दगाओं से भरा मेरा दामन
तो इक तेरी वफ़ा क्या है
दुआएँ भी दर्द देती है
दवाओं की ख़ता क्या है
चटक कर बह उठा ये तो
है लावा दर्द का दिल के
हमदर्दी ना रास आई
भला दिल की ख़ता क्या है
दुआएँ भी दर्द देती है
दवाओं की ख़ता क्या है
अब तो दिन रात हर पल
अश्कों की बरसात होती है
वो कहते है बहार आई
मैं क्या जानू समां क्या है
दुआएँ भी दर्द देती है
दवाओं की ख़ता क्या है
बड़ा मेहरबां सितमगर है
हजारों ज़ख्म देता है
खुद ही अंजान है लेकिन
भला ये भी अदा क्या है
दुआएँ भी दर्द देती है
दवाओं की ख़ता क्या है
दरिया-ए-आब ये गहरा
डूब जाना ही किस्मत है
मगर इसमे जो ना डूबे
तो जीने का मज़ा क्या है
दुआएँ भी दर्द देती है
दवाओं की ख़ता क्या है
46 comments:
आदरणीय रानी विशाल जी
नमस्कार !
बहुत सुन्दर शब्द चुने आपने
आप बहुत सुंदर लिखती हैं. भाव मन से उपजे मगर ये खूबसूरत बिम्ब सिर्फ आपके खजाने में ही हैं
"दुआएँ भी दर्द देती है"
बहुत उम्दा लिखा है......गहरी बात आसानी से कह दी आपने
दिल की गहराइयों से निकली आवाज़ की सुंदर अभिव्यक्ति .
बड़ा मेहरबां सितमगर है
हजारों ज़ख्म देता है
खुद ही अंजान है लेकिन
भला ये भी अदा क्या है
दुआएँ भी दर्द देती है
दवाओं की ख़ता क्या है
मन के अतस्तल से निकली एक श्रेष्ठ रचना।
दरिया-ए-आब ये गहरा
डूब जाना ही किस्मत है
मगर इसमे जो ना डूबे
तो जीने का मज़ा क्या है
वाह सही बात है । अगर दर्द दुख न हों तो सुख का मज़ा भी नही आता। सुख की अहमियत दुख सहने के बाद ही पता चलती है। अच्छी लगी रचना। शुभकामनायें।
सच है कभी कभी दुआएं भी दर्द का एहसास करती हैं ...और उस समय किसी की हमदर्दी भी रास नहीं आती ...
चटक कर बह उठा ये तो
है लावा दर्द का दिल के
हमदर्दी ना रास आई
भला दिल की ख़ता क्या है.
अश्कों की बरसात और उनका कहना कि बहार आई है ...और बिना डूबे जब जीने का मज़ा नहीं तो डूबिये भाई ...और मज़े लीजिए ज़िंदगी के :):)
बहुत अच्छी लगी नज़्म ...मन की गहराई से निकली हुई
दुआएँ भी दर्द देती है
दवाओं की ख़ता क्या है
जालिम है, सितमगर है ये जमाना
हर नुक्कड़ पर तभी तो है दवाखाना
"....मगर इसमे जो ना डूबे
तो जीने का मज़ा क्या है ...."
इस पूरी नज़्म को पढ़कर
दिल से इरशाद निकला
हम और क्या कहें
बस वाह वाह निकला
एक नहीं बार बार पढने को मजबूर करती है आप की ये रचना!
सादर.
दरिया-ए-आब ये गहरा
डूब जाना ही किस्मत है
मगर इसमे जो ना डूबे
तो जीने का मज़ा क्या है
अभाव से ही भाव उत्पन्न होता है,
सुंदर कविता
6/10
दरिया-ए-आब ये गहरा
डूब जाना ही किस्मत है
मगर इसमे जो ना डूबे
तो जीने का मज़ा क्या है
एक उम्दा रचना का सृजन
सच कहा कभी-कभी डूब जाने में ही जीवन की सर्थकता पता चलती है। इस दर्द से ही तो ज़िन्दगी की परीक्षा में हम सफल होते हैं।
सच है, जब दुआऐं दर्द देने लगें तो दवाये क्या करे।
दरिया-ए-आब ये
गहराडूब जाना ही किस्मत
मगर इसमे जो ना डूबे
तो जीने का मज़ा क्या है
दुआएँ भी दर्द देती है
दवाओं की ख़ता क्या है
जब तक नही डूबे तो दर्द को जाना क्या……………यही तो इसका मज़ा है…………………बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
बड़ा मेहरबां सितमगर है
हजारों ज़ख्म देता है
खुद ही अंजान है लेकिन
भला ये भी अदा क्या है
दरिया-ए-आब ये गहरा
डूब जाना ही किस्मत है
मगर इसमे जो ना डूबे
तो जीने का मज़ा क्या है
रानी साहिबा, आपके लेखन की विशेषता ये है कि आप सादा अल्फ़ाज़ का इस्तेमाल करते हुए बहुत गहरी बात कह जाती हैं...
इस सुन्दर रचना के लिए बधाई.
दरिया-ए-आब ये गहरा
डूब जाना ही किस्मत है
मगर इसमे जो ना डूबे
तो जीने का मज़ा क्या है
"दुआएँ भी दर्द देती है"
वाह !! बहुत खूब लिखा है आपने ...
बहुत प्यारी नज़्म है रानी जी ! हर शेर उम्दा है और हर भाव में गहराई है ! सुन्दर भावनाओं पर शब्द रत्नों की तरह जड़े हुए हैं ! बहुत खूब ! मेरी बधाई एवं शुभकामनाएं स्वीकार करें !
आपकी इस नज़्म के भाव शाइराना है और ग़ज़लियत के बहुत करीब हैं। इसका प्रमाण देखें:
दुआ जब दर्द देती हो, दवाओं की खता क्या है
दग़ाओं से भरा दामन, न जाने कि वफ़ा क्या है।
अगर दरिया है गहरा तो जरा सा और गहरा जा
छुपाया तल में क्या इसने,पता इसका लगा कर आ।
सितमगर की तो आदत है, हज़ारों ज़ख्म देता है
और उसपर ये सतम भी है सदा अनजान दिखता है।
वाह क्या बता है एक से बढकर एक शेर.
बहुत सुन्दर नज़्म लगी.
ek shant geet ki taraf puri nazm mere kaanon me utarti gai hai.......
अब तो दिन रात हर पल
अश्कों की बरसात होती है
वो कहते है बहार आई
मैं क्या जानू समां क्या है
दुआएँ भी दर्द देती है
दवाओं की ख़ता क्या है
बहुत ही खूबसूरत भाव शब्दों में बांध दिये हैं, सुंदरतम.
रामराम
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 16 -11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
आप की रचना पढ कर एक शेर याद आ गया..
तेरे वगैर जीस्त का हासिल नहीं रहा
जीने को जी रहा हूं मगर दिल नहीं रहा
मुझ पर तमाम हो चुकी दुनिया की कुलवतें
गम भी अब कोई मेरे काबिल नहीं रहा..
लिखते रहिये
bahut sundar
दुआएं भी दर्द देती हैं !
यह नई बात ज़िन्दगी की अनुभूतियों की परछाई है और आपकी रचना को नए आयाम देती है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
www.marmagya.blogspot.com
रानी जी, अद्भुत हैं आपके भाव। हार्दिक बधाई।
---------
जानिए गायब होने का सूत्र।
बाल दिवस त्यौहार हमारा हम तो इसे मनाएंगे।
दुआएँ भी दर्द देती है
दवाओं की ख़ता क्या है
...गहरे भाव ..खूबसूरत रचना..बधाई.
_________________
'शब्द-शिखर' पर पढ़िए भारत की प्रथम महिला बैरिस्टर के बारे में...
"अब तो दिन रात हर पल -----दबाओं की खता क्या है "
बहुत सुंदर भाव लिए रचना |बधाई
आशा
"बड़ा मेहरबां सितमगर है
हजारों ज़ख्म देता है
खुद ही अंजान है लेकिन
भला ये भी अदा क्या है,
वाह,
क्या भावों की अभिव्यक्ति है,
बहुत सुन्दर
बड़ा मेहरबां सितमगर है
हजारों ज़ख्म देता है
खुद ही अंजान है लेकिन
भला ये भी अदा क्या है
दिल की गहराई में उतर कर निकला दर्द भरा नगमा .... बहुत अछा लिखा है
दुआएँ भी दर्द देती है
दवाओं की ख़ता क्या है ...
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
बड़ा मेहरबां सितमगर है
हजारों ज़ख्म देता है
खुद ही अंजान है लेकिन
भला ये भी अदा क्या है।
भावों को बड़ी ही खूबसूरती से पिरोया है। वाह।
रानी जी मैं आपकी रचना में से ही कुछ कापी-पेस्ट तो नहीं कर पा रहा हूं पर निश्चय ही आपकी रचना सुंदर भावनाओं की अनुभूति करवाती है.
बड़ा मेहरबां सितमगर है
हजारों ज़ख्म देता है
खुद ही अंजान है लेकिन
भला ये भी अदा क्या है
दुआएँ भी दर्द देती है
दवाओं की ख़ता क्या है
Bahut khoobasurati ke sath apne saral shabdon men bahut gahari bat kahi hai.sundar rachna.
Poonam
दरिया -ए-आब गहरा है , इसमें डूब जाना किस्मत है। बेहतरीन पंक्तियां।
बेहतरीन रचना ...!!
होता है होता है.....हालांकि मुझे ऐसा अनुभवा नहीं रहा लेकिन सूना है कि ये दिल के किस्से भी बहुत मशहूर होते हैं....सुनना भी मुश्किल और छुपाना भी...
ब्लॉग पर आपका आगमन उत्साहवर्धक लगा....
...baut sundar ... behatreen ... badhaai !!!
बेहतरीन शब्द संयोजन .... भावों को आपने बहुत सुन्दर तरीके से उभारा है ...
Dil se nikli bat man ko barbas hi chhu leti hai.Aisa hi mahsoos hua hai. Shabd chayan prasansniya hai.PLz,visit my blog.
“दरिया-ए-आब ये गहरा
डूब जाना ही किस्मत है
मगर इसमे जो ना डूबे
तो जीने का मज़ा क्या है
दुआएँ भी दर्द देती है
दवाओं की ख़ता क्या है” बेहतरीन लफ़्ज़ों से तैयार की गई एक नायाब तखलीक है ये. आफरीन ! अश्विनी रॉय
आदरणीया रानीविशाल जी
अभिवादन !
बहुत ख़ूबसूरत नज़्म है आपकी ।
… और पढ़ते हुए मुझे जो बात महसूस हो रही थी , कमेंट बॉक्स में आने पर ध्यान आया कि आदरणीय तिलक जी ने वह कह दिया है ।
बहरहाल अच्छी रचना के लिए बधाई !
आपकी पिछली कुछ पोस्ट्स भी देखी , जो पसंद आईं ।
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बढ़िया अभिव्यक्ति के साथ कमाल की रचना ! शुभकामनायें !
dard ki behatreen abhivyakti .bahut sundar rachna
badhayi
vijay
kavitao ke man se ...
pls visit my blog - poemsofvijay.blogspot.com
Sundar aur khusurat bhao prastuti mein char chand laga diye hai.Mere post par aap amantri hain.
दगाओं से भरा मेरा दामन
तो इक तेरी वफ़ा क्या है
बहुत ही सुन्दर ....
दुआएँ भी दर्द देती है दवाओं की ख़ता क्या है
xxxxxxxxxxxxx
आदरणीय रानी विशाल जी
नमस्कार
आपकी कविता बहुत मार्मिक भाव की अभिव्यक्ति करती है , नए भाव बोध के साथ प्रस्तुत की गयी इस कविता में बिम्ब इसके भाव सम्प्रेष्ण को ग्राह्य बनाते हैं ...आपकी नयी पोस्ट का इन्तजार रहेगा ......शुक्रिया
कभी चलते -चलते पर भी अपना आशीर्वाद प्रदान करना
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