शिक्षा को मोहताज फिरे
कूड़े में चुनते रोज़ी अपनी
नुक्कड़ पर भिक्षा माँग रहे...
कूड़े में चुनते रोज़ी अपनी
नुक्कड़ पर भिक्षा माँग रहे...
हड्डियों का चुरा भी करने पर
तन ढाकने को कपड़े नहीं,
सर छुपाने को नहीं है घर !!
तन ढाकने को कपड़े नहीं,
सर छुपाने को नहीं है घर !!
आज भी बचपन भूखा नंगा
चाय की प्यालियाँ धोता है !!
स्टेशन पर बुटपोलिश कर
रात फूटपाथों पर सोता है
उन्नति का गीत गाते हुए हम
खुद प्रश्नचिन्ह बन जाते है
जब कभी ऐसे द्रश्यों को
उन्नति का गीत गाते हुए हम
खुद प्रश्नचिन्ह बन जाते है
जब कभी ऐसे द्रश्यों को
समक्ष अपने पाते है !!!
41 comments:
samaj ko aaina dikhti hui rachna ..bahut hi saarthak ..
child labour ..aaj bharat ka abhishaap hai..
bahoot khoob..
आज भी बचपन भूखा नंगा.nice
han bachpan par yah traasdee kitnee dukhad hai
संवेदनशील रचना.
आज भी बचपन भूखा नंगा
चाय की प्यालियाँ धोता है !!
बहुत ही छू लेने वाली रचना
मार्मिक और यथार्थपरक
चित्रों ने शब्दों में सौ हजार गुना अभिव्यक्ति बढ़ा दी है। पर इस समस्या से कैसे हो छुटकारा, पर शिक्षा का व्यवसायीकरण हो रहा है और मजबूरी में भी बच्चों को ये काम करने पड़ रहे हैं। इनका हल मालूम है पर अमल में कैसे लायेंगे ?
saamajik vidrroptaon ko darsha kar aaj aapne sabit kar diya ki aapki kalam sirf iskq ke ped ke aaspaas ghoomne wali nahin.. :)
aabhar Rani ji
achhee rachna.
बहुत ही छू लेने वाली रचना
मार्मिक और यथार्थपरक
बहुत ही दिल..छू लेने वाली संवेदनशील रचना....
आज भी बचपन भूखा नंगा..
बेहतरीन और विचारणीय भी..
इस रचना में रानी जी आपने न सिर्फ़ शब्दों से बल्कि चित्रों से भी बाल श्रम के विभिन्न पहलुओं की दशा को समेट कर जिस तरह से प्रस्तुत किया है, वह काफ़ी मर्मस्पर्शी है।
सत्य, गद्य को पद्य रूप में प्रस्तुत करने का बढिया प्रयास है आपका.
मेरे अनुसार से अभी शव्दों में संवेदना बाकी है जिसके लिये आपको और प्रयास करने होंगें.
कटु सत्य को उकेरती सशक्त रचना
मार्मिक रचना
उन्नति का गीत गाते हुए हम
खुद प्रश्नचिन्ह बन जाते है
जब कभी ऐसे द्रश्यों को
समक्ष अपने पाते है !!!
बहुत सुन्दर सार्थक प्रश्न्चिन्ह लगा दिया आपने आज की व्यवस्था पर । अच्छी लगी रचना शुभकामनायें
बहुत मार्मिक और सवेंदनाओं से भरपूर. लेकिन हमारे देश की असली हकीकत यही है. आबादी का एक बहुत बडा हिस्सा अब तक जरुरी वस्तुओं से महरूम है.
रामराम.
बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति दीदी , मेरी तो आंखे भर आती है जब ऐसे परिदृश्य सामने आते है ।
बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति रही दीदी ,।
आज भी बचपन भूखा नंगा
चाय की प्यालियाँ धोता है !!
बेहद दुखद सत्य है ये......मन भर आया इन पंक्तियों और चित्रों से....
regards
आज भी बचपन भूखा नंगा
चाय की प्यालियाँ धोता है !!
bahut khub
www.maniknaamaa.blogspot.com
Himmat say such kaho to bura maantay hain log, ro - ro kay baat kahnay ki aadat nahi rahi.
Mubaarakbaad ek dil ko chuu lanay waalay wnubhav ke liye.
इस देश का यही अभिशाप है।
सुन्दर प्रस्तुति....बाल मजदूरी पर शब्दों के साथ सार्थक चित्र भी लगाये हैं...विडम्बना है ये हमारे देश की...बहुत संवेदनशील रचना
समाज का आइना दिखाती.... सामयिक व सार्थक रचना....
बाल दिवस..14 नवंबर के मौके पर ही पढने को मिलती हैं...इस प्रकार की रचना और भाव.
आपने इस मुद्दे को याद रखा...और समाज का ध्यान आकर्षित कराया है....इस चेतना के लिये धन्यवाद.
"बचपन जाने कब आया और गुजर गया
पर बर्तन धोने मे ,गोपी , थोरा और सुधर गया"
बहुत आछ्छी लगे आपकी रचना .......
आज भी बचपन भूखा नंगा
चाय की प्यालियाँ धोता है...
संवेदनशील रचना.
सशक्त चित्रमय प्रस्तुति।
बाल शोषण एक अभिशाप है।
यह है हमारे देश की असली तस्वीर ।
उन्नति का गीत गाते हुए हम
खुद प्रश्नचिन्ह बन जाते है
जब कभी ऐसे द्रश्यों को
समक्ष अपने पाते है !!!
...संवेदनशील रचना
जब भी ऐसा कुछ देखने पढने सुनने को मिलता है तो लगता है कि ...भाड में जाए ये समाज ..सब झूठ है फ़रेब है , नकली है ...सिर्फ़ एक सच्चाई है गरीबी , भूख ,....और आज तक इसे कोई बदल नहीं पाया है ...रचना ने मन को उद्वेलित कर दिया ...
और हां आपकी शिकायत सर माथे पर ..लेकिन जाने क्यों अब ब्लोग्गिंग से विरक्तता सी होने लगी है ..पढने के बावजूद लिखने कहने का मन नहीं करता ..पुरानी दुनिया में लौटने की राह पर अग्रसर हूं ....
अजय कुमार झा
"धन्यवाद आपका रानी जी क्या आप भोपाल आईं हैं कभी.....?
प्रणव सक्सैना
amitraghat.blogspot.com
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे 06.03.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह ०६ बजे) में शामिल किया गया है।
http://chitthacharcha.blogspot.com/
badiya message diya aapne,kavita ke madhyam se,shayad kaanoon banne ke alawa pahal bhi ho sake.
vikas pandey
www.vicharokadarpan.blogspot.com
baal shramik ko lekar saarthak rachna prastut ki aapne ,aese me bachman mar jaata hai aur bachcha bada ho jaata hai apni umra me .sundar dhang se har roop ko utara .
bahut durbhagya purn hai kisi bhi desh ke liye jiske bhavishy ki ye halat ho...samaj ka aaina dikhati marmsparshi rachna.
इन धूल धूसरित बच्चों की सुध लेने वाला भी है क्या कोई ...
संवेदनशील रचना ...!!
child labour amanviya hai. Bahut achhi rachna. very good!
Manav man ko jhakjhorne vaali rachna..
____ Rakesh Verma
it is hard truth of our society.
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