सजदे कितने किये
चोखट पर तेरी
पर दर्द दिल का
हुआ न कम
खुशियों की सहर
नहीं शायद
किस्मत में अपनी
ग़म की अँधेरी रात में ही
निकलेगा ये दम
******************
जिनकी आरज़ू में
मिटाया था
खुद को जहां से
न जला
इक दिया भी
उनसे सजदे में
यार के
ये मतलब की
दुनिया
घड़ी भर में
बदलती है
नासमझ थे
जो न समझे
समय के साथ
बदलते है
माने प्यार के
**************************
वो ही थे न शामिल
मैय्यत में शहीद की
जो अपनी ही कब्रें
सज़ाने गए थे
मज़ारों पर उनकी
न जले दो दिए भी
जो औरो के लिए
जां लुटाने गए थे
Thursday, March 25, 2010
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51 comments:
ना जले उनकी माजर पर दिए दो जो अपनी जान लुटा गए थे ...
समय के साथ बदलते हैं मायने प्यार के ...दोस्ती के भी ...
आह ...!!
खूबसूरत, अलफ़ाज़, जज़्बात से लबरेज़ ..
बहुत अच्छी लगी रचना..
दिल को छूते बहुत ही ख़ूबसूरत अशआर ! आपकी शायरी गहराई तक असर करती है ! बहुत खूब !
अन्तर्मन संघर्ष का शब्द चित्र है खास।
सुमन हृदय से कह रहा जारी रहे प्रयास।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
अंतरात्मा को छु गयी .......इस रचना की एक एक पंक्तियाँ .........लाजवाब
वो ही थे न शामिल
मैय्यत में शहीद की
जो अपनी ही कब्रें
सज़ाने गए थे
मज़ारों पर उनकी
न जले दो दिए भी
जो औरो के लिए
जां लुटाने गए थे
सारे के सारे शेर एक से बढ़कर एक हैं!
जज्बातों की भरमार है!
हकीकत का संसार है!!
बहुत सुंदर !
दिल को छूते हुए एक एक शब्द
मज़ारों पर उनकी
न जले दो दिए भी
जो औरो के लिए
जां लुटाने गए थे
bahut sundar aur sachchee panktiyaan
,ye hamaara durbhaagya hai agar ham shaheedon ko samman ne de saken
हमारा कमेंट ही गायब हो गया...
जबकि रचना बहुत पसंद आई थी तब पर भी...
Aadarniya maine to moderation bhi on nahi kiya hai phir bhi aisa hua aashcharya hai ....lekin aapka sneh mila yahi kafi hai :)
bahut bahut dhanyawaad aapko
इन क्षणिकाओं में आपकी कलम प्रभावशाली ढंग से मुखरित है, शब्द शब्द असर डाल रहे हैं
वाह वाह क्या गजब का जादू बिखेरा है शब्दों में
वो ही थे न शामिल
मैय्यत में शहीद की
जो अपनी ही कब्रें
सज़ाने गए थे
मज़ारों पर उनकी
न जले दो दिए भी
जो औरो के लिए
जां लुटाने गए थे
bahut umda.
AAp bahut hi achcha likhte hai.
बहुत ही सुंदरतम रचना.
रामराम.
bahut hi kuboo rachana hai aap ki
समय के साथ
बदलते है
माने प्यार के
बहुत श्रेष्ठ कविता ,,,,सुन्दर रचना..उच्च पंक्तियाँ.
विकास पाण्डेय
www.vicharokadarpan.blogspot.com
दिल को छूते बहुत ही ख़ूबसूरत अशआर ! आपकी शायरी गहराई तक असर करती है ! बहुत खूब !
बेहतरीन रचना....."
खुशियों की सहर
नहीं शायद
किस्मत में अपनी
ग़म की अँधेरी रात में ही
निकलेगा ये दम
एहसासों की वेदना मन तक पहुंची
समय के साथ
बदलते है
माने प्यार के
जीवन का कटु सत्य है..
मज़ारों पर उनकी
न जले दो दिए भी
जो औरो के लिए
जां लुटाने गए थे
बहुत गज़ब का लिखा है..एक शेर याद आ गया ..
मेरे जनाजे के साथ सारा जहाँ निकला
पर वो ना निकले जिनके लिए ज़नाज़ा निकला .
वाह... सभी रंग बहुत ही सुन्दर मनमोहक ......
मज़ारों पर उनकी
न जले दो दिए भी
जो औरो के लिए
जां लुटाने गए थे
बहुत सुन्दर.
बहुत गहरे भाव। सुन्दर रचना ।
बहुत ही शानदार और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! इस उम्दा रचना के लिए बधाई!
बहुत सुन्दर भाव, कम शब्दों में दिल को छू लेने की कला कोई आपसे सीखे
बधाई
बहुत अच्छी रचना..
समय के साथ
बदलते हैं
माने प्यार के,
बहुत खूब, अच्छा लिखती हैं आप!
सजदे कितने किये
चोखट पर तेरी
पर दर्द दिल का
हुआ न कम
खुशियों की सहर
नहीं शायद
किस्मत में अपनी
ग़म की अँधेरी रात में ही
निकलेगा ये दम
Kya baat hai!
*
'कसक दिल की' आप ने तिन हिस्सों में खूब अच्छी तरह बतायी है। कितनीभी मिन्नतों के बावजूद दर्द कम नहीं होता,आशाभरी सुबह नहीं आती। दुसरे हिस्सेमे दुनियाकी खुदगर्जी का बयान लाजवाब है। आख़िरी भाग में जिन्हें हरदम याद रखना चाहिए उन्हें लोग भूल जाते है और जिन्होंने कुछ भी नहीं किया उन्हें याद करते है।
बहुत उम्दा कविता है आप की...
अभिनंदन आप का...
.....अरविंद
हमारा कमेंट भी नदारद???
नासमझ थे...जो न समझे
समय के साथ...बदलते है
मायने प्यार के...
शब्दों में जो गहरे भाव उत्पन्न हो रहे हैं, वो आपकी मेहनत का नतीजा है..बधाई.
kyaa baat hai........!!
pahi pankti se aakhiri pankti tak bhavna hi bahvna he bahut sundar
सजदे कितने किये
चोखट पर तेरी
पर दर्द दिल का
हुआ न कम
खुशियों की सहर
नहीं शायद
किस्मत में अपनी
ग़म की अँधेरी रात में ही
निकलेगा ये दम
बहुत अच्छी रचना ....दिल को छू गयी !
विशाल सोच की रानी को मेरा सलाम।
सुंदर रचनाओं के लिये आभार
Kya kamal ka likhtee hain aap!
pyaare alfaaz aur khoobsoorat jazbaat
ek sachachai liye dil ko choone wali post.
बहुत खूब !
सुन्दर भाव मन के....
कुंवर जी,
BAHUT ACHA LAGA PAD KAR
HAMARE JAJBATO KI DUNIYA ME AAYE AAP
http://kavyawani.blogspot.com
SHEKHAR KUMAWAT
रानी जी ,
मेरे लेके लिखने से ज्यादा पढना महत्वपूर्ण होता है हजारों चीज़ें आप पढ़ते हो तब एकाध चीज़ लिखने के काबिल होते हो....इसी करके पढना होता है....पढना दरअसल "कुछ"जज्ब करना होता है,और लिखना अभिव्यक्त करना...या कहूँ कि खुद से बाहर निकलना....और बाहर निकलने का अर्थ बहुत मायने वाला है....कोई घर से बाहर निकलता है तो मौज-मस्ती करता है तो कोई बाहर निकलता है तो किसी की सेवा करता भी पाया जा सकता है....सबके लिए जिन्दगी के अपने अर्थ हैं...तय आपको करना होता है कि आपने जाना कहाँ है....मेरी तलाश क्या है........क्या बताऊँ....फिर कभी......हाँ आप को भी कभी-कभी देखा और अच्छा भी लगा....मगर समय ही नहीं होता.....बस दो-चार शब्दों की टिप्पणी मार दी....जो हमेशा पर्याप्त भी नहीं होती...आज कुछ हद से ज्यादा बढ़कर लिख रहा हूँ....जाने तुम्हे (आप कहना अजीब लगा करता है मुझे )कैसा भी लगे ......आज तुम्हारी पंक्तियों को अपने हिसाब से बना रहा हूँ....देख लेना ठीक लगे तो ठीक और ना लगे तो कोई बात नहीं......
जब से दुनिया में इंसां ने पति-पत्नी का रिश्ता बनाया
तभी से इस सम्बन्ध में "वो" ने भी अस्तित्व है पाया !!
कभी प्रेमी, कभी प्रेयसी बन दोनों में आग लगाई
सास-साली, कभी ननद, बन बीच में टांग अड़ाई !!
पड़ोसी की ताँक झाँक,शाहरुख-अमिताभ या कभी रेखा
चढ़े त्योरियां मैडम की साहब ने इक नज़र महरी को देखा
मार्डन ज़माने में भैया अब "वो" ने भी नया रूप है पाया
बदलते समय के साथ बदली सभी सम्बन्धों ने काया !!
अब पति पत्नी के बीच में सास की हिम्मत की आजाए
दाल में तो गवा ही दिया है फिर रोटी में भी घी ना पाए !!
देश-परिवार-दुनिया से अलग-थलग हम अब प्राइवेसी में जीते है
चार दीवारों में मिल काट रहे जो नव औपचारिकताओं के फीते है !!
दिलो में प्यार, तन पर कपड़े और परिवार घरों में सिकुड़े है
आज अपने अपनो के पास नहीं घर से दूर दिलों के टुकड़े है
चार रोटियां साथ करी के मेडम जी तो अब भी पकाती है
मूड न हो तो अक्सर दोनों की नुडल्स से ही कट जाती है !!
डिस्को, मूवी, शोपिंग तक तो दोनों प्रेममग्न ही रहते है
किन्तु अक्सर ये इक दूजे से लीव मी अल़ोन ही कहते है !!
नहीं अछूते रह सके यहाँ भी, इनके बीच भी "वो "का साया है
नए ज़माने में नए स्वरुप में बनकर"वो" इगो बीच में आया है
आस-पड़ोस-प्रेयसी-प्रेमी न रिश्तेदारों से कोई अपना नाता है
आधुनिक जीवन की महिमा,अब तो इगो ही बीच में आता है !!
यह रचना बहुत मार्मिक होती चली गई है!
सजदे कितने किये
चोखट पर तेरी
पर दर्द दिल का
हुआ न कम
खुशियों की सहर
नहीं शायद
किस्मत में अपनी
ग़म की अँधेरी रात में ही
निकलेगा ये दम
bahut hi sundar kavita .
dil ki gehraiyo se nikla har aashar dil k haal bayan kar raha hai..bahut acchhi rachnaye. badhayi.
aapki gazal dil ko choo gai shayad antim do kadiya jyda bhauk kar gai.
---------bahut khoob likhti hai aap.
शब्द संयोजन एवं चयन बहुत सलीके से सम्पन्न किए गए हैं. फिर भी कविता केवल कविता जैसी ही हो कर रह गयी है.
रचनाकार को यह ध्यान भी रखना होता है कि साहित्य की मूल धारा किधर जा रही है.
आप में कविता के कीटाणु पूरी तरह समाहित हैं. उनका इस्तेमाल कीजिए. आप बेहतर लेखन कर सकती हैं. अपनी प्रतिभा के साथ न्याय कीजिए.
यदि मेरा कमेन्ट बुरा लगा हो तो डिलीट करने का अधिकार आपके पास है.
raani ji,
aapki ye rachnaaye jaandar ban padhi hai , har pankhti me kuch dhadkta hai .. man ke saare bhaavo ko aapne is kavita me bhar diya hai ....meri badhayi sweekar kare..
aabhar
vijay
- pls read my new poem at my blog -www.poemsofvijay.blogspot.com
मैने इन्हे क्षणिकाओं की तरह पढ़ा ..अच्छा लगा ।
सुन्दर रचना
गमगीन और भावपूर्ण
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