Thursday, March 4, 2010

आज भी बचपन भूखा नंगा .....चाय की प्यालियाँ धोता है !!

नन्हे हाथ मजदूरी करते
शिक्षा को मोहताज फिरे
कूड़े में चुनते रोज़ी अपनी
नुक्कड़ पर भिक्षा माँग रहे...









दो जून के दाने मिलते नहीं,
हड्डियों का चुरा भी करने पर
तन ढाकने को कपड़े नहीं,
सर छुपाने को नहीं है घर !!









आज भी बचपन भूखा नंगा
चाय की प्यालियाँ धोता है !!









स्टेशन पर बुटपोलिश कर
रात फूटपाथों पर सोता है
उन्नति का गीत गाते हुए हम
खुद प्रश्नचिन्ह बन जाते है
जब कभी ऐसे द्रश्यों को
समक्ष अपने पाते है !!!

41 comments:

स्वप्न मञ्जूषा said...

samaj ko aaina dikhti hui rachna ..bahut hi saarthak ..
child labour ..aaj bharat ka abhishaap hai..
bahoot khoob..

Randhir Singh Suman said...

आज भी बचपन भूखा नंगा.nice

Arvind Mishra said...

han bachpan par yah traasdee kitnee dukhad hai

Udan Tashtari said...

संवेदनशील रचना.

M VERMA said...

आज भी बचपन भूखा नंगा
चाय की प्यालियाँ धोता है !!

बहुत ही छू लेने वाली रचना
मार्मिक और यथार्थपरक

अविनाश वाचस्पति said...

चित्रों ने शब्‍दों में सौ हजार गुना अभिव्‍यक्ति बढ़ा दी है। पर इस समस्‍या से कैसे हो छुटकारा, पर शिक्षा का व्‍यवसायीकरण हो रहा है और मजबूरी में भी बच्‍चों को ये काम करने पड़ रहे हैं। इनका हल मालूम है पर अमल में कैसे लायेंगे ?

दीपक 'मशाल' said...

saamajik vidrroptaon ko darsha kar aaj aapne sabit kar diya ki aapki kalam sirf iskq ke ped ke aaspaas ghoomne wali nahin.. :)
aabhar Rani ji

डॉ. मनोज मिश्र said...

achhee rachna.

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही छू लेने वाली रचना
मार्मिक और यथार्थपरक

RAJNISH PARIHAR said...

बहुत ही दिल..छू लेने वाली संवेदनशील रचना....

विवेक रस्तोगी said...

आज भी बचपन भूखा नंगा..

बेहतरीन और विचारणीय भी..

मनोज कुमार said...

इस रचना में रानी जी आपने न सिर्फ़ शब्दों से बल्कि चित्रों से भी बाल श्रम के विभिन्न पहलुओं की दशा को समेट कर जिस तरह से प्रस्तुत किया है, वह काफ़ी मर्मस्पर्शी है।

36solutions said...

सत्‍य, गद्य को पद्य रूप में प्रस्‍तुत करने का बढिया प्रयास है आपका.

मेरे अनुसार से अभी शव्‍दों में संवेदना बाकी है जिसके लिये आपको और प्रयास करने होंगें.

राजीव तनेजा said...

कटु सत्य को उकेरती सशक्त रचना

अजय कुमार said...

मार्मिक रचना

निर्मला कपिला said...

उन्नति का गीत गाते हुए हम
खुद प्रश्नचिन्ह बन जाते है
जब कभी ऐसे द्रश्यों को
समक्ष अपने पाते है !!!
बहुत सुन्दर सार्थक प्रश्न्चिन्ह लगा दिया आपने आज की व्यवस्था पर । अच्छी लगी रचना शुभकामनायें

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत मार्मिक और सवेंदनाओं से भरपूर. लेकिन हमारे देश की असली हकीकत यही है. आबादी का एक बहुत बडा हिस्सा अब तक जरुरी वस्तुओं से महरूम है.

रामराम.

जय हिन्दू जय भारत said...

बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति दीदी , मेरी तो आंखे भर आती है जब ऐसे परिदृश्य सामने आते है ।

Mithilesh dubey said...

बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति रही दीदी ,।

seema gupta said...

आज भी बचपन भूखा नंगा
चाय की प्यालियाँ धोता है !!

बेहद दुखद सत्य है ये......मन भर आया इन पंक्तियों और चित्रों से....

regards

''अपनी माटी'' वेबपत्रिका सम्पादन मंडल said...

आज भी बचपन भूखा नंगा
चाय की प्यालियाँ धोता है !!
bahut khub
www.maniknaamaa.blogspot.com

Devatosh said...

Himmat say such kaho to bura maantay hain log, ro - ro kay baat kahnay ki aadat nahi rahi.

Mubaarakbaad ek dil ko chuu lanay waalay wnubhav ke liye.

अजित गुप्ता का कोना said...

इस देश का यही अभिशाप है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सुन्दर प्रस्तुति....बाल मजदूरी पर शब्दों के साथ सार्थक चित्र भी लगाये हैं...विडम्बना है ये हमारे देश की...बहुत संवेदनशील रचना

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

समाज का आइना दिखाती.... सामयिक व सार्थक रचना....

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

बाल दिवस..14 नवंबर के मौके पर ही पढने को मिलती हैं...इस प्रकार की रचना और भाव.

आपने इस मुद्दे को याद रखा...और समाज का ध्यान आकर्षित कराया है....इस चेतना के लिये धन्यवाद.

Nikhil kumar said...

"बचपन जाने कब आया और गुजर गया
पर बर्तन धोने मे ,गोपी , थोरा और सुधर गया"

बहुत आछ्छी लगे आपकी रचना .......

arvind said...

आज भी बचपन भूखा नंगा
चाय की प्यालियाँ धोता है...
संवेदनशील रचना.

डॉ टी एस दराल said...

सशक्त चित्रमय प्रस्तुति।
बाल शोषण एक अभिशाप है।

शरद कोकास said...

यह है हमारे देश की असली तस्वीर ।

Ajay Saxena said...

उन्नति का गीत गाते हुए हम
खुद प्रश्नचिन्ह बन जाते है
जब कभी ऐसे द्रश्यों को
समक्ष अपने पाते है !!!

...संवेदनशील रचना

अजय कुमार झा said...

जब भी ऐसा कुछ देखने पढने सुनने को मिलता है तो लगता है कि ...भाड में जाए ये समाज ..सब झूठ है फ़रेब है , नकली है ...सिर्फ़ एक सच्चाई है गरीबी , भूख ,....और आज तक इसे कोई बदल नहीं पाया है ...रचना ने मन को उद्वेलित कर दिया ...

और हां आपकी शिकायत सर माथे पर ..लेकिन जाने क्यों अब ब्लोग्गिंग से विरक्तता सी होने लगी है ..पढने के बावजूद लिखने कहने का मन नहीं करता ..पुरानी दुनिया में लौटने की राह पर अग्रसर हूं ....

अजय कुमार झा

Amitraghat said...

"धन्यवाद आपका रानी जी क्या आप भोपाल आईं हैं कभी.....?
प्रणव सक्सैना
amitraghat.blogspot.com

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे 06.03.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह ०६ बजे) में शामिल किया गया है।
http://chitthacharcha.blogspot.com/

Unknown said...

badiya message diya aapne,kavita ke madhyam se,shayad kaanoon banne ke alawa pahal bhi ho sake.

vikas pandey
www.vicharokadarpan.blogspot.com

ज्योति सिंह said...

baal shramik ko lekar saarthak rachna prastut ki aapne ,aese me bachman mar jaata hai aur bachcha bada ho jaata hai apni umra me .sundar dhang se har roop ko utara .

shikha varshney said...

bahut durbhagya purn hai kisi bhi desh ke liye jiske bhavishy ki ye halat ho...samaj ka aaina dikhati marmsparshi rachna.

वाणी गीत said...

इन धूल धूसरित बच्चों की सुध लेने वाला भी है क्या कोई ...

संवेदनशील रचना ...!!

Nitin said...

child labour amanviya hai. Bahut achhi rachna. very good!

AKHRAN DA VANZARA said...

Manav man ko jhakjhorne vaali rachna..
____ Rakesh Verma

anil gupta said...

it is hard truth of our society.