Saturday, February 27, 2010
Friday, February 26, 2010
आया अलबेला त्यौहार रंगीला होली का [होली गीत]
आया अलबेला त्यौहार रंगीला होली का
गोरी खेल रही है खेल, आँख मिचोली का
लपट झपट कर निकली घर से
मुख घूँघट पट में छुपाए
लाख जतन कर प्रियतम खोजे
प्रिया को ढूंढ़ ना पाए
अल्हड़ नाद उठे मस्तो की टोली का
गोरी खेल रही है खेल, आँख मिचोली का
आज तो मन का मेल मिटा
सब लोग गले मिलते है
जहाँ दिलो में प्रेम
ख़ुशी के फूल वही खिलते है
पिचकारी की धार बरसाए रंग रोली का
गोरी खेल रही है खेल, आँख मिचौली का
फागुन की ऋतु सतरंगी
हिल मिल प्रेम का रंग उड़ाए
संग मिले सब मद मस्ती में
भंग का रंग जमाए
ना रूठो तुम कि दिन है ठेल ठिठोली का
गोरी खेल रही है खेल, आँख मिचोली का
आया अलबेला त्यौहार रंगीला होली का
गोरी खेल रही है खेल, आँख मिचोली का
Wednesday, February 24, 2010
हम भी होली मना लेते है
रंग गुलाल सब बाज़ारों में
ख़ुशबू से महकती गलियां
चौपाटी की चहल पहल
खिल उठी वसंत में कलियाँ
नुक्कड़ पर यारों का जमघट
छेड़ छाड़ मस्ती का दौर
हर्षित मन हर जगह
खेले पिचकारी बच्चे सब ओर
सतरंगी सजी वसुंधरा
पक्षियों का मृदु ऋतु गान
महुए की मदमाती सुगंध
फ़ाग गीतों की मधुर तान
मंडलियों की हँसी ठहाक
गपशप की हुल्लड़ भंग छाक
देख लेते है....... यादों में अपनी
होली का ये रंगीन नज़ारा
यादों के रंग में भीग कर
यादों से ही बतीया लेते है
दूर विदेश में बैठे हुए हम
यादों के रंग से नहा लेते है
इस तरह वतन को याद कर
हम भी होली मना लेते है !!
ख़ुशबू से महकती गलियां
चौपाटी की चहल पहल
खिल उठी वसंत में कलियाँ
नुक्कड़ पर यारों का जमघट
छेड़ छाड़ मस्ती का दौर
हर्षित मन हर जगह
खेले पिचकारी बच्चे सब ओर
सतरंगी सजी वसुंधरा
पक्षियों का मृदु ऋतु गान
महुए की मदमाती सुगंध
फ़ाग गीतों की मधुर तान
मंडलियों की हँसी ठहाक
गपशप की हुल्लड़ भंग छाक
देख लेते है....... यादों में अपनी
होली का ये रंगीन नज़ारा
यादों के रंग में भीग कर
यादों से ही बतीया लेते है
दूर विदेश में बैठे हुए हम
यादों के रंग से नहा लेते है
इस तरह वतन को याद कर
हम भी होली मना लेते है !!
Tuesday, February 23, 2010
कल रात फिर ख़्वाबो में
कल रात फिर ख़्वाबो में
यू हो गया
उनसे सामना
बेकरार हो मचल उठे
मुश्किल था
दिल को थामना
कोमल लबों पर
ठहरे हुए से
कुछ भीगे शब्द
अब भी थे वही....
आँखों में आँखें डाल कर
अरमानो को उढ़ेलाना
भावनाओं का आवेग
फिर से अहसास
बुदबुदाने लगा..
पलकों की आड़ से हुए
नज़रो के मीठे प्रहार
ह्रदय के पार हुए......
सहसा !
अनुभूतियों के
दूजे छोर पर
खड़े हम
हारे हुए से रह गए !!!
यू हो गया
उनसे सामना
बेकरार हो मचल उठे
मुश्किल था
दिल को थामना
कोमल लबों पर
ठहरे हुए से
कुछ भीगे शब्द
अब भी थे वही....
आँखों में आँखें डाल कर
अरमानो को उढ़ेलाना
भावनाओं का आवेग
फिर से अहसास
बुदबुदाने लगा..
पलकों की आड़ से हुए
नज़रो के मीठे प्रहार
ह्रदय के पार हुए......
सहसा !
अनुभूतियों के
दूजे छोर पर
खड़े हम
हारे हुए से रह गए !!!
Monday, February 22, 2010
तुम प्रेम का आधार हो
प्रिय तुम प्रेम प्रतीक हो
तुम प्रेम का आधार हो
तुम ही तो हो पथ प्रेम का
तुम ही प्रेम का द्वार हो
सर्द सुलगती रातों में
शीतल मृदु अहसास तुम
मधुर स्वप्न हो नयनों के
जटिल जीवन की आस तुम
जलती बुझती चाहों में
तुम एक अमर अभिलाषा हो
घोर निराशा के रुक्ष्ण क्षणों में
तृप्त प्रेम सी आशा हो
लक्ष्य तुम ही हो जीवन का
उस लक्ष्य तक पहुँचती हर राह तुम्ही
तुम ही तनहाई की अकुलाहट हो
प्रणय प्रेम की ठाह तुम्ही
तुम ही इष्ट हो इस साधक के
तुम ही साधना के बाधक हो
विपुल साधना जिसकी मैं
तुम ही तो वो आराधक हो
Sunday, February 21, 2010
हृदय में ही ईश्वर रहता है
सरल हृदय सदभाव लिए, सदैव सरिता सा बहता है ।
अभिमान सदा पैरो को पसारे, उसकी राहों में रहता है ।।
अभिमान ने ज्ञान को नष्ट किया, ना ज्ञानी कभी अभिमानी हुए ।
दे रोशनी दीया भी अन्धकार हरे, ना चूल्हे की लो का किनारा बना ।।
स्नेह से अपना ले गैरो को भी, सच्चे अर्थ में गुणवान वही ।
अनुराग से दूजो का ध्यान धरे, सबसे ऊँचा तो ज्ञान यही ।।
भटको को सच्ची राह दिखा, सदगुरु ने बेड़ा पार किया ।
तकरार से ना कभी प्रीति बढ़ी, सदाचार ने प्रेम अपार किया ।।
ना औरो के ह्रदय आहत करो, हृदय में ही ईश्वर रहता है ।
यह निज मस्तिष्क के बोल नहीं, इतिहास भी ऐसा ही कहता है ।।
अभिमान सदा पैरो को पसारे, उसकी राहों में रहता है ।।
अभिमान ने ज्ञान को नष्ट किया, ना ज्ञानी कभी अभिमानी हुए ।
दे रोशनी दीया भी अन्धकार हरे, ना चूल्हे की लो का किनारा बना ।।
स्नेह से अपना ले गैरो को भी, सच्चे अर्थ में गुणवान वही ।
अनुराग से दूजो का ध्यान धरे, सबसे ऊँचा तो ज्ञान यही ।।
भटको को सच्ची राह दिखा, सदगुरु ने बेड़ा पार किया ।
तकरार से ना कभी प्रीति बढ़ी, सदाचार ने प्रेम अपार किया ।।
ना औरो के ह्रदय आहत करो, हृदय में ही ईश्वर रहता है ।
यह निज मस्तिष्क के बोल नहीं, इतिहास भी ऐसा ही कहता है ।।
Friday, February 19, 2010
ना आए विरह की रैन
धरती मचले प्यास से, बादल का ना कोई निशान
चंचल मन हुआ बावरा, तुम बिन देह हुई निष्प्राण
कोयल कूहके बाग में, पपीहे ने मचाया शोर
ऋतु पर भी यौवन चड़ा, पर ना नाचे मन का मोर
लगे है चन्दन आग सा, पुरवाई चुभोए शूल
मैं जोगन बन राह तकू, पियुजी गए तुम मुझको भूल
चंद्रप्रभा से रात सजी, तारो ने जमाया डेरा
सिसक विरह में रात कटी, असुवन में हुआ सवेरा
तुम बिन सब सुख दुःख भये, ना पाए मन कहीं चैन
प्राण जाए तो जाए पर, ना आए विरह की रैन.....ना आए विरह की रैन !!
Wednesday, February 17, 2010
अपना खून (कहानी)
शाम ढलने को है... मीनाक्षी का दिल बैठा जारहा है । शोभना .....भाभी आप फीक्र ना करो रिपोर्ट ठीक ही आएगी । मीनाक्षी .....जैसे तुम कह रही हो वही होगा, ना जाने क्या कहा होगा मूए डाक्टर ने । इतने में ही सुधीर आ पहुचता है मुरझाया चहरा कापते हाथो से रिपोर्ट मीनाक्षी को देते हुए तखत पर लेट जाता है । रिपोर्ट में तो साफ लिखा है.. मीनाक्षी को यूट्रस केंसर हुआ है ।पड़ते ही मीनाक्षी की आँखों से अश्रु धाराए बहने लगाती है । शोभना... अरे भाभी आप क्यों दिल छोटा करती है, आप ही तो कहती है ना कि मैं ही आपकी संतान हूँ । हा रे तो मैंने कब ना कहा ? मुझे तो डर अब इतना है की तुम्हारे भैया ना मानेंगे । वो अगर समझ भी गए तो माताजी के आगे उनकी एक न चलेगी ...! चिंता में डूबी रोते रोते मीनाक्षी आपने काम में लग जाती है ।
इधर श्रीमती विमला देवी मीनाक्षी की सासू माँ मंदिर से घर को लोटती है! घर का सन्नाटा उन्हें सब कुछ कह देता है । रिपोर्ट जानने की तो जरुरत ही नहीं उन्हें .....सुधीर मैं कह देती हूँ तुझे, अब तेरी एक न चलने दूंगी । मीनाक्षी का ओपरेशन होते ही मेघना के पिताजी को पत्र लिख दूंगी तेरे दुसरे ब्याह के लिए हम भी राज़ी है ।
मीनाक्षी सूजी आँखों से आथ में पानी का ग्लास लिए माताजी को तक रही है .....की शायद वो उसके ह्रदय का रोदन सुन पाए । किंतु दकियानुसी मान्यताओ को दिलो दिमाग पर सवार किये विमला देवी को ये सब नहीं दिखता ।
ये सब देखती, शोभना सोच रही है.... "भाभी ने किसी संतान को जन्म ना दिया मगर उनके दिल में भरी ममता दो बच्चो की माँ को नहीं दिखाई दे रही ये कैसी विडम्बना है" !
जैसे कल ही की तो बात है, मीनाक्षी सुधीर के ही कालेज में पढाया करती थी! एका एक दोनों में प्यार हुआ और सहर्ष विमला देवी मीनाक्षी को बहूँ बना आपने घर ले आई । देखते देखते १0 साल बीत गए । इन १0 सालो में विमला देवी ने कहाँ कहाँ न जाने कौन कौन से देवी देवताओ से आपना पोता माँगा, किंतु मीनाक्षी की गोद ना भरी । इधर मीनाक्षी को भी मातृत्व का सुख बहुत ललचाता था, किंतु अपनी १७ साल की ननद शोभना को माँ के जैसा ही स्नेह देती थी वो । और शोभना के लिए भी भाभी से बड़ कर कोई न था । इस बिच मीनाक्षी ने अपनी कालेज की नोकरी छोड़ बच्चो के स्कूल में नोकरी कर ली । छोटे छोटे बच्चो को पढाना उन्हें दुलारना उसे बहुत ख़ुशी देता था । औरत चाहे माँ ना बने पर ममता तो उसमे कूट कूट कर भरी होती है, और इसी ममता को वह दुनिया भर में लुटाती रहती है । किंतु पुरुष प्रधान दकयानुसी समाज के ठेकेदारों को ये बात कहा हजम होती है ....."मदर टेरेसा ने भी तो किसी बच्चे को जन्म नहीं दिया, फिर भी उनकी ममता के सैलाब ने उन्हें सारे विश्व की माँ बना दिया" !
जैसे तेसे रात कटती है । सुबह मीनाक्षी को अस्पताल में दाखिल करा दिया जाता है। उसकी यूट्रस ओपरेशन कर निकालना बहुत जरुरी है... वर्ना उसकी जान भी जा सकती है । मीनाक्षी आशा भरी नज़रो से सुधीर को एक टूक देख रही है। सारी रात वो सुधीर से यही मिन्नत करती रही की ओपरेशन के बाद वो दोनों एक बच्चा गोद ले लेंगे किंतु सुधीर का अभिमान उसे एक झूठा दिलासा भी न दे सका !
ओपरेशन थिएटर के दरवाज़े बंद हो जाते है । सुधीर बेंच पर बैठा गहरी सोच में डूबा है । वो अपने अन्दर के अपराधी को क्षमा तो नहीं कर पा रहा कितु प्राश्चित भी उसे गवारा नहीं । वह अच्छी तरह से जनता है.. की कई साल पहले ही उसे डाक्टर ने स्पष्ट शब्दों में बता दिया था कि कमी सुधीर में है मीनाक्षी में नहीं, किंतु उसने यह बात सबसे छुपाई । उसकी इसी हरकत के कारण मीनाक्षी को उसकी माताजी की कई प्रतारणाए और समाज से बाँझ होने का ताना भी मिला किंतु सुधीर चुप चाप इतने सालो से यह तमाशा देखता रहा । मीनाक्षी से प्यार करते हुए भी ना वो अपनी माताजी को उसकी दूसरी शादी के प्रयासों से रोक पाया न नीम हाकिमो की उल्टी सीधी दवाए उन्हें मीनाक्षी को खिलाने से रोक सका । वो अच्छी तरह जानता है की इन हकीमी नुस्खो की ही वजह से आज मीनाक्षी की यह दशा हुई है । जिंदगी से भरी चंचल सदा खुश रहने वाली वो लड़की दिल में गहरे घाव लिए...आज जिंदगी के लिए लड़ रही है ।
शोभना ...भैया आप भाभी को झूट ही कह दीजिये ना की आप दूसरी शादी नहीं कर रहे, आप लोग एक बच्चा गोद लेलेंगे । शोभना दूसरी शादी मैं भी नहीं करना चाहता पर माँ के आगे मेरी चलती नहीं किंतु बच्चा गोद लेने का झूट मुझसे नहीं कहा जाएगा .."मैं कैसे किसी और की औलाद को आपना नाम दे कर आपना लू , जोकि मेरा खून ही नहीं" ये मुझसे नहीं होगा ।
शोभना भारी दिल से चुप चाप बैठ जाती है, सोच रही है... एक नारी एक इंसान उसके परिवार को अपना सारा जीवन समर्पित करती है । उसके अपनो को ऐसे अपना लेती है कि अपने पराए का फर्क ही ना दिखे । एक भाभी, बहू के रूप में अपना स्नेह लुटाते उसने तो कभी ये नहीं सोचा की ये मेरा खून नहीं है । फिर एक पुरुष ऐसी तुच्छ सोच कैसे रख सकता है । बिचारी अपने ही घर में भाभी से हो रहे व्यवहार को देख ससुराल की कल्पना मात्र से सिहर उठती है ।
ओपरेशन थिएटर के दरवाज़े खुल जाते है ...डॉक्टर सुधीर को बताते है की ओपरेशन तो ठीक से हो गया किंतु उस दोरान सदमे की वजह से मीनाक्षी को माइनर हार्ट अटेक आगया है । अब सभी को उसका ख़ास ख्याल रखना है ।
बेहोश पड़ी मीनाक्षी की दशा देख शोभना सिसक सिसक कर रो रही है ....अचानक विमला देवी उस पर नाराज़ होती है । एक तेरी ही भाभी हुई दुनिया में, अरि रोती क्यों है ?? तुझे तो खुश होना चाहिए उसकी जान बच गई और अब तेरे भैया की दूसरी शादी की भी तो तैयारियाँ करनी है न ! शोभना के तो होश ही उड़ जाते है माताजी तो अब भी अपने इरादों पर जस की तस है ।
इधर सुधीर पत्थर की मूरत बना सब सुन रहा था ..या यू कहिये प्यार और इंसानियत को अपने पेरो तले कुचल रहा था । कुछ घंटो में मीनाक्षी को होश आजाता है । नर्स कहती है वो अपने पति को याद कर रही है.. आप उनसे मिल लीजिये ।नर्स ....पेशंट की हालत ज्यादा ठीक नहीं है, आप बहुत बाते न करियेगा । इतना कह कर नर्स वहा से चली जाती है ।
इधर मीनाक्षी अपने साँसों की माला पर सुधीर का नाम जप रही है ....सुधीर तुम कहा हो ? सुधीर, सुधीर ।
सुधीर ....मीनाक्षी मैं तो यही हू तुम्हारे पास, तुम आराम करो, तुम्हे नींद की बहुत जरुरत है ।
सुधीर तुम बस एक वादा करो फिर मैं चैन से सो जाउंगी ......हम जल्द ही बच्चा गोद लेंगे ना ?
सुधीर फिरसे पाषाण की तरह खड़ा खड़ा उसे तक रहा था ....प्लीज सुधीर हा कहो मेरा दिल दहल रहा है, हा कहो ना सुधीर ।
तुम आराम क्यों नहीं कराती मीनाक्षी, बार बार यही बाते ले बैठती हो । पहले तुम ठीक हो जाओ ये सब बाद में सोचेंगे । नहीं सुधीर माताजी के विचार मैं जानती हूँ तुम मुझे वचन दो ...अभी वचन दो । सुधीर थर्राते हुए ..क्या वचन दू मीनाक्षी ?? तुम्हे अनाथ आश्रम में जाकर जीतनी ममता लुटाना है लुटाना । मैं मना नहीं करूँगा । लेकिन किसी और की संतान को अपना नाम देना ..जोकि मेरा खून नहीं है । ये मुझसे नहीं होगा मीनाक्षी । सुधीर मीनाक्षी का हाथ निचे रख अपने हाथो उसके आसूँ पोछते हुए कहता है, तुम ये सब कुछ मत सोचो तुम्हे तो रिकवर होना है न ? हम दोनों ही एक दुसरे के लिए काफी है । मीनाक्षी आँखे बंद कर सो जाती है । सुधीर कमरे के बहार आजाता है। मीनाक्षी अच्छी तरह से ये जान चुकी थी कि सुधीर का इतना कह देना काफी नहीं था ।
सुबह होते हि शोभना भाभी के लिए चाय लेकर अस्पताल आती है । भाभी अब कैसी हो ? थोड़ी चाय पी कर फिर आराम करना । मीनाक्षी का निष्प्राण शरीर समस्त कष्टों से मुक्त बिस्तर पर पड़ा था । कई बार उठाने पर भी जब मीनाक्षी ना जगी शोभना को अनर्थ की आशंका हुई । रोती हुई शोभना कमरे से बहार आती है उसकी आवाज़ सुन डाक्टर नर्स सभी दोड़ पड़ते है । सुधीर भी माताजी के साथ पहुच चूका है । हड़ बड़ाते हुए सुधीर डॉक्टर के पास पंहुचा .....
हमें बहुत अफ़सोस है मिस्टर सुधीर, लेकिन इनकी मृत्यु हुए ८ घंटे हो गए । शोभना के चहरे से हवाइया उढ़ जाती है । सुधीर हारा सा दुखी मन लेकर खड़ा है .....माताजी भी विलाप कर रही है । ममता की देवी अपना स्नेह भरा विशालह्रदय लिए निष्प्राण पड़ी है । उसकी म्रत्यु हो गई ? जी नहीं "अपने खून" का राग अलापने वाले कलंकित समाज के इन कलंको ने उसका खून कर दिया । अचानक मोबाईल की घंटी बजती है, सुधीर दुःख में अपने हाथ से फोन माताजी को देता है। माताजी रोते हुए ही ....कौन दुबेजी (मेघना के पिताजी ), क्या कहू बड़ा दुःख आन पड़ा है... मेरी प्यारी मीनाक्षी चल बसी । मैं अभी बहुत दुखी हूँ १३ दिन बाद आपसे चर्चा करती हूँ ।
मीनाक्षी सूजी आँखों से आथ में पानी का ग्लास लिए माताजी को तक रही है .....की शायद वो उसके ह्रदय का रोदन सुन पाए । किंतु दकियानुसी मान्यताओ को दिलो दिमाग पर सवार किये विमला देवी को ये सब नहीं दिखता ।
ये सब देखती, शोभना सोच रही है.... "भाभी ने किसी संतान को जन्म ना दिया मगर उनके दिल में भरी ममता दो बच्चो की माँ को नहीं दिखाई दे रही ये कैसी विडम्बना है" !
जैसे कल ही की तो बात है, मीनाक्षी सुधीर के ही कालेज में पढाया करती थी! एका एक दोनों में प्यार हुआ और सहर्ष विमला देवी मीनाक्षी को बहूँ बना आपने घर ले आई । देखते देखते १0 साल बीत गए । इन १0 सालो में विमला देवी ने कहाँ कहाँ न जाने कौन कौन से देवी देवताओ से आपना पोता माँगा, किंतु मीनाक्षी की गोद ना भरी । इधर मीनाक्षी को भी मातृत्व का सुख बहुत ललचाता था, किंतु अपनी १७ साल की ननद शोभना को माँ के जैसा ही स्नेह देती थी वो । और शोभना के लिए भी भाभी से बड़ कर कोई न था । इस बिच मीनाक्षी ने अपनी कालेज की नोकरी छोड़ बच्चो के स्कूल में नोकरी कर ली । छोटे छोटे बच्चो को पढाना उन्हें दुलारना उसे बहुत ख़ुशी देता था । औरत चाहे माँ ना बने पर ममता तो उसमे कूट कूट कर भरी होती है, और इसी ममता को वह दुनिया भर में लुटाती रहती है । किंतु पुरुष प्रधान दकयानुसी समाज के ठेकेदारों को ये बात कहा हजम होती है ....."मदर टेरेसा ने भी तो किसी बच्चे को जन्म नहीं दिया, फिर भी उनकी ममता के सैलाब ने उन्हें सारे विश्व की माँ बना दिया" !
जैसे तेसे रात कटती है । सुबह मीनाक्षी को अस्पताल में दाखिल करा दिया जाता है। उसकी यूट्रस ओपरेशन कर निकालना बहुत जरुरी है... वर्ना उसकी जान भी जा सकती है । मीनाक्षी आशा भरी नज़रो से सुधीर को एक टूक देख रही है। सारी रात वो सुधीर से यही मिन्नत करती रही की ओपरेशन के बाद वो दोनों एक बच्चा गोद ले लेंगे किंतु सुधीर का अभिमान उसे एक झूठा दिलासा भी न दे सका !
ओपरेशन थिएटर के दरवाज़े बंद हो जाते है । सुधीर बेंच पर बैठा गहरी सोच में डूबा है । वो अपने अन्दर के अपराधी को क्षमा तो नहीं कर पा रहा कितु प्राश्चित भी उसे गवारा नहीं । वह अच्छी तरह से जनता है.. की कई साल पहले ही उसे डाक्टर ने स्पष्ट शब्दों में बता दिया था कि कमी सुधीर में है मीनाक्षी में नहीं, किंतु उसने यह बात सबसे छुपाई । उसकी इसी हरकत के कारण मीनाक्षी को उसकी माताजी की कई प्रतारणाए और समाज से बाँझ होने का ताना भी मिला किंतु सुधीर चुप चाप इतने सालो से यह तमाशा देखता रहा । मीनाक्षी से प्यार करते हुए भी ना वो अपनी माताजी को उसकी दूसरी शादी के प्रयासों से रोक पाया न नीम हाकिमो की उल्टी सीधी दवाए उन्हें मीनाक्षी को खिलाने से रोक सका । वो अच्छी तरह जानता है की इन हकीमी नुस्खो की ही वजह से आज मीनाक्षी की यह दशा हुई है । जिंदगी से भरी चंचल सदा खुश रहने वाली वो लड़की दिल में गहरे घाव लिए...आज जिंदगी के लिए लड़ रही है ।
शोभना ...भैया आप भाभी को झूट ही कह दीजिये ना की आप दूसरी शादी नहीं कर रहे, आप लोग एक बच्चा गोद लेलेंगे । शोभना दूसरी शादी मैं भी नहीं करना चाहता पर माँ के आगे मेरी चलती नहीं किंतु बच्चा गोद लेने का झूट मुझसे नहीं कहा जाएगा .."मैं कैसे किसी और की औलाद को आपना नाम दे कर आपना लू , जोकि मेरा खून ही नहीं" ये मुझसे नहीं होगा ।
शोभना भारी दिल से चुप चाप बैठ जाती है, सोच रही है... एक नारी एक इंसान उसके परिवार को अपना सारा जीवन समर्पित करती है । उसके अपनो को ऐसे अपना लेती है कि अपने पराए का फर्क ही ना दिखे । एक भाभी, बहू के रूप में अपना स्नेह लुटाते उसने तो कभी ये नहीं सोचा की ये मेरा खून नहीं है । फिर एक पुरुष ऐसी तुच्छ सोच कैसे रख सकता है । बिचारी अपने ही घर में भाभी से हो रहे व्यवहार को देख ससुराल की कल्पना मात्र से सिहर उठती है ।
ओपरेशन थिएटर के दरवाज़े खुल जाते है ...डॉक्टर सुधीर को बताते है की ओपरेशन तो ठीक से हो गया किंतु उस दोरान सदमे की वजह से मीनाक्षी को माइनर हार्ट अटेक आगया है । अब सभी को उसका ख़ास ख्याल रखना है ।
बेहोश पड़ी मीनाक्षी की दशा देख शोभना सिसक सिसक कर रो रही है ....अचानक विमला देवी उस पर नाराज़ होती है । एक तेरी ही भाभी हुई दुनिया में, अरि रोती क्यों है ?? तुझे तो खुश होना चाहिए उसकी जान बच गई और अब तेरे भैया की दूसरी शादी की भी तो तैयारियाँ करनी है न ! शोभना के तो होश ही उड़ जाते है माताजी तो अब भी अपने इरादों पर जस की तस है ।
इधर सुधीर पत्थर की मूरत बना सब सुन रहा था ..या यू कहिये प्यार और इंसानियत को अपने पेरो तले कुचल रहा था । कुछ घंटो में मीनाक्षी को होश आजाता है । नर्स कहती है वो अपने पति को याद कर रही है.. आप उनसे मिल लीजिये ।नर्स ....पेशंट की हालत ज्यादा ठीक नहीं है, आप बहुत बाते न करियेगा । इतना कह कर नर्स वहा से चली जाती है ।
इधर मीनाक्षी अपने साँसों की माला पर सुधीर का नाम जप रही है ....सुधीर तुम कहा हो ? सुधीर, सुधीर ।
सुधीर ....मीनाक्षी मैं तो यही हू तुम्हारे पास, तुम आराम करो, तुम्हे नींद की बहुत जरुरत है ।
सुधीर तुम बस एक वादा करो फिर मैं चैन से सो जाउंगी ......हम जल्द ही बच्चा गोद लेंगे ना ?
सुधीर फिरसे पाषाण की तरह खड़ा खड़ा उसे तक रहा था ....प्लीज सुधीर हा कहो मेरा दिल दहल रहा है, हा कहो ना सुधीर ।
तुम आराम क्यों नहीं कराती मीनाक्षी, बार बार यही बाते ले बैठती हो । पहले तुम ठीक हो जाओ ये सब बाद में सोचेंगे । नहीं सुधीर माताजी के विचार मैं जानती हूँ तुम मुझे वचन दो ...अभी वचन दो । सुधीर थर्राते हुए ..क्या वचन दू मीनाक्षी ?? तुम्हे अनाथ आश्रम में जाकर जीतनी ममता लुटाना है लुटाना । मैं मना नहीं करूँगा । लेकिन किसी और की संतान को अपना नाम देना ..जोकि मेरा खून नहीं है । ये मुझसे नहीं होगा मीनाक्षी । सुधीर मीनाक्षी का हाथ निचे रख अपने हाथो उसके आसूँ पोछते हुए कहता है, तुम ये सब कुछ मत सोचो तुम्हे तो रिकवर होना है न ? हम दोनों ही एक दुसरे के लिए काफी है । मीनाक्षी आँखे बंद कर सो जाती है । सुधीर कमरे के बहार आजाता है। मीनाक्षी अच्छी तरह से ये जान चुकी थी कि सुधीर का इतना कह देना काफी नहीं था ।
सुबह होते हि शोभना भाभी के लिए चाय लेकर अस्पताल आती है । भाभी अब कैसी हो ? थोड़ी चाय पी कर फिर आराम करना । मीनाक्षी का निष्प्राण शरीर समस्त कष्टों से मुक्त बिस्तर पर पड़ा था । कई बार उठाने पर भी जब मीनाक्षी ना जगी शोभना को अनर्थ की आशंका हुई । रोती हुई शोभना कमरे से बहार आती है उसकी आवाज़ सुन डाक्टर नर्स सभी दोड़ पड़ते है । सुधीर भी माताजी के साथ पहुच चूका है । हड़ बड़ाते हुए सुधीर डॉक्टर के पास पंहुचा .....
हमें बहुत अफ़सोस है मिस्टर सुधीर, लेकिन इनकी मृत्यु हुए ८ घंटे हो गए । शोभना के चहरे से हवाइया उढ़ जाती है । सुधीर हारा सा दुखी मन लेकर खड़ा है .....माताजी भी विलाप कर रही है । ममता की देवी अपना स्नेह भरा विशालह्रदय लिए निष्प्राण पड़ी है । उसकी म्रत्यु हो गई ? जी नहीं "अपने खून" का राग अलापने वाले कलंकित समाज के इन कलंको ने उसका खून कर दिया । अचानक मोबाईल की घंटी बजती है, सुधीर दुःख में अपने हाथ से फोन माताजी को देता है। माताजी रोते हुए ही ....कौन दुबेजी (मेघना के पिताजी ), क्या कहू बड़ा दुःख आन पड़ा है... मेरी प्यारी मीनाक्षी चल बसी । मैं अभी बहुत दुखी हूँ १३ दिन बाद आपसे चर्चा करती हूँ ।
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