सुन जरा तुझे हमराज़ बना,
मैं एक बात बताऊ
बस मेरे दिल की बात नहीं,
जीवन का राज़ सुनाऊ
जो अटल-अमर सा रहता है
और बिखर-संवर सा बहता है
जो "अंतरमन "की तह में बसा
जिसे, संतो ने ढूंडा वन वन में
कबीरा ने बांटा जन जन में
मीरा ने पाया खुद मन में
रहता है अब वो छुपा छुपा
भौतीक जीवन से ढका हुआ
कंही "अंतरमन" में धंसा धंसा
जब जग दुनिया का साथ ना था
तो उसी के साथ में रहते थे
उसका साथ कहे या फिर
खुद ही के साथ में रहते थे
उत्साह वही तो देता था
खुद अकेले आगे बड़ने का
मुश्किलों से उभरने का
सब तकलीफों से लड़ने का
जो विलास-प्रमोद का पड़ाव मिला
उसे छोड़ वही पर ठहर गए
अब संसार के साथ है बसे हुए
पर खुद का साथ ही सिधर गए
जब रंग रंगीली हवा थमी
तो कानो में आवाज़ पड़ी
तेरा "अंतरमन" तेरे साथ ना है
जिसमे परमेश्वर रहता था
तू खुद को खुद से खिंच जरा
जो तेरे भीतर धंसा पड़ा
न ढूंढ मुझे तू यहाँ
न ताक मुझे तू घड़ी घड़ी
बस खुद से खुद में झाँक ज़रा
पा जाएगा ये कहता हूँ
तू बिसर भले ही चले मुझे
मैं तेरे "अंतरमन" में रहता हूँ
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18 comments:
रानी जी,
मेरा नाम स्वप्न मंजूषा 'अदा' है...
ख़ुशी हुई आपकी कविता पढ़ कर..लेकिन उससे भी ज्यादा सुखद अनुभव यह हुआ की आपका ब्लॉग मेरा ब्लॉग एक ही नाम साझा करते हैं..
आप भी पढ़िए..
आभार..
http://swapnamanjusha.blogspot.com/2010/01/blog-post_18.html
बहुत बढ़िया.
स्वागत है आपका.
नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएँ.
बढिया.
जो विलास-प्रमोद का पड़ाव मिला
उसे छोड़ वही पर ठहर गए
अब संसार के साथ है बसे हुए
पर खुद का साथ ही सिधर गए
अंतर्मन के कपाटों को खोल अध्यात्मिक सन्देश देती सुंदर कविता के लिए बधाई स्वीकारें. बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं.
सुंदर शब्दों के साथ ....सुंदर कविता....
अच्छी रचना ,अच्छे भाव
अन्य ब्लागों को भी पढ़ें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देने का कष्ट करें
Welcome . it is great
" bahut hi sunder rachana ...
बस खुद से खुद में झाँक ज़रा
पा जाएगा ये कहता हूँ
तू बिसर भले ही चले मुझे
मैं तेरे "अंतरमन" में रहता हूँ
ye bahut hi sahi kaha hai aapne ..aapko badhai
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
Aapka blog jagat me swagat hai!
इस नए ब्लॉग के साथ आपका हिन्दी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. आपसे बहुत उम्मीद रहेगी हमें .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
बस खुद से खुद में झाँक ज़रा
पा जाएगा ये कहता हूँ
तू बिसर भले ही चले मुझे
मैं तेरे "अंतरमन" में रहता हूँ
wah!
सुंदर
तू खुद को खुद से खिंच जरा
जो तेरे भीतर धंसा पड़ा
न ढूंढ मुझे तू यहाँ
न ताक मुझे तू घड़ी घड़ी
लीजिये स्वप्न मञ्जूषा के नाम से हम भी धोखा खा गए कि ये अदा जी के दो दो ब्लाग कैसे ......??
कैर अच्छा लिखतीं हैं आप .....स्वागत है .....!!
बहुत ही सुन्दर रचना । अंतरमन मे ही परमेश्वर रह्ते हैं ।
क्या बात है...?????
दो दो काव्य-मंजूषा...!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
A beautiful effort from a person so beautiful at heart!! Keep posting and creating magic.....
आपकी कविता पढ़ने पर ऐसा लगा कि आप बहुत सूक्ष्मता से एक अलग धरातल पर चीज़ों को देखती हैं।
अंतरमन मे ही परमेश्वर रह्ते हैं
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