Thursday, August 19, 2010
बूढी पथराई आँखें .....रानीविशाल
बूढी पथराई आँखें
एक टक त़कती
सूनी राहों को
जहाँ फैला है
सूनापन
इनकी खाली
जिंदगी सा
ये सूनापन ये तन्हाई
अब गैर नहीं
रोज़ मिल जाया करती है
वृद्धाश्रय के
गलियारों में
जहाँ ये आँखें
ढूँढती रहती है
बीते समय के निशान
यहाँ खो गए
सब रिश्ते नाते
रुखी, सल पड़ी
चमड़ी से खोई
नमी जिस तरह
हो चुकी है अब
शिथिल भावनाएँ
जू हुई जाती है शिथिल
चेतना तन की
फिर भी अक्सर
जतन से
जाकर कई बार
खिड़की के पास
ये बूढी पथराई आँखें
घंटों एक टक
तका करती है
इन सूनी राहों को
की बी
इन राहों पर
आता हुआ कभी कोई
अपना भी दिखे
अक्सर यूँही
ये बूढी पथराई आँखे....
तकती रहती है
इन सूनी राहों को....!!
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32 comments:
हृदय स्पर्शी ,मार्मिक रचना जो कुछ सोचने पर विवश करती है ,
समाज में धीरे धीरे वृद्धाश्रम का चलन बढ़ता जा रहा है ,
आज की उन आंखों का सूनापन ,उस दिल की बेचैनी ,हमें कल समझ में आएगी लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी ,हम ख़ुद उसी आश्रम में सूनी आंखों के
साथ रास्ता देख रहे होंगे .............
यद्यपि अभी भारत में ये चलन आम नहीं है हमें आज भी परिवारों के ,संस्कारों के और रिश्तों के महत्व का अंदाज़ा है
excellent
bahut sundar
सुन्दर रचना.
रानी जी,
वो पीढ़ी,
जो ’आज’ को संवारने के लिए
अपनी तमाम खुशियों को दांव पर लगा देती है...
जब उनका आज ’कल’ में तब्दील हो जाता है...
ऐसे लोगों के विषय में इतना मार्मिक लिखकर पेश किया है आपने....
सिर्फ़ बधाई या वाह जैसे शब्द बेमानी लग रहे हैं.
भावपूर्ण कविता
आभार
बुढ़ापे से ज्यादा कष्टदायक होता है बुढ़ापे का अकेलापन ।
सही तस्वीर उतारी है आपने ।
बहुत ही सशक्त तस्वीर पेश की है आपने. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
सच में आपकी रचनाएँ तो दिल को छू लेती हैं...
यहाँ खो गए
सब रिश्ते नाते
रुखी, सल पड़ी
चमड़ी से खोई
नमी जिस तरह
हो चुकी है अब
शिथिल भावनाएँ
गजब की पंक्तियां है,यहां आना सार्थक हो गया। लोग सोचते हैं कि यह दिन उनमें कभी नहीं आएगा। लालिमा बनी रहेगी। लेकिन जीवन का सच यही है। सब यहीं देखना है,इसी दुनिया में।
अच्छी अभिव्यक्ति
आभार
सचाई है .. मगर यह प्रकर्ति है .. बदलाव इसका नियम है ...आज वृद्ध आश्रम तो है ... कल ???
यह एक ऐसा सवाल है , जबाब सबको पता है मगर देगा कोई नहीं ...
बहुत मार्मिक चित्रण ....एक शब्द चित्र खींच दिया है ....मन पिघल स गया है ...
वृधाश्रम पर मैंने भी एक रचना लिखी थी ...काफी भाव मिलते हैं ..यहाँ पोस्ट कर रही हूँ ... शायद पढ़ी हो ...
वृद्धाश्रम
[Image]
दर्जनों बूढी आँखें
थक गयी हैं
पथ निहारते हुए
कि शायद
उस बड़े फाटक से
बजरी पर चलता हुआ
कोई अन्दर आए
और हाथ पकड़
चुपचाप खड़ा हो जाये
कान विह्वल हैं
सुनने को किसी
अपने की पदचाप
चाहत है बस इतनी सी
कि आ कर कोई कहे
हमें आपकी ज़रुरत है
और हम हैं आपके साथ
पर अब
उम्मीदें भी पथरा गयी हैं
अंतस कि आह भी
सर्द हो गयी है
निराशा ने कर लिया है
मन में बसेरा
अब नहीं छंटेगा
अमावस का अँधेरा
ये मंज़र है उस जगह का
जहाँ बहुत से बूढ़े लोग
पथरायी सी नज़र से
आस लगाये जीते हैं
जिसे हम जैसे लोग
बड़े सलीके से
वृद्धाश्रम कहते हैं......
Aadarniya Didi,
Kavita tab to main na pad saki shayad yah mere avkaash kal ki post hai ....lekin abhi pad kar bahut acchi lagi!
aap jaisi vibhuti se hamvichar hona mera saubhagya hai.
dhanywaad
हृदय स्पर्शी और मार्मिक रचना रानी जी ...
एक सतत सनातन नग्न सत्य को उद्घाटित करती कविता !
ये बूढी पथराई आँखें
घंटों एक टक
तका करती है
इन सूनी राहों को
की बी
इन राहों पर
आता हुआ कभी कोई
अपना भी दिखे
अक्सर यूँही
ये बूढी पथराई आँखे....
तकती रहती है
इन सूनी राहों को....!!
रानी जी, बहुत ही यथार्थपरक और मन को गहराई तक छू जाने वाली कविता है आपकी। हर शब्द हमें कुछ सोचने पर विवश कर रहा है। पूनम
बेहतरीन। लाजवाब।
*** हिन्दी प्रेम एवं अनुराग की भाषा है।
यह सन्देश आपका ब्लॉग खोलने से पहले आ रहा है-
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Help me understand
--
फिर भी आपकी रचना पढने का लोभ संवरण नही कर सका!
--
रचना बहुत ही मर्मस्पर्शी है!
--
बहुत-बहुत बधाई!
संवेदनशील रचना ।
आपने मेरे ब्लॉग पर दस्तक दी.. हौसला अफजाई के लिए आभार!! आपने अपनी रचनाओं में संवेदनशीलता का बेजोड़ नज़ारा पेश किया है... बहुत ही संजीदा प्रस्तुति!!
शुभ भाव
रामकृष्ण गौतम
बेहद ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने! दिल को छू गयी हर एक पंक्तियाँ!
shahid ji ne bahut sahi kaha ,aaj yah avastha hamaare samaj me chinta ka vishya bani hui hai ,aapne ise bakhoobi pesh kiya hai .ati sundar .
आपके कविता में जो भाव छुपा हुआ है वही हमरा अंतिम इच्छा है… इन लोगों का सेवा करना जिनको अपना लोग छोड़ कर चला गया... कविता में जो भाव ब्यक्त हुआ है उससे कहींज्यादा गहराई से आप इस बात को महसूस की होंगी रानी जी... काहे कि बिना महसूस किए ऐसा कविता लिखना असम्भव है...
आपका कमेन्ट देख कर आभार अभिव्यक्त करने के लिए 'काव्य तरंग' तक पहुंचा और एक के बाद एक समस्त रचनाएं धाराप्रवाह पढ़ गया.
'काव्य तरंग' की रचनाएं अपने साथ एक धारा में धीरे-धीरे सचमुच बहा ले जाती हैं. हार्दिक बधाई स्वीकारें.
बुढ़ापे के एक एक एहसास को अपने शब्दों की माला में पिरो दिया है आपने . बहुत मार्मिक स्थिति होती है ये. बहुत सुंदर रचना.
बहुत मार्मिक चित्रण ......मन पिघल स गया है ...
Aadarniya Didi,
"माफ़ी"--बहुत दिनों से आपकी पोस्ट न पढ पाने के लिए ...
zindagee ke kadve sach se sakshat karatee yah rachna man kee bheetar paith gayee hai. sadhuvad.
bahut hi khubsurat rachna.....
umdaah prastuti...
mere blog par is baar..
पगली है बदली....
http://i555.blogspot.com/
रानी विशाल जी नमस्कार, आपने बुढ़ापे के सूनेपन का बहुत ही मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया हैँ जोकि दिल को छू गया। बधाई! -: VISIT MY BLOG :- सुहाग ने माँगा अबला से जब उसके सुहाग को..........कविता पढ़ने के लिए आप सादर आमन्त्रित हैँ। आप इस पते पर क्लिक कर सकती हैँ।
marm ko chhoone vali kavita. badhai.
इन राहों पर
आता हुआ कभी कोई
अपना भी दिखे
अक्सर यूँही
ये बूढी पथराई आँखे....
तकती रहती है
इन सूनी राहों को....!!
ittifaq se aapke blog tak aana hua ,bahut si kavitayen padhii ,
khaskar is rachna ne aapki shaan mein kuch kahne ko majboor kar diya .
daad hazir h kubool karen .
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