Friday, September 10, 2010
कह ना सकेंगा -----------रानीविशाल
पलकें उठी
उठ कर झुकी
पल में सावल
करती कई
न मिली नज़र
कभी कही
पर नज़र में बस
हरसू वही
न नाम तो लिया
मगर
हर बात में
वही वही
दिल जाने
वो नहीं कहीं
फिर भी ढूंढे उसे
इधर उधर
उसके नाम से
हर शाम ढले
उसी के नाम से
होती सहर
खामोशियों का
गुंजन वही
बेकली वही
तड़पन वही
न दुआएं अब
करें असर
दूभर हुआ
पहर पहर
क्यों न
खुद ही राही तक
चलकर अब
मंज़िल ही आजाए
पल पल इतना
तड़प लिए
अब और ना
तड़पाए
वो आजाए
बहार बन कर
मन की बगिया
महकाए
हर वक्त
अब तो दिल को
उसी पल का
इंतज़ार है
क्योंकि ये जानता है
दिल मेरा
यूँ तो
कह ना सकेंगा
प्यार है ......!!
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29 comments:
sundar kavita Rani ji...
आपने अपनी रचना में प्यार की सुन्दर परिभाषा प्रस्तुत की है!
--
बधाई!
अतिसुन्दर भावाव्यक्ति , बधाई के पात्र है
बहुत सुन्दर.
मंजिल जरुर खुद ब खुद आ जाती है राही तक अगर जज्बे बुलंद हों !बढियां !
सुन्दर कविता ...
हार बन कर
मन की बगिया
महकाए
हर वक्त
अब तो दिल को
उसी पल का
इंतज़ार है
क्योंकि ये जानता है
दिल मेरा
यूँ तो
कह ना सकेंगा
प्यार है ......
यही तो मुश्किल है इस दिल की कहना चाहे भी तो कह ना पाये । सुंदर भावभीनी प्रस्तुति ।
दिल की गिरह खोल दो,
चुप न बैठो,
कोई गीत गाओ,
महफ़िल में अब कौन है अजनबी,
तुम मेरे पास आओ...
जय हिंद...
bahut badhiya kavita raniji.
सब कुछ कह कर भी कभी कभी खुल कर कह नही पाता मन ... बहुत सुंदर रचना है ...
उसी के नाम से
होती सहर
खामोशियों का
गुंजन वही
बेकली वही
तड़पन वही
न दुआएं अब
करें असर
दूभर हुआ
पहर पहर
क्यों न
खुद ही राही तक
चलकर अब
मंज़िल ही आजाए
BAHUT KHOOB !
सुन्दर प्रस्तुति ।
बहुत ही सशक्त शब्द संप्रेषण है, शुभकामनाएं.
रामराम.
मन के भावों को बहुत खूबसूरती से कह दिया है ...वैसे तो शायद नहीं कह सकता था ....सुन्दर नज़्म ..
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 14 - 9 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
http://charchamanch.blogspot.com/
सुंदर भावनाएं . लेखन जारी रखें .
रानी जी नमस्कार! वाह! कमाल कर दिया आपने तो। कितनी खूबसूरती से कोमल भावनाओँ को नज्म मेँ पिरोया हैँ आपने। हार्दिक शुभकामनाये! -: VISIT MY BLOG :- (1.) जिसको तुम अपना कहते हो ............ कविता को पढ़कर तथा (2.) Mind and body researches..........ब्लोग को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमंत्रित हैँ।
बहुत सुन्दर.
बहुत सुंदर रानी जी ....
आपके नाम और चेहरे की तरह पाक और मासूम सी नज़्म .....
क्योंकि ये जानता है
दिल मेरा
यूँ तो
कह ना सकेंगा
प्यार है ......!
कह कर कहा तो क्या कहा। बहुत सुन्दर रचना बधाई।
Pyar ke dard ki bahut sundar abhivyakti....bahut sundar..
http://www.sharmakailashc.blogspot.com/
bahut khoobsurat..
मन की कितनी आशायें, असमर्थ जीवन।
इधर उधर
उसके नाम से
हर शाम ढले
उसी के नाम से
होती सहर
खामोशियों का
गुंजन वही
बेकली वही
तड़पन वही
न दुआएं अब
करें असर
दूभर हुआ
पहर पहर
क्यों न
इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....
हिंदी दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएँ
बढ़िया प्रस्तुति,
यहाँ भी पधारें :-
अकेला कलम...
रानी जी, बहुत सुन्दर और भावपूर्ण है आपकी यह कविता--हार्दिक शुभकामनायें।
खामोशियों का...गुंजन वही
बेकली वही...तड़पन वही
न दुआएं अब...करें असर
दूभर हुआ...पहर पहर
क्यों न...खुद ही राही तक
चलकर अब...मंज़िल ही आ जाए...
इन पंक्तियों ने सबसे ज़्यादा प्रभावित किया...
पूरी रचना बेहतरीन है...बधाई.
sunder
इंतज़ार की तड़प को बहुत ही खूबसूरती से शब्दों में बांधा है ! हर शब्द से बेकरारी स्पष्ट झलकती है ! बहुत ही सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचना है ! बधाई स्वीकार करें !
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