(अब तक : कालेज ख़त्म होने के बाद से बिछड़ी परम सखियाँ शची और शालिनी दिल्ली में किसी मॉल में अचानक टकराती है । शची मुंबई से पिछले महीने ही आई है........ इसी माल में मेनेजर है । दोनों मिलकर शेष दिन साथ में बिताने का तय करते है ताकि एक दुसरे से सुख दुःख की बातें कर सके । बातों के दोरान शची शालिनी को बताती है अब वो और उसके पति सिद्धार्थ साथ नहीं है .......इम्तिहान के बाद जाब वो अपने पिता के साथ ससुराल गई तो हमेशा के लिए आगई । शालिनी अचंभित है .....शची वृतांत सुनती है )
अब आगे :
परिणाम आने पर मैं बहुत उत्साहित थी ....सिद्धार्थ का पी. एच. डी. भी अब तक पूर्ण हो चूका था । तब पापा के साथ दिल्ली से मनाली अपने ससुराल जाते वक्त मार्ग में पुरे समय मैं सिद्धार्थ के साथ अपने मिलन के सपने सजा रही थी । मनाली की खुबसूरत वादियों में ख्यालों में अपने साथ उन्हें ही पाती . हर्षित मन और ढ़ेर सारी उमंगें...... . शादी के ३ सालों में मैं, भावात्मक रूप से सिद्धार्थके साथ पूरी तरह जुड़ चुकी थी । वैसे भी हम कितने भी मार्डन क्यों न हो जाए अपने पति को परम प्रिय मानना तो हिन्दुतानी लड़कियों की फितरत होती है । रात होते होते हम लोग घर पहुच गए ....सफ़र की थकान ने पापा को बहुत लुस्त कर दिया था । वे पहले ही दिल के मरीज़ थे और उस पर मौसम भी कुछ ठीक ना था अगर भाई की इंजीनियरिंग की परीक्षा नहीं होती तो पापा शायद उसे ही साथ भेजते । घर में सास ससुर हमें देख बहुत खुश हुए ......पापा, आप आराम कीजिये मैं आपका भोजन आपके कक्ष में ही लेकर आजाऊंगी.....कह कर शची एक ज़िम्मेदार बहु की तरह रसोई में चली गई । सास ससुर को भोजन करते वक्त वो महसूस कर रही थी जैसे उनके ह्रदय पर कोई बोझ सा है पता नहीं किस उलझन मैं है ! सबको भोजन करा कर शची अपने पापा के लिए भोजन लेकर कक्ष में जाती है मगर ये क्या ....पापा आपको तो बड़ा तेज़ बुखार हो गया है ! अभी तो दवाई दे रही हूँ ये लेकर आराम कीजिये लेकिन कल तक आप एक दम ठीक ना हुए तो नहीं जाने दूंगी । शची के सास ससुर भी उसके पिताजी से २-३ दिन रुक कर पूर्ण स्वस्थ होने का आग्रह करने लगे ।
शची की सास जो उसे अपनी माँ की ही तरह लगाती थी बड़े प्यार से कहती है शची बेटा तुमने अब तक कुछ नहीं खाया ...सफ़र की थकान है तुम भी भोजन करो और जाकर आराम करो । थोड़ी शरमाई हुई शची कहती है ....नहीं माँ उन्हें आने दीजिये । यह सुन कर शची की सास के सर पर चिंता की लकीरे खीच गई । क्या हुआ माँ आप कुछ चिंतित दिखाई देती है ....बेटा तुम्हे तो पता ही है पहले भी सिद्धार्थ अक्सर शाम को पहाड़ों में टहलने चला जाया करता था .....हाँ , वो कहते थे एकांत में प्राकृतिक सोंदर्य के बिच पढ़ाई अच्छी होती है इसीलिए .....हाँ बेटा , लेकिन अब तो वो शाम से जाता है तो देर रात तक आता है कभी कभी तो १२ -१ बज जाते है रत के । शची सोचने लगी ४-५ महीनो से वो भी नहीं थी शायद अकेलेपन के कारन सिद्धार्थ ऐसा करते है । अपनी सास को समझती है माँ, अब मैं आगई हूँ न सब ठीक हो जाएगा । आप निश्चिंत होकर सो जाइए जब वो आएँगे मैं उन्हें खिला दूंगी । जैसी तुम्हारी ईच्छा बेटा ....कह कर शची की सास भी चली गई ।
घंटों बीत गए सिद्धार्थ का कोई अता-पता न था । शची गैलरी में खड़ी हो कर दूर सड़क पर सिद्धार्थ को देख रही थी .....सर्दी भी बहुत बड़ गई थी । उसका मन अब व्यथित होने लगा ...... सोचने लगी आज तो सिद्धार्थ को पता ही था मैं आजाऊगी फिर भी अब तक न आए ....सहसा शची को कक्ष में किसी की आहट सुनाई देती है , अचानक शची अन्दर आई
आप आगए .....
हाँ आगया .......अपनी ही सोच में डूबा सिद्धार्थ ....गंभीर स्वर में जवाब देता है .
ये क्या ? न स्वेटर न शाल ! बाहर कितनी सर्दी है रात की १ बजने को है खाना भी नहीं खाया आपने अब तक .....कहाँ थे ?
पहाड़ों के शिखर पर एकांत में परमानन्द को महसूस कर रहा था .....वो तो मुझे माँ ने बता ही दिया ...मैं भी मनाली की हसीं वादियों में आपके साथ साथ घूमना चाहती हूँ ३ साल में हम कभी भी नहीं घुमे यहाँ ...
लेकिन आपने गरम कपड़े क्यों नहीं पहने .....सर्दी लग जाएगी ऐसे तो ।
शची , सर्दी या गर्मी का अहसास सिर्फ शारीर को होता है....आत्मा इनसे परे है । आपकी बड़ी बड़ी बातें आप ही समझे चलिए ...भोजन परोस दिया है ...
मैं अमृत सुधापान कर तृप्त हो चूका हूँ । अब भूख कहाँ.....!!
अरे, ऐसे कैसे नहीं खाएंगे.......... इस तरह रहेंगे तो कमज़ोर हो जाएंगे ।
कमज़ोरी इस नश्वर शरीर को आसकती है मुझे नहीं ....इस शारीर का मोह त्याग दो शची .....
माँ के चहरे पर खिंची चिंता की लकीरे शची उसके और सिद्धार्थ के बिच अब बहुत अच्छी तरह देख सकती थी । हिम्मत कर शची सिद्धार्थ के नज़दीक जाने का प्रयास करती है ...लेकिन, तुरंत उसे लगा जैसे सिद्धार्थ की निगाहें उसे इसकी अनुमति नहीं देती ....सिद्धार्थ उससे कहता है शची अब मैं भौतिक जीवन के बंधनों से पूरी तरह मुक्त हो चूका हूँ बल्कि मैं तो कभी इस बंधन में बंधा ही नहीं था। तुम मेरा हाथ थम जिस राह पर चलना चाहती हो वो मेरा मार्ग नहीं .....
मैं तो विरक्ति पथ पर सतत अग्रसर हूँ ।
विरक्ति पथ ??? शची के शरीर में बिजली सी कौंध गई .....
हाँ शची, ये संसार , ये रिश्ते , ये बंधन .....ये गृहस्थ मेरे लिए नहीं ...... मैं तो विरक्ति पथ पर चल कर परमानन्द को प्राप्त कर निर्वाण तक पहुचना चाहता हूँ ।
शची के ह्रदय पर जो आघात हुआ कि उसका संभलपाना मुश्किल हो गया ....सारे सपने क्षणभर में टूट कर बिखर गए ....
मेरे लिए अब कोई रिश्ता अलग नहीं सब एक जैसे है .....संसार की सारी स्त्रियाँ मात्रतुल्य है .....तुम चाहो तो मेरी भावनाएं जानने के बाद भी बिना मुझसे कोई अपेक्षा किये पुरे अधिकार से इस घर में रह सकती हो अन्यथा तुम अपना घर संसार बसने के लिए स्वतंत्र हो ...मुझे तुम्हे रोकने की रत्ती मात्र चेष्ठा नहीं ....सिद्धार्थ फिर से लाइब्रेरी में जाकर अपनी किताबों में खो गया .....
ये रात उसके जीवन में इतना बड़ा कहर गिराएगी शची ने सोचा न था .....सारी रात उसके नेत्रों से उसकी पीड़ा बहती रही .....
क्रमशः
Monday, September 20, 2010
विरक्ति पथ { भाग ३ }-----------------------रानीविशाल
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15 comments:
अच्छा लेख . बधाई
बहुत अच्छा चल रहा है...बधाई
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
मराठी कविता के सशक्त हस्ताक्षर कुसुमाग्रज से एक परिचय, राजभाषा हिन्दी पर अरुण राय की प्रस्तुति, पधारें
बहुत ही सुन्दर और शानदार लेख! बेहतरीन प्रस्तुती!
मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण कहानी अच्छी चल रही है . मुझे लगता है कि आगे चल कर यह उपन्यास में तब्दील हो जाएगी. शुभकामनाएं .
ओह ..अप सिद्धार्थ का परमानन्द क्या है ? यह जाने की उत्कंठा है ...अच्छी लगी यह कड़ी भी ..
AADARNIYA RANI DIDI
KAHANI PASAND AAI AUR YAH KADI ACHI LAGI...
bahut hi achhi jeevni..
achchhi chal rahi hain kahani.
aage bhi padhte hai.
aabhar
बहुत ही शानदार कहानी हैँ। संवेदनाओँ से परिपूर्ण बहतरीन प्रस्तुति। आभार! -: VISIT MY BLOG :- ऐ-चाँद बता तू , तेरा हाल क्या है।............कविता को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमंत्रित हैँ। आप इस लिँक पर क्लिक कर सकते हैँ।
कथा का यह एपीसोड बहुत ही रोचक रहा!
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अगली कड़ी की प्रतीक्षा है!
देखें सिद्धार्थ किस विरक्ति पथ पर अग्रसर होते हैं..शाचि की हालत समझी जा सकती है...कहानी रोचक मोड़ पर है...
अच्छी रोचक कहानी !!
कहानी रोचक है ...!
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