ना वजूद कुछ मेरा बचा , ना हस्ती रही तेरी
कुछ इस तरह से प्यार की, बस्ती में खो गए
गुलाबों सी नर्मिया, महसूस होती है कदमो तले
कि दो हाथ उठाते है, दुआ में मेरे लिए
ख्वाइश है युही शामिल, रह जाए तेरे अपनो में
फिर आकर तुझे सताए ,हर रात तेरे सपनों में
जी तो रहे थे अब तक, जिंदगी से अब मिले
बदनाम थे गलियों के ,अब नूर-ऐ-नजर हो चले
10 comments:
बहुत सुन्दर!
आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है-
http://charchamanch.blogspot.com/2010/01/blog-post_4590.html
बढ़िया रचना!
khoobsurat..
acchi lagi aapki racha..
बेहद उम्दा व गहरे भाव लगे आपके ।
बेहतरीन रचना शुभकामनायें
बहुत ही भावमय प्रस्तुति ।
ख्वाइश है युही शामिल, रह जाए तेरे अपनो में
फिर आकर तुझे सताए ,हर रात तेरे सपनों में
अच्छा खयाल , बढ़िया रचना
सुन्दर है. पढ के -"क्यूं ज़िन्दगी की राह में मजबूर हो गये, इतने हुए करीब कि हम दूर हो गये" की याद आ गई.
मोहतरमा 'रानी' साहिबा आदाब
आपके ब्लाग पर पहली बार आना हुआ है..
बहुत सुन्दर भाव है
इन्हें सही पैमाने में ढाल लिया जाये,
तो और खूबसूरत हो जायेंगे
शुभकामनाएं
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
क्या बात है , लाजवाब लिखा है आपने ।
Post a Comment