Tuesday, February 23, 2010

कल रात फिर ख़्वाबो में


कल रात फिर ख़्वाबो में
यू हो गया
उनसे सामना
बेकरार हो मचल उठे
मुश्किल था
दिल को थामना
कोमल लबों पर
ठहरे हुए से
कुछ भीगे शब्द
अब भी थे वही....
आँखों में आँखें डाल कर
अरमानो को उढ़ेलाना
भावनाओं का आवेग
फिर से अहसास
बुदबुदाने लगा..
पलकों की आड़ से हुए
नज़रो के मीठे प्रहार
ह्रदय के पार हुए......
सहसा !
अनुभूतियों के
दूजे छोर पर
खड़े हम
हारे हुए से रह गए !!!

27 comments:

अखिलेश शुक्ल said...

apka priyash bahot sarahniya hai. in poems ko prakashan ke liyai jarur bhaji. Hindi literature magazine ke short rivew padhni ke liyai padhari.
http://katha-chakra.blogspot.com
Akhilesh shukla

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

पलकों की आड़ से हुए
नज़रो के मीठे प्रहार
ह्रदय के पार हुए.....

बहुत बढि्या-आभार

मनोज कुमार said...

अनुभूतियों के
दूजे छोर पर
खड़े हम
हारे हुए से रह गए !!!
संवेदनशील रचना।
रहिमन चुप है बैठिए देखि दिनन के फेर ।
जब नीके दिन आईहैं बनत न लगिहैं बेर ।

ताऊ रामपुरिया said...

कल रात फिर ख़्वाबो में
यू हो गया
उनसे सामना
बेकरार हो मचल उठे
मुश्किल था
दिल को थामना

बहुत नायाब अभिव्यक्ति, शुभकामनाएं.

रामराम.

डॉ. मनोज मिश्र said...

अनुभूतियों के
दूजे छोर पर
खड़े हम
हारे हुए से रह गए .....
वाह,गजब की अनुभूति.

राजीव तनेजा said...

पलकों की आड़ से हुए
नज़रो के मीठे प्रहार
ह्रदय के पार हुए...
सुन्दर अभिव्यक्ति

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

कोमल लबों पर
ठहरे हुए से
कुछ भीगे शब्द
अब भी थे वही....
आँखों में आँखें डाल कर
अरमानो को उढ़ेलाना
भावनाओं का आवेग
फिर से अहसास
बुदबुदाने लगा..

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

दुःख की बदली छँटी,
सूरज उगा विश्वास का,
जल रहा दीपक दिलों मे,
स्नेह ले उल्लास का,
ज्वर चढ़ा, पारा बढ़ा है
प्यार के संसार पर।
दे रहा मधुमास दस्तक
है हृदय के द्वार पर।।

Mithilesh dubey said...

क्या बात है , बहुत ही लाजवाब कविता लगी ।

विवेक रस्तोगी said...

वाह सामना होने को बेहतरीन तरीके से अभिव्यक्त किया है।

Yogesh Verma Swapn said...

aur swapn toot gaya.

behatareen abhivyakti.

Dev said...

लाजवाब प्रस्तुति .......

ठाकुर पदम सिंह said...

सहसा !
अनुभूतियों के
दूजे छोर पर
खड़े हम
हारे हुए से रह गए !
.......ख्वाब तो ख्वाब हैं

निर्मला कपिला said...

अनुभूतियों के
दूजे छोर पर
खड़े हम
हारे हुए से रह गए .....
बहुत सुन्दर भावमय कविता है । शुभकामनायें

Udan Tashtari said...

अनुभूतियों के
दूजे छोर पर
खड़े हम
हारे हुए से रह गए !!!


-बहुत उम्दा!

Prakash Jain said...

A fantastic creation Ma'am...
The start of the poetry is just fantastic...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अनुभूतियों के
दूजे छोर पर
खड़े हम
हारे हुए से रह गए !!!

काश ये अनुभूति कवाब में ना हो कर हकीकत में होती तो यूँ हारे हुए से ना रहते....

सुन्दर भावाभिव्यक्ति

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

रानी विशाल साहिबा, आदाब
कोमल लबों पर.....ठहरे हुए से
कुछ भीगे शब्द......अनुभूतियों के

दूजे छोर पर......खड़े हम.....हारे हुए से रह गए.....
आपकी हर प्रस्तुति पर क्या कहें.
बहुत सुन्दर....लाजवाब....बधाई

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

बहुत सुंदर व कोमल अनुभूतियों की सक्षम प्रस्तुति.

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

संजय भास्‍कर said...

हर रंग को आपने बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

neelima garg said...

kya kahen....so sweet...

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

क्या कहूँ..... अब...बहत सुंदर कविता है.... प्रेम की अभिव्यक्ति को बहुत ही खूबसूरती से संवारा है...आपने.... दिल को छू गई ....

डॉ टी एस दराल said...

सुन्दर शब्दों में सुन्दर रचना ।
कोमल अहसास लिए हुए।

स्वप्न मञ्जूषा said...

bahut hi sundar abhivyakti ...
kavita lajwaab bani hai..
badhai..

रोमेंद्र सागर said...

कुछ भीगे शब्द
अब भी थे वही....

बहुत सुन्दर ...!

Arvind Mishra said...

फागुनी अनुभूति की सुन्दर कविता

drsatyajitsahu.blogspot.in said...

अनुभूतियों के
दूजे छोर पे
हम
भींगे से
खड़े रह गए.
....................................प्यारी कविता है