Tuesday, March 22, 2011

सन्नाटे का शोर

क्या सुन पाते हो
तुम भी कभी
इन खामोश लम्हों में
छिपे अथाह
सन्नाटे का शोर
जो पल पल मुझे
तिल तिल तड़पाता है

गीली आँखों से मैं
जब जब खिड़की से
ताकती हूँ चाँद को तो
भीगा भीगा सा ही
मुझे  चाँद भी
नज़र आता है


हिज़्र की लम्बी
रातों में चिंघाड़ती
तन्हाइयों की सदा
जब घनघोर अन्धियारें
काले बादलों
के गर्जन
सी भयानक
लगती है  तब
होने लगते है
अचानक सैकड़ों  
आघात दिल पर
यादों की बिजलियों
के प्रहारों से


ऐसी तूफानी रातों में
अक्सर बंद कमरे में
भयंकर
बरसात हुआ करती है
जिसमे बह जाते है
अनंत सपने, आशाएं और
विश्वास मन का

भोर होते ही
समेट कर खुद में
इन तूफानी बरबादियों
के निशा मैं एक
नये तूफान का 
इंतज़ार करती हूँ
 
क्या सच
नहीं देख पाते
तुम कभी
इन बरबादियों की
कसक इनके 
गहरे निशान
जो मेरे दिल पर
चस्पा है
जिन्हें  मैं चाह कर भी
छुपा नहीं पाती ....!!!!!

Sunday, March 13, 2011

क्या नाम दें?

अहसासों का इक बंधन
जहाँ बिन बोले ही
सुनाता है  मन ....
न नज़र मिले,न ख़बर मगर
दिल का दर्द
समझ में आता है
दुःख में दुःख
खुशियों से खुशियाँ
मुश्किल में मन घबराता है 

न कहे कभी
पर दिल के गीले
शब्द सुनाई देते है
मिले नहीं पर रूह के
रूखे ज़ख्म
दिखाई देते है
तन्हाई के
चुभते पलों में
मन में मख़मल सा 
अहसास लगे 
दुरी मीलों की फिर भी 
हर पल दिल को 
दिल के पास लगे ...

इस रिश्ते का
कोई नाम नहीं
मगर दुआओं का 
हिस्सा-नाता है
भला- बुरा
सब सच्चा लगे
जब कोई मन से
मन को भाता है 


अनुभूतियों के
कोमल धागे को
और कितने
नए आयाम दें ....
मन से मन के
इस नाते को
मन सोचता है 
क्या नाम दें ??