वी आर सॉरी मैम ........इस पीस में पिंक कलर नहीं है हमारे स्टॉक में आप रेड ट्राई कर के देख सकती है ..यह रेड देखिये । नहीं रेड नहीं लाल रंग बहुत है मेरे पास मेरे पति अक्सर लाल रंग की ड्रेसेस ही लाते है मेरे लिए ...थैंक यू । मीसा, तुम यही इस कुर्सी पर बैठना मैं यह ग्रीन वाला ड्रेस ट्राई कर के देखती हूँ । अपनी ५ वर्ष की बेटी को कुर्सी पर बिठा कर शालिनी ट्रायल रूम में चली गई ।
देखो मीसा, अच्छा लग रहा है न ?.....अरे मीसा ! मीसा कहाँ चली गई २ मिनिट में..... अभी तो यही बैठी थी । शालिनी भाग भाग कर मॉल में अपनी बेटी को ढूंडने लगी । थोड़ी सी ही देर देखने पर जब मीसा न दिखी शालिनी के तो पसीने छूटने लगे, हाथों में कम्पन होने लगा । घबराई हुई शालिनी अपने पति अविनाश को फोन करने की कोशिश करने लगी लेकिन ये क्या मॉल में तो मुआ नेटवर्क ही नहीं मिल रहा अचानक सोचने लगी ....अविनाश भी नाराज़ होंगे कि तुम शोपिंग में इतनी व्यस्त हो गई कि मीसा का ध्यान भी न रख सकी .....तभी उसके मन में ख्याल आया रिसेप्शन पर जाकर पेज करती हूँ । मीसा बहुत समझदार है मेरी आवाज़ सुनते ही जहाँ कही होगी चली आएगी । बस ये ५ ही मिनिट का समय अंतराल था, जिसमे शालिनी के दिमाग में इतने विचार दौड़ गए । वह जैसे ही रिसेप्शन पर जाने को पलटती है .....एक महिला कि गोद में मीसा को देख तमतमा उठती है । वह महिला मीसा को गोद में लिए थी और मीसा उसके साथ खुश होकर खेल रही थी ।
ओ..... हेलो मीस, बच्चे चुराने का बिजनेस करती हो क्या ? अभी पुलिस को कॉल करती हूँ .....ऊँचे स्वर में उस महिला को झिड़कते हुए शालिनी ने मीसा को अपनी गोद में ले लिया । जैसे ही दोनों कि आपस में नज़रें टकराई... अरे शालिनी तुम ! सुनते ही शालिनी ने उसे ध्यान से देखा .....शची तुम ? और पल भर मैं दोनों सखियाँ पुरानी यादों के गलियारों में घूम आई । इतने साल बाद भी दोनों में उतना ही प्रेम भी तो था । शालिनी ने तुरंत शची को गले से लगा लिया । सॉरी शची, मैंने तुम्हे पहचाना ही नहीं ....दरसल कभी सोचा नहीं था कि तुमसे इस तरह यहाँ मुलाकात होगी । कोई बात नहीं शालू, तुम माँ हो न घबराना तो स्वाभाविक ही था । वो हुआ यूँ कि मैं यहाँ से गुज़र रही थी इतनी प्यारी बच्ची को बैठे देख उससे बात करने का दिल किया और बात करते करते उसे प्यार करने को गोद में लिया ही था मैंने कि मेरा एक ज़रूरी फोन आगया ...... यहाँ मॉल में तो नेटवर्क मिलाता ही नहीं तो मैं थोड़ा गेट तक चली गई लेकिन बच्ची को गोद से उतरना ही भूल गई ....गलती तो मेरी ही है ।
खैर छोड़ो ....ये बताओ तुम यहाँ कैसे ? मैं यहाँ के सेल्स डिविज़न की मेनेजर हूँ ....अरे वाह ये तो बड़ी अच्छी बात है । तुम इतने साल कहाँ थी शची और जीजू कैसे है ?
मैं खुश हूँ.... तुम्हे इस तरह देख बहुत अच्छा लग रहा है । मीसा बिलकुल तुम्हारी तरह लगती है इतने साल में तुम बिलकुल नहीं बदली । बचपन की दोनों सहेलियाँ इतने साल बाद एक दुसरे से मिलकर बहुत खुश थी । दोनों ही एक दुसरे से बहुत कुछ पूछना चाहती थी और बताना भी ।
घड़ी की और निगाह डालते हुए शची कहती है ........शालू, अगर तुम व्यस्त न हो तो आज हम लंच साथ ही लेते है । मैं हाफ डे लेलेती हूँ कही बैठ कर इतने बरसों की सारी बातें करेंगे ...अरे क्यों नहीं, अविनाश तो अपना टिफ़िन ऑफिस लेकर ही जाते है । ये ठीक भी रहेगा..... मेरा भी तो इतनी छोटी सी मुलाकात से मन न भरेगा और तुमसे बहुत कुछ जानना भी तो है । पता है ....मैंने तुम्हे कितना याद किया (और इसी तरह बातें करते करते दोनों शोपिंग मॉल से बहार निकल गई शची ने बड़े प्यार से मीसा को फिर अपनी गोद में उठा लिया और शालिनी अपने शोपिंग बेग्स उठा कर चल पड़ी )
क्रमशः
Tuesday, September 14, 2010
विरक्ति पथ.................रानीविशाल
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
21 comments:
bahut acchhi kahani...kafi badhiya presentation...aabhaar.
कहानी की शुरुआत बहुत अच्छी है ...शीर्षक विरक्ति पथ है तो लगता है बहुत बदलाव आयेंगे कहानी में ...आगे इंतज़ार है .
अच्छी चली है कहानी
रानी जी व्यस्टती कि वजहसे मै बहुत दिनों से आपके ब्लॉग पे ना आ पाई ....
बहुत अच्छी कहानी है ....
कहानी की शुरुआत बहुत अच्छी है
कहानी अच्छी है...
कहानी लेखन में भी आपने खुद को साबित कर दिया.
हमारीवाणी को और भी अधिक सुविधाजनक और सुचारू बनाने के लिए प्रोग्रामिंग कार्य चल रहा है, जिस कारण आपको कुछ असुविधा हो सकती है। जैसे ही प्रोग्रामिंग कार्य पूरा होगा आपको हमारीवाणी की और से हिंदी और हिंदी ब्लॉगर के साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओँ और भारतीय ब्लागर के लिए ढेरों रोचक सुविधाएँ और ब्लॉग्गिंग को प्रोत्साहन के लिए प्रोग्राम नज़र आएँगे। अगर आपको हमारीवाणी.कॉम को प्रयोग करने में असुविधा हो रही हो अथवा आपका कोई सुझाव हो तो आप "हमसे संपर्क करें" पर चटका (click) लगा कर हमसे संपर्क कर सकते हैं।
टीम हमारीवाणी
आज की पोस्ट-
हमारीवाणी पर ब्लॉग पंजीकृत करने की विधि
कहानी का ताना बाना बहुत ही कसावट भरा है, आगे का इंतजार करते हैं किधर मोड लेती है.
रामराम.
बढ़िया कहानी है. आगे की कहानी का इंतजार है.
आभार
संगीता जी का संकेत स्पष्ट है. शैली और रोचक बनाने की कोशिश करिये
पढ़ कर उत्सुकता जागती है कि आगे क्या हुआ ?
मेरे ख्याल से यही इस कहानी की खूबी है.
बधाई और शुभकामनाएँ .
@ गिरीश भाईसाब देशकाल के अनुसार कहानी हमारे आस पास की ही प्रतीत हो इसीलिए बोलचाल की ही भाषा का उपयोग किया है . आपके सुझाव के लिए आभार इस पर अवश्य ध्यान दूंगी
acchi lagi hai kahani..
aage ka intezaar hai..
बहुत बेहत सुगठित प्रवाह...और कथानक...आगे इन्तजार करते हैं.
नाटकीय मुलाकात
पुराने दोस्तों की मुलाकात अच्छी लगी ...
फिर क्या हुआ ..?
अच्छी शुरुआत है...
बिना सोचे समझे एकदम से किसी संभ्रांत महिला पर बच्चा चोरी का आरोप लगाना थोड़ा अखरा...
जय हिंद...
bahut rochak aur sundar..aage ka intezar hai...Badhai
http://sharmakailashc.blogspot.com/
@ खुशदीप भाईसाब कहानी महानगर (दिल्ली ) को ध्यान में रखकर लिखी गई है .....जहाँ दिन दहाड़े २ मिनिट माता पिता की नज़रों से ओझल होने पर कितने ही बच्चे गायब हो जाते है . शालिनी माँ है घबराहट में बोल गई लेकिन हम ये भी तो देखे बाद में वो शची से क्षमायाचना भी करती है .
well this is just great ma'am
Post a Comment