Saturday, October 23, 2010

चाँद है मेरा परदेस में

 
आज चंदा तू चमक ना कि
 चाँद है मेरा परदेस में...

उज्जवल सलोना ये रूप तेरा
मुझे उसकी याद दिलाएगा
जा चला जा आज तू कहीं
कब तक मुझे यूँ सताएगा 

चमकेगा जो तू यूँ रात भर
तो मेरी रात ये होगी दूभर
दमकती रहेगी उसी की सूरत
सारी रात मेरे ख़याल में
फिर अहसास उससे दुरी का ये
सुबह तलक रुलाएगा ...

जा कि सोजा तू घड़ी भर
बदलियों की आढ़ में
ताकि मूंद सकूँ आँखों को
अपने चाँद के ही ख़याल में 

पलकों के अम्बर पर जब
चमकेंगे तारे स्वप्न के
तब मचल कर चाँद मेरा
मुझको गले से लगाएगा 

फिर कटेगी जुदाई की रात भी
दिलदार के ही आगोश में
 आज चंदा तू चमक ना कि
चाँद है मेरा परदेस में 

आज तेरा मैं क्या करू
आना किसी दिन फिर से तू
जब आए मेरे आँगन में चाँद
तब देखेगी चाँद की चांदनी में
ये चांदनी भी अपना चाँद ...

होगा तब ही तो ये पता
है तू भला या वो भला
 मनभावना है तू ही ज्यादा या
अधिक है, मोहकता उसके वेश में
आज चंदा तू चमक ना कि
चाँद है मेरा परदेस में
चाँद है मेरा परदेस में...!!!

31 comments:

डॉ टी एस दराल said...

आपकी रचना पढ़कर जगजीत सिंह कि ग़ज़ल याद आ गई ।

हम तो हैं परदेश में , देश में निकला होगा चाँद ।
अपने घर की छत पर कितना , तन्हा होगा चाँद ।

बहुत सुन्दर । फोटो भी मनमोहक है ।

Yashwant R. B. Mathur said...

Bahut hi sundar khyaal!

हरकीरत ' हीर' said...

जरा सा भूमिका में लिख देती कि परदेश में कैसे और क्यों है तो बात और स्पष्ट होती .....
खैर ये दूरी भी जरुरी होती है ...वर्ना इतनी अच्छी नज़्म कैसे लिख होती ....

निर्मला कपिला said...

प्रिय की दूरी से तन्हा मन मे उपजे एहसास संवेदनायें। बहुत सुन्दर कविता है । शुभकामनायें जल्दी आपके आँगन मे उतरे चाँद।

महेन्‍द्र वर्मा said...

कल्पना को खूबसूरत शब्दों में पिरोया है आपने।...अच्छा लगा।

रावेंद्रकुमार रवि said...

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चाँद से अनुरोध अच्छा है!
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चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

विरह की वेदना कोई मेघ के माध्यम से व्यक्त करता है तो कोई चाँद से... एक विरहिनी नायिका की तस्वीर खिंच गई सामने!

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

आना किसी दिन फिर से तू
जब आए मेरे आँगन में चाँद
तब देखेगी चाँद की चांदनी में
ये चांदनी भी अपना चाँद ...

उम्दा...बेहतरीन...
कई रस का समावेश नज़र आ रहा है.

ताऊ रामपुरिया said...

बेहद खूबसूरत रचना, शुभकामनाएं.

रामराम.

उस्ताद जी said...

5/10

सुन्दर रचना
विरह की वेदना पाठक के दिल तक पहुँचती है
विरह-व्यथा कभी चाँद के बगैर
पूरी हो ही नहीं सकती :)

daanish said...

विरह के पलों को
बड़ी ख़ूबसूरती से शब्दों में ढाल कर
एक अच्छी कविता का जन्म हुआ है ...
गीत याद आ रहा है,,,,
"रात को जब चाँद चमके, जल उठे मन मेरा
मैं कहूं मत करो ओ चंदा इस गली का फेरा..."

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

होगा तब ही तो ये पता
है तू भला या वो भला
मनभावना है तू ही ज्यादा या
अधिक है, मोहकता उसके वेश में
आज चंदा तू चमक ना कि
चाँद है मेरा परदेस में
चाँद है मेरा परदेस में...!!
--

इस मौसम के लिए सुन्दर रचना है!

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर रचना, चित्र भी मन भावन धन्यवाद

उस्ताद जी (असली पटियाला वाले) said...

इन नकली उस्ताद जी से पूछा जाये कि ये कौन बडा साहित्य लिखे बैठे हैं जो लोगों को नंबर बांटते फ़िर रहे हैं? अगर इतने ही बडे गुणी मास्टर हैं तो सामने आकर मूल्यांकन करें।

स्वयं इनके ब्लाग पर कैसा साहित्य लिखा है? यही इनके गुणी होने की पहचान है। अब यही लोग छदम आवरण ओढे हुये लोग हिंदी की सेवा करेंगे?

shikha varshney said...

खूबसूरती से शब्द दिए हैं कल्पना को.

अजय कुमार said...

विरह पर अच्छी प्रस्तुति ,और चांद को उलाहना देना अच्छा लगा ।

संजय भास्‍कर said...

बेहद खूबसूरत रचना, शुभकामनाएं.

DR.ASHOK KUMAR said...

विरह को व्यक्त करती सुन्दर कविता। शब्दोँ का चुनाव बहतरीन है, अच्छी रिदम् के साथ गायी जा सकने वाली कविता के लिए आभार। -: VISIT MY BLOG :- पढ़िये मेरे ब्लोग "Sansar" पर नई गजल.......... नजर-नजर से मिले तो कोई बात बने।

Swarajya karun said...

अपने आप में एक अनोखी कल्पना है चाँद का परदेश में होना. कोमल भावनाओं से परिपूर्ण रचना.
अभी दो दिन पहले ही शरद पूर्णिमा थी, लेकिन शहरी वातावरण में तो अब पूनम का चाँद भी ठीक से नज़र नहीं आता. आपकी कविता ने उसकी भी याद दिला दी. आभार .

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

सुंदर कविता के लिए आभार

Tej said...

आज तेरा मैं क्या करू
आना किसी दिन फिर से तू
जब आए मेरे आँगन में चाँद
तब देखेगी चाँद की चांदनी में
ये चांदनी भी अपना चाँद ...

kya baat kahi aap ne...

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर रचना..पसंद आई.

वाणी गीत said...

विरह को सुन्दर शब्दों में लपेटा ...
चाँद चमकता रहे ...जहाँ भी रहे ..और क्या ...!

ZEAL said...

चमकेगा जो तू यूँ रात भर
तो मेरी रात ये होगी दूभर
दमकती रहेगी उसी की सूरत
सारी रात मेरे ख़याल में
फिर अहसास उससे दुरी का ये
सुबह तलक रुलाएगा ...


Beautiful !

.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर रचना!
--
मंगलवार के साप्ताहिक काव्य मंच पर इसकी चर्चा लगा दी है!
http://charchamanch.blogspot.com/

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

विरह की टीस, मिलन की ललक लिए अच्छी रचना. बधाई.

मनोज कुमार said...

बहुत सुन्दर। फोटो भी मनमोहक है!

मनोज
राजभाषा हिन्दी

Anamikaghatak said...

behatarin prastuti.............shabdo ko sundarta se sajaya hai aapne.....badhiya

vandana gupta said...

विरह वेदना का मार्मिक चित्रण्।

Unknown said...


FOR WRITER RANI AS WE CAME TO KNOW & HAVE GOT HUMENEOUS INFECTIONS OF POETRY
FEW LINES DEDICATED FOR YOU AND FAMILY

वो लगती तो थी सहज पलक सी
पर कभी ना लगा इतने हे जहान समेटे
और इतनी गहराई हे पेठे
खिलखिलाती हर जज़्बे पर
चश्मे के पीछे अरमान समेटे
कभी ना बताई सही गिनती
पर अनुश्क हे विशाल समेटे !

Great to have u as buddy

Keep up good work and Writing

Abhishek Shrivastava

रानीविशाल said...

Oh Abhishek
Thanks a ton
you are a better poet .
All rounder .