![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjkLBhj8OyIkCs3HQgzQiXm_Va6imIVbA_wsfpSRwE9P25w6UJqDtBzzOwSFCw9dgAExhusDpo1oQDRziSydf8dbv9Ay0qOguheQiZWF8cIAqCedpSpZXjjEF2_mZ976IN1S9nlGNenvv0/s320/images.jpg)
कैसा मंज़र है, ये क्या गज़ब नज़ारा है
दर्द का दरिया, और दिल गमों का मारा है
इतने तनहा है की, परछाइयों से डरते है
अब तो बस दिल को, अंधेरों का ही सहारा है
ठोकरें खा कर, ज़माने की ना घायल हम है
वो तो अपने थे, जिनके बोलो ने हमको मारा है
महफ़िल में अपनो की, तो हरदम रुसवाई मिली
साथ गैरो का ही, अब तो दिल को प्यारा है
टूट कर बिखरे भी, 'रानी' तो क्या ग़म है
टूटे तारों ने, तो किस्मतों को सवाँरा है