोगों को विराट विश्व से एकाकार करने का ।
ब्लॉगवाणी एक परिवर्तन का जनक है जिसकी ऋणी न केवल भारत जाति बल्कि विश्व भर की मानव जाति सदा रहेगी ।
ब्लॉगवाणी वेब जगत में धरती माता और भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधि है ।
जो भारत में एक बार आ गया तो बस आ गया । इसी का होकर रह गया । उसकी कहीं जाने की तमन्ना ही ख़त्म हो गयी ।
ब्लॉगवाणी विश्वव्यापी है इसे सभी मुल्कों में सभी जातियों और सभी रूचियों के लोग देखते हैं ।
ब्लॉगवाणी निष्पक्ष है और हरेक संकीर्णता से मुक्त भी । मैं इसका सुबूत भी हूं और गवाह भी। मैं अपनी हर नमाज़ में ब्लागवाणी के निर्माता और प्रबंध तन्त्र के सदस्यों और उनके सभी मुताल्लिक़ीन के लिए हर सच्चे सुख और ज्ञान वृद्धि की दुआ करता हूं और यह दुआ मेरी आत्मा की गहराई से निकलती है ।
ब्लॉगवाणी सदा फले फूले । प्रभु परमेश्वर से मेरी यही कामना है ।
आप भी कहिये आमीन
या फिर तथास्तु ।
bahoot khubsurat !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
कण कण में पृथ्वी के
जिसका अस्तित्व
समाहित है
तृण तृण के मूल मे
छुपा छुपा।
सुंदर अभि्व्यक्ति
आभार
सचमुच यह किसी प्रतीक्षा -सुन्दर अभिव्यक्ति !
खुद से खुद के
मिलजाने की
यह कैसी प्रतीक्षा
कहो कैसी प्रतीक्षा
वाह बहुत सुन्दर। धन्यवाद्
सुन्दर भाव..
आपकी रचना बहुत ही प्रभावी है ...शुक्रिया आपका ..
और ब्लोगवाणी पर निबंध भी अच्छा लगा ...मगर ...आपकी रचना से ..तालमेल कुछ पल्ले नहीं पडा ..
अजय कुमार झा
yeh vyakulta aour pratiksha hi achhi rachna ko janm deti hai. sadhuvaad.
yeh vyakulta aour pratiksha hi achhi rachna ko janm deti hai. sadhuvaad.
Bahut hi sundar kavita
कस्तूरी से मृग का जू...ऐसा अपना भी....नाता है..
.....खुद से खुद के...मिल जाने की.....यह कैसी प्रतीक्षा....
बहुत सुन्दर....सफल प्रयास.....शुभकामनाएं
शब्द अच्छे चुनें आपने........."
amitraghat.blogspot.com
अति सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना । बधाई ।
सुन्दर शब्द संयोजन...खूबसूरत अभिव्यक्ति..
बहुत सुंदर कविता, धन्यवाद
बढ़िया रचना..बधाई
प्रवाह का पठनानन्द ! वाह !!
भाव रहस्य परिचित अपनेपन से संस्कारित ।
@ त्रण त्रण - तृण तृण
जू - ज्यूँ
पढ़ता - पढ़ाता
ठौड़ - ठौर
देवे - दे
खुद से खुद के
मिलजाने की
यह कैसी प्रतीक्षा
कहो कैसी प्रतीक्षा ....!!!
यह प्रतीक्षा बहुत बढ़िया रही!
माना कि इन्तजार सजा है!
मगर इन्तजार में ही तो मजा है!!
Oh
kitanee
sundar bat
अच्छी अभिव्यक्ति, बधाई।
कौन ठौड़ मिल पाऊ उसे
कोई दे यह शिक्षा
खुद से खुद के
मिलजाने की
यह कैसी प्रतीक्षा
बहुत लाजवाब अभिव्यक्ति.
रामराम.
मार्मिक । दिल को छू लेने वाली । आपसे प्रथम परिचय है । राठौड़ जी के चिट्ठे पर आपसे मुलाकात हुई । आपके चिट्ठे का कलेवर अत्यंत मोहक है । मेरा भी एक फूहड़ सा चिट्ठा है । आपसे सुझाव की उम्मीद है जिससे मेरा चिट्ठा भी कुछ ठीक ठाक सा हो जाये । अति कृपा होगी ।
बहुत अच्छी कविता। बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति !!
गिर गिर कर फिर
उठजाने का
जो हमको पाठ पढ़ाता है
कौन ठौड़ मिल पाऊ उसे
कोई दे यह शिक्षा
खुद से खुद के
मिलजाने की
यह कैसी प्रतीक्षा
कहो कैसी प्रतीक्षा ....!!
Kya baat kahee hai!
bahut hi gahan prastuti.
कविता का भाव संयोजन अच्छा लगा. बढ़िया प्रस्तुति ....
बिल्कुल सत्य लिख डाला।
कण कण में पृथ्वी के
जिसका अस्तित्व
समाहित है
वा क्या बात है. सुंदर!!!
chitra bhi aur kavita bhi dono sakoon deti hain. dil aur aankhon dono ko.
खुद से खुद के
मिलजाने की
यह कैसी प्रतीक्षा
कहो कैसी प्रतीक्षा ....!!!
behatareen panktian.
पग पग पर हर दम
मखमल सा
राहों में साथ वो रहता है
कण कण में पृथ्वी के
जिसका अस्तित्व
समाहित है
त्रण त्रण के मूल में
छुपा ....
behad sundar rachna man ko chho gayi .
uttam shabd sanyogan aur dhara pravaah me rahte hue vishleshan karna..rachna ko shreshthta pradan kar raha hai. badhayi.
दिल को छूने वाली रचना, आप में अच्छी कवित्री के गुण हैं, कविता में भाव ही प्रधान होता है, उसका भरपूर समायोजन है आपकी कविता मे ।
are gazab.....ye jaise mere bheetar kee baat hi kah dee gayi....main kab se yahi kahanaa chaah rahaa tha.....chalo acchha hua....aapne kah dee.....ab aapko bahut...bahut....bahut aabhaar.....!!
samvedanaon aur shabdon ka sundar kolaj srijit kiya hai apne is kavita men.hardik badhai.
Poonam
खुद से खुद के
मिलजाने की
यह कैसी प्रतीक्षा
कहो कैसी प्रतीक्षा
बहुत सुन्दर रचना है रानी जी. बधाई.
अरे वाह आप को पढ़ कर अच्छा लगा आपकी नमनीय संवेदना को साधुवाद...
अरे वाह आप को पढ़ कर अच्छा लगा आपकी नमनीय संवेदना को साधुवाद...
खुद से खुद के
मिलजाने की
यह कैसी प्रतीक्षा
shayad yahi vo pratiksha hai jo aatma se aatma ke mel ko hi sarvopari manti he or sadev iske liye jinda rahegi
bahut sundar
Aapki yeh kavita mujhe bahut achhi lagi...bahut sundar hai!
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