नीर, क्षीर, गंभीर, धीर
धैर्यवान , बलवान , सुमन
औरो के हित के खातिर
जो अर्पण कर दे तन मन धन
मात्र पित्र भक्त सेवा अनुरक्त
स्वदेश पर सदेव बलिदान करे जो अपना रक्त
स्वाभिमानी हो जो अभिमानी न हो
विष सी कटु जिसकी वाणी न हो
सर्व गुण समपन्न रहे जो
वो महावीर बनाओ प्रभु
हे कण कण के स्वामी , ज्ञानी ध्यानी
अधर्म और पाप के विनाश हेतु
रची थी जो पूर्व कहानी
फिर एक बार, दोहराओ प्रभु
अब भक्तन की पुकार सुन कर
आओ प्रभु आजाओ प्रभु
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4 comments:
विवेकानन्द भक्ति संगीत को सर्वोत्तम संगीत कहते थे। उसी तर्ज पर प्रार्थना भी सर्वोत्तम कविता या गीति होती है।
अच्छी लगी।
रचती रहिए। अपना परिचय अनुच्छेद भी हिन्दी में कर दीजिए न !
स्वप्न मंजूषा शैल के ब्लॉग से इस पेज पर आया
अच्छी रचना !
कृपया header में संगृह को संग्रह कर दें
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
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