Friday, February 12, 2010

आलम-ए-इश्क (ग़ज़ल)













तुमसे मिली है नज़रे जब से, मैं तो दिवानी हो गई
बस इक तुम हो अब अपनों में,सारी दुनिया बेगानी हो गई

इश्क में जो आहें भरते है, हम अक्सर उन पर हसते थे
तेरे इश्क में अपनी भी, उनके ही जैसी कहानी हो गई

बिन तेरे हर इक मंज़र मुझको, सूना सूना लगता है
तनहाई और बेचैनी ही, मेरी निशानी हो गई

लैला मजनू के किस्सों के, कभी हम भी लतीफे लेते थे
प्यार में तेरे डूबे जबसे, बदनाम जवानी हो गई

याद में तेरी खोई हुई मैं, बहकी बहकी सी रहती हूँ
तौबा करते है अब मुझसे, जो कहते थे सयानी हो गई

यार खुदा मेरा इश्क ही पूजा, बस उसकी इबादत करती हूँ
हर आदत अब उसकी मुझको, याद ज़ुबानीहो गई

25 comments:

स्वप्न मञ्जूषा said...

khoobsurat ahsaas se labrez...
padhne mein lay lagi..accha laga padhna..

दीपक 'मशाल' said...

wah.. badhiya prastuti.... yahan bhi falgun chhaa gaya.. :)

Udan Tashtari said...

बिन तेरे हर इक मंज़र मुझको, सूना सूना लगता है
तनहाई और बेचैनी ही, मेरी निशानी हो गई

-बहुत खूब कहा!

Arvind Mishra said...

आप और अदा जी जुड़वां है क्या ?
सब कुछ वैसा वैसा ही है -
आप कवितायें और वे भी कवितायेँ (लिखती हैं )
आप भी गजल वे भी गजल (लिखती हैं )
अप भी सुन्दर चित्रों को पसंद करती हैं और ब्लॉग में लगाती हैं और वे भी
(न जाने कहाँ से पाती हैं !)
आप भी काव्य मञ्जूषा(अब नाम बदलने से क्या होता है ) हैं और वे तो पहले से ही भरी पूरी काव्य मंजूषा थीं/हैं
आप भी विदेश में वे भी विदेश में हैं .
कितनी समानताएं -क्या महज संयोग ??
अगर जुड़वाँ नहीं तो बहने तो हैं ही -कुम्भ के किस वर्ष में साथ छूटा था ?

अरे हाँ गजल वाकई सहज और सरल है और बिना प्रयास समझ में आ गयी -शाबाश !

श्यामल सुमन said...

बिन तेरे हर इक मंज़र मुझको, सूना सूना लगता है
तनहाई और बेचैनी ही, मेरी निशानी हो गई

सुन्दर भाव के साथ वासंती रंग भी - वाह।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

ताऊ रामपुरिया said...

यार खुदा मेरा इश्क ही पूजा, बस उसकी इबादत करती हूँ
हर आदत अब उसकी मुझको, याद ज़ुबानीहो गई


बहुत लाजवाब.

रामराम.

डॉ. मनोज मिश्र said...

रचना की हर लाइन बेमिसाल ..

Dev said...

प्रेम रस में डूबी ये रचना ......बहुत बढ़िया .

संजय भास्‍कर said...

यार खुदा मेरा इश्क ही पूजा, बस उसकी इबादत करती हूँ
हर आदत अब उसकी मुझको, याद ज़ुबानीहो गई


इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

संजय भास्‍कर said...

यार खुदा मेरा इश्क ही पूजा, बस उसकी इबादत करती हूँ
हर आदत अब उसकी मुझको, याद ज़ुबानीहो गई


इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

डॉ. राजेश नीरव said...

सुन्दर रचना...बधाई...

रंजना said...

सरस सहज सुन्दर भावपूर्ण मनमोहक अभिव्यक्ति....
बहुत ही सुन्दर रचना...वाह !!!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

याद में तेरी खोई हुई मैं, बहकी बहकी सी रहती हूँ
तौबा करते है अब मुझसे, जो कहते थे सयानी हो गई...

बहुत खूबसूरत एहसास के साथ.... सुंदर कविता....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

यार खुदा मेरा इश्क ही पूजा,
बस उसकी इबादत करती हूँ
हर आदत अब उसकी मुझको,
याद ज़ुबानीहो गई....

शब्दों को आपने बहुत खूबसूरती से गीत की माला में पिरोया है!

बधाई!

बाल भवन जबलपुर said...

अति उत्तम ब्लाग पसंद आया
रचना भी अति उत्तम है

बाल भवन जबलपुर said...

अति उत्तम ब्लाग पसंद आया
रचना भी अति उत्तम है

वन्दना अवस्थी दुबे said...

वाह....मीरा जैसा समर्पण-भाव. सुन्दर है.

बाल भवन जबलपुर said...

ati sundar
इश्क कीजे सरे आम खुल कर कीजे
भला पूजा भी कोई छिप छिप के किया करता है

Parul kanani said...

so nice ..

shikha varshney said...

याद में तेरी खोई हुई मैं, बहकी बहकी सी रहती हूँ
तौबा करते है अब मुझसे, जो कहते थे सयानी हो गई
bahut khoob

M VERMA said...

इश्क में जो आहें भरते है, हम अक्सर उन पर हसते थे
तेरे इश्क में अपनी भी, उनके ही जैसी कहानी हो गई
खूबसूरत अहसासों से सजी यह रचना बहुत सुन्दर है

पूनम श्रीवास्तव said...

यार खुदा मेरा इश्क ही पूजा, बस उसकी इबादत करती हूँ
हर आदत अब उसकी मुझको, याद ज़ुबानीहो गई
रानी जी, आपकी पूरी गजल बहुत ही खूबसूरती से रची गयी है।पर इन पंक्तियों का भी जवाब नहीं। शुभकामनायें। पूनम

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

याद में तेरी खोई हुई मैं, बहकी बहकी सी रहती हूँ
तौबा करते है अब मुझसे, जो कहते थे सयानी हो गई

बहुत खूबसूरती से एहसासों को शब्द दिए हैं.....खूबसूरत ग़ज़ल

Yogesh Verma Swapn said...

bahut umda rachna.

सुरेश यादव said...

रानी जी गहरे अहसास लिए यह ग़ज़ल अच्छी लगी आप को बधाई.