Wednesday, January 27, 2010

जीने दो मुझे (कन्या भ्रूण-हत्या )






जीने दो मुझे, मैं भी जिंदा हूँ

क्या दोष मेरा ? हूँ मैं अंश तेरा

ऐसे समाज पर, मैं बहुत शर्मिंदा हूँ !!



कहलाती पराई सदा ही रही

जन्म मिला तो, मृत्यु सी पीर सही

हैवानो मुझ पर दया करो

ना कुक्ष में कुचलो हया करो !!




अमानवीयता से, सदा मैं हार रही

सुन बिलख-बिलख कर, पुकार रही

तेरे भीतर नन्ही जान हूँ मैं

तेरी ममता का सम्मान हूँ मैं

माँ तू भी, मुझे क्यों मार रही !!!




देवता के वेश में काल खड़ा

समाज को दे रहा मर्ज़ बड़ा

ना मसल मुझे मैं नन्ही कली

खुद धन्वन्तरी देता श्राप तुझे !!




श्रृष्टि का सर्जन तो मेने किया

ऐ पुरुष तुझे भी जन्म दिया

फिर क्यों कोख में मुझको मसल रहा

मैं तड़प रही हूँ, सिसक रही

जीवन की भिक्षा मांग रही !!




जिस देवी को तुम पूजते हो

मुझमे ही उसका रूप बसा

मैं चींख-चींख कर पुकार रही

मानव हो तो सुनो ये मेरी "सदा" !!



(कन्या भ्रूण -हत्या एक जघन्य अपराध है ! सरकार के प्रयत्नों के बावजूद ये समस्या जस की तस बनी हुई है ! प्राकृतिक असंतुलन को निमंत्रण देती हुई ये भयंकरतम समस्या हमारे सभ्य समाज का हिस्सा नहीं हो सकती !! हम सभी को मिलकर साँझा प्रयत्नों एवं जन जाग्रती द्वारा इस कु -कृत्य को जड़ से उखाड़ने के समस्त प्रयत्न करने होंगे !! यही समय की मांग है !!)

27 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

मानवता के कोढ़ को उजागर करती हुई,
इस मुखरित रचना के लिए बधाई!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

श्रेष्ठ रचनाओं की साहित्यकारा महोदया!
आप यहाँ भी हैं-http://charchamanch.blogspot.com/2010/01/blog-post_28.html

मनोज कुमार said...

कविता इतनी मार्मिक है कि सीधे दिल तक उतर आती है।

Udan Tashtari said...

मार्मिक रचना!! बहुत ही उम्दा प्रस्तुति!

वाणी गीत said...

भ्रूण हत्या पर सबसे ज्यादा शर्मिंदगी तब होती है जब स्वयं माँ की भी इसमें सहमति हो ...
अच्छी रचना ...

राजीव तनेजा said...

मार्मिक ....

स्वप्न मञ्जूषा said...

bahut samsaamyik kavita aapki...yah ek jwalant samsya hai...isko uthakar accha kaam kiya hai aapne..
aabhar..

निर्मला कपिला said...

मैं चींख-चींख कर पुकार रही

मानव हो तो सुनो ये मेरी "सदा" !!
मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति शुभकामनायें

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

मैं क्या कहूँ अब ............... आपने निःशब्द कर दिया है.... बहुत ही सुंदर कविता....

अजय कुमार said...

संवेदनशील और मार्मिक प्रस्तुति

kshama said...

श्रृष्टि का सर्जन तो मेने किया

ऐ पुरुष तुझे भी जन्म दिया

फिर क्यों कोख में मुझको मसल रहा

मैं तड़प रही हूँ, सिसक रही

जीवन की भिक्षा मांग रही !!

Behad sundar rachana..aankhen nam kar gayi..

संजय भास्‍कर said...

मैं क्या कहूँ अब ............... आपने निःशब्द कर दिया है.... बहुत ही सुंदर कविता....

दिगम्बर नासवा said...

श्रृष्टि का सर्जन तो मेने किया
ऐ पुरुष तुझे भी जन्म दिया
फिर क्यों कोख में मुझको मसल रहा
मैं तड़प रही हूँ, सिसक रही
जीवन की भिक्षा मांग रही ...

बहुत ही मार्मिक ....... एक ऐसा सत्य जो धब्बा है इंसानियत के नाम पर ...... शायद हमारे समाज के पतन का ये मूल कारण है ..........

Ambarish said...

purpose ke sath... ek acchi rachna... dhanyawaad

Dev said...

bahut badhiya rachna ......ye awaz un ak phuchni chaiye ..jo is ye apradh kerte hai

दिनेश शर्मा said...

अच्छा लिखा है और आपकी सोच भी अच्छी है। साधुवाद ।

shikha varshney said...

बेहद मार्मिक प्रस्तुति....एक बहुत ही दर्दनाक समस्या है ये हमारे समाज की और इसके लिए सबसे पहले माओं को ही कदम उठाने होंगे. बहुत पहले इसी विषय पर ऐसी ही एक रचना मैने भी लिखी थी .नजर डालियेगा
.http://shikhakriti.blogspot.com/2009/04/main-teri-parchai-hoon_27.html

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत संवेदनशील रचना है....एक ज्वलंत समस्या को उजागर करती हुई....सराहनीय कार्य है इस विषय पर जागरूकता पैदा करना ....

एक रचना यहाँ भी पढ़ें

http://geet7553.blogspot.com/2008/09/blog-post_10.html

विवेक रस्तोगी said...

दिल छू लेने वाली रचना,बेहतरीन शाब्दिक अभिवयक्ति।

संजय भास्‍कर said...

दिल छू लेने वाली रचना,बेहतरीन शाब्दिक अभिवयक्ति।

kabad khana said...

wah bhrun hatya pe aati uttam rachna ,,, wakai me aaj bhi samaj me aaisi visangtiya jari he ,,,

2 panktiya kehna chahunga ,,,,

desh me agar betiya mayus aur nashad hai
dil pe rakh kar haath kahiye desh kya aabad hai ,,

jinka paida hona hi apshakun hai napak hai
dil pe rakhkar hath kahiye desh kya ajad hai

daanish said...

aaj ke samaaj kee asl tasveer ke
rangoN ko ujaagar karti huee
bahut hi maarmik rachnaa....
abhivaadan svikaareiN.

Yogesh Verma Swapn said...

hriday sparshi rachna.

सुरेश यादव said...

भ्रूण हत्या के सन्दर्भ में आप की कविता बहुत मार्मिक है.आप ने गहराई में डूब कर इसका सृजन किया है.आप को बधाई.यह एक सामाजिक समस्या है जिसके मूल में बहुत सारे कारण छुपे हैं जिनमें आर्थिक रूप से नारी का पराधीन होना सबसे महत्वपूर्ण है.आप पूरी संवेदना के साथ अलख जलाये रखिये यह हैवानियत भी एक दिन खुद पर शर्मिंदा होगी.

Amrendra Nath Tripathi said...

अभिभूत बहुत कम सी होता हूँ पोस्टों पर ,पर यहाँ तो हूँ !
पूरी कविता की जितनी तारीफ करूँ वह कम ही है ... आभार ,,,

SURINDER RATTI said...

Rani Ji,
Namaste, Aapne ne bahut hi achcha vishay chuna, bhrun hatya karna maha paap hai.....
janm se pehle hi maar diya jata hai us bachchey ko.....
Surinder

Asha said...

this poem is very nice..... i would like to give my poem also........and my blog address
नन्ही सी कली थी
पूरा न खिली थी
माँ के uder में सोई थी
नई जिंदगी के सपनों में खोई थी
अचानक एक औजार आया
सपनों के जाल से उसे जगाया
वो उठी और बोली
देख नही रहे में
माँ के गर्भ में सुरक्षित हू
ममता की छाव में आरक्षित हू
बोला वह औजार कड़ककर
चुप बनी वह सहम कर
भेजा है मुझे तेरी माँ ने और तेरे पिता की हा ने
और आर्त होकर वो बोल पड़ी
माँ पिता ने ही तो मुझे बुलाया
फिर क्यों मुझे ठुकराया ,
ओ माँ मेरी सुन मुझे इस दुनिया में आना है
ममता तेरी प्यार पिता का पाना ह.........
हर दुःख हर सितम सह लूगी,अपमान का घुट भी पि लूगी
दुःख सुख तेरा बातुगी
एक गलास दूध में पूरा दिन काटुगी
नही करुगी बराबरी भेया की
ager न चाहेगे बाबा,
पर ओ मोरी मैया
सुन मुझे इस दुनिया में आना है
ममता तेरी प्यार पिता का पाना ह.........
वह रोई और सिसक सिसक कर बोली
पर रोक न पाया करुण रुदन उस निर्मम औजार को....
काटने लगा टुकडो में उस नन्ही जन को
फेले तोड़ी कमर फिर ,फिर आइ हाथ पेर की बारी
सिमट रही थी तदप रही थी वह दर्द की मारी
सिसकते रोते और अपने अस्तित्व को मागते उस कन्या ने भी जान गवाई..............
उस कन्या ने भी जान गवाई..............my blog address is ..Manthan
asharajpurohit.blogspot.com