Monday, August 30, 2010

टूटे तारों ने तो किस्मतों को सवाँरा है .......रानीविशाल














कैसा मंज़र है, ये क्या गज़ब नज़ारा है
दर्द का दरिया, और दिल गमों का मारा है

इतने तनहा है की, परछाइयों से डरते है
अब तो बस दिल को, अंधेरों का ही सहारा है

ठोकरें खा कर, ज़माने की ना घायल हम है
वो तो अपने थे, जिनके बोलो ने हमको मारा है

महफ़िल में अपनो की, तो हरदम रुसवाई मिली
साथ गैरो का ही, अब तो दिल को प्यारा है

टूट कर बिखरे भी, 'रानी' तो क्या ग़म है
टूटे तारों ने, तो किस्मतों को सवाँरा है

30 comments:

राजभाषा हिंदी said...

बहुत अच्छी कविता।

हिन्दी का प्रचार राष्ट्रीयता का प्रचार है।

ब्लॉ.ललित शर्मा said...


टूट कर बिखरे भी,'रानी' तो क्या ग़म है
टूटे तारों ने, तो किस्मतों को सवाँरा है।

वाह-वाह,बहुत बढिया आभार

खोली नम्बर 36......!

Anamikaghatak said...

बहुत सुन्दर कविता……

राणा प्रताप सिंह (Rana Pratap Singh) said...

बेहतरीन ग़ज़ल| मकता कमाल का है .......दिल से मुबारकबाद|
ब्रह्मांड

arvind said...

कैसा मंज़र है, ये क्या गज़ब नज़ारा है
दर्द का दरिया, और दिल गमों का मारा है
...vaah bahut sundar ghajal.

अरविंद said...

क्या बात है रानी जी !
गज़ब की ग़ज़ल...
*
टूट कर बिखरे भी,'रानी' तो क्या ग़म है
टूटे तारों ने, तो किस्मतों को सवाँरा है।
*
अहाहा ! मज़ा आया

संजय भास्‍कर said...

उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ!!! इतना खुबसूरत एहसास और ई गालिबाना अंदाज़... मन मिजाज खुस हो गया पढकर.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

ठोकरें खा कर, ज़माने की ना घायल हम है
वो तो अपने थे, जिनके बोलो ने हमको मारा है

महफ़िल में अपनो की, तो हरदम रुसवाई मिली
साथ गैरो का ही, अब तो दिल को प्यारा है..


दर्द को बयाँ करते हुए भी एक सकारात्मक सोच बहुत अच्छी लगी ....

खूबसूरत गज़ल..

Ria Sharma said...

महफ़िल में अपनो की, तो हरदम रुसवाई मिली
साथ गैरो का ही, अब तो दिल को प्यारा है


Apno se to sabhee pyaar kar lete hain..gairon ko apnana ..

Great writeup !

KK Yadav said...

बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति...उत्तम प्रस्तुति.....बधाई.

________________
'शब्द सृजन की ओर' में 'साहित्य की अनुपम दीप शिखा : अमृता प्रीतम" (आज जन्म-तिथि पर)

मनोज कुमार said...

इतने तनहा है की, परछाइयों से डरते है
अब तो बस दिल को, अंधेरों का ही सहारा है
जब अंधेरे का सहारा मिलता है तो रोशनी की मंज़िल मिल ही जाती है।

दिगम्बर नासवा said...

टूट कर बिखरे भी, 'रानी' तो क्या ग़म है
टूटे तारों ने, तो किस्मतों को सवाँरा है ...

लाजवाब ग़ज़ल ..... और इस शेर के तो क्या कहने .... सच है टूटे तारों में इंसान किस्मत देखता है .....

समयचक्र said...

इतने तनहा है की, परछाइयों से डरते है
अब तो बस दिल को, अंधेरों का ही सहारा है

ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति....आभार

दीपक बाबा said...

इतने तनहा है की, परछाइयों से डरते है
अब तो बस दिल को, अंधेरों का ही सहारा है


क्या नाम दें - आप ही बताइए...... कविता या नज़्म : मुझमे इतनी क्षमता नहीं........

पर बहुत ही अच्छी है.

Hindi Tech Guru said...

बहुत अच्छी कविता।

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर रचना.

रामराम

Udan Tashtari said...

टूट कर बिखरे भी,'रानी' तो क्या ग़म है
टूटे तारों ने, तो किस्मतों को सवाँरा है।

-वाह! क्या बात है! उम्दा!

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर कविता जी, धन्यवाद

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

कैसा मंज़र है, ये क्या गज़ब नज़ारा है
दर्द का दरिया, और दिल गमों का मारा है
वाह...
इतने तनहा है कि, परछाइयों से डरते है
अब तो बस दिल को, अंधेरों का ही सहारा है
मायूसी से भरा....
लेकिन दिल को छूने वाला शेर.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत अच्छी कविता..... उत्तम प्रस्तुति.....बधाई.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

रानी जी!लगता है आप गजल लिखी नहीं हैं,ईसब आपने जी कर देखा है..जब दिल से लगा है तब जाकर गजल बना है..बहुत सुंदर!!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत सुन्दर.............

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

टूटे हुए तारों ने किस्मत को सँवारा है।
मिल जाये खुशी उनको, ग़म हमको गँवारा है।।
--
काव्य तरंग की चर्चा तो चर्चा मंच पर भी है!

गजेन्द्र सिंह said...

अच्छी पंक्तिया है ......

http://thodamuskurakardekho.blogspot.com

निर्मला कपिला said...

ठोकरें खा कर, ज़माने की ना घायल हम है
वो तो अपने थे, जिनके बोलो ने हमको मारा है
दर्द तो हमेशा अपने ही देते हैं। बहुत अच्छी लगी कविता। शुभकामनायें

DR.ASHOK KUMAR said...

रानी जी नमस्कार! बहुत ही लाजबाव कविता हैँ। प्रत्येक शब्द दिल को छू गया हैँ। शुभकामनायेँ! -: VISIT MY BLOG :- गमोँ की झलक से जो डर जाते हैँ।...........गजल को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमंत्रित हैँ। आप इस लिँक पर क्लिक कर सकती हैँ।

mridula pradhan said...

bahot achchi lagi.

SATYA said...

बहुत सुन्दर,

आप भी इस बहस का हिस्सा बनें और
कृपया अपने बहुमूल्य सुझावों और टिप्पणियों से हमारा मार्गदर्शन करें:-
अकेला या अकेली

Prem Farukhabadi said...

महफ़िल में अपनो की, तो हरदम रुसवाई मिली
साथ गैरो का ही, अब तो दिल को प्यारा है

बेहतरीन ग़ज़ल.बधाई.

Anonymous said...

इतने तनहा है की, परछाइयों से डरते है
अब तो बस दिल को, अंधेरों का ही सहारा है

लाजवाब शेर...

बढ़िया ग़ज़ल!