क्या सुन पाते हो
तुम भी कभी
इन खामोश लम्हों में
छिपे अथाह
सन्नाटे का शोर
जो पल पल मुझे
तिल तिल तड़पाता है
गीली आँखों से मैं
जब जब खिड़की से
ताकती हूँ चाँद को तो
भीगा भीगा सा ही
मुझे चाँद भी
नज़र आता है
हिज़्र की लम्बी
रातों में चिंघाड़ती
तन्हाइयों की सदा
जब घनघोर अन्धियारें
काले बादलों
के गर्जन
सी भयानक
लगती है तब
होने लगते है
अचानक सैकड़ों
आघात दिल पर
यादों की बिजलियों
के प्रहारों से
ऐसी तूफानी रातों में
अक्सर बंद कमरे में
भयंकर
बरसात हुआ करती है
जिसमे बह जाते है
अनंत सपने, आशाएं और
विश्वास मन का
तुम भी कभी
इन खामोश लम्हों में
छिपे अथाह
सन्नाटे का शोर
जो पल पल मुझे
तिल तिल तड़पाता है
गीली आँखों से मैं
जब जब खिड़की से
ताकती हूँ चाँद को तो
भीगा भीगा सा ही
मुझे चाँद भी
नज़र आता है
हिज़्र की लम्बी
रातों में चिंघाड़ती
तन्हाइयों की सदा
जब घनघोर अन्धियारें
काले बादलों
के गर्जन
सी भयानक
लगती है तब
होने लगते है
अचानक सैकड़ों
आघात दिल पर
यादों की बिजलियों
के प्रहारों से
ऐसी तूफानी रातों में
अक्सर बंद कमरे में
भयंकर
बरसात हुआ करती है
जिसमे बह जाते है
अनंत सपने, आशाएं और
विश्वास मन का
भोर होते ही
समेट कर खुद में
इन तूफानी बरबादियों
के निशा मैं एक
नये तूफान का
इंतज़ार करती हूँ
क्या सच
नहीं देख पाते
तुम कभी
इन बरबादियों की
कसक इनके
गहरे निशान
जो मेरे दिल पर
चस्पा है
जिन्हें मैं चाह कर भी
छुपा नहीं पाती ....!!!!!