Saturday, February 6, 2010

निश्छल बचपन


कोमल यादें मीठे सपने , दादा दादी सारे आपने

गुड़ियाँ खिलोने गोटे की चुनर , सखी सहेली पनघट की डगर

गाँव की खबरे बस्ती का झमेल , आँख मिचोली का वो खैल

चाट पकोड़े की चटकार , मास्टरजी का डंडा माँ की फटकार

दादाजी दिलाते उन जलेबियों की मिठास , नानी के तोहफे खासम खास

हरी हरी गेहूं की बाली , बैरी और अमबियाँ से लदी पेड़ों की डाली

मन को रोज़ लुभाते चंदा मामा , दादी की कहानियों में कृष्ण सुदामा

ना फिक्र किसी की ना दुःख दुनिया का, छल कपट का कोई काम नहीं

फूलो से सुन्दर बचपन में बस मस्ती है आराम नहीं

जीवन के इस निश्छल स्वरूप का खुद परमेश्वर से नाता है

जिसके स्मरण मात्र से ही मन पुनर्जीवित हो जाता है

14 comments:

Udan Tashtari said...

जिसके स्मरण मात्र से ही मन पुनर्जीवित हो जाता है

-बिल्कुल सही कहा! उम्दा रचना!

Arvind Mishra said...

देवत्व लिए होता है बचपन -सुन्दर रचना !

M VERMA said...

बचपन और ग्रामीण परिवेश का मिलन --
वाह क्या कहने

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

फूलो से सुन्दर बचपन में बस मस्ती है आराम नहीं

जीवन के इस निश्छल स्वरूप का खुद परमेश्वर से नाता है

जिसके स्मरण मात्र से ही मन पुनर्जीवित हो जाता है,,,,



बहुत सुंदर पंक्तियाँ....



बचपन की यादों में चले गए....

निर्मला कपिला said...

जीवन के इस निश्छल स्वरूप का खुद परमेश्वर से नाता है

जिसके स्मरण मात्र से ही मन पुनर्जीवित हो जाता है
सही बात है शायद जीवन के यही पल अनमोल हैं । धन्यवादिस सुन्दर कविता के लिये

amritwani.com said...

yad aaya bachpan hame

पूनम श्रीवास्तव said...

फूलो से सुन्दर बचपन में बस मस्ती है आराम नहीं

जीवन के इस निश्छल स्वरूप का खुद परमेश्वर से नाता है

जिसके स्मरण मात्र से ही मन पुनर्जीवित हो जाता है
Ranee ji,
aapakee kavitaa ne to ek bar fir mujhe bachapan men pahuncha diya. bahut sundar kavita.
Poonam

Razi Shahab said...

ना फिक्र किसी की ना दुःख दुनिया का, छल कपट का कोई काम नहीं


फूलो से सुन्दर बचपन में बस मस्ती है आराम नहीं

bahut khoob

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

अरे ! आज आपने कुछ नहीं लिखा ? क्यूँ? तबियत तो ठीक है ना आपकी ? नही तो यहाँ सुबह सुबह आपकी पोस्ट ज़रूर आ जाती है.....

rdeep.g123 said...

ऐसा ही कुछ मैंने भी २४ दिसंबर को अपने ब्लॉग पर लिखा था ....
" वो नादाँ बचपन आवारा था
मगर फिर भी कितना प्यारा था ... "
सच बचपन की यादें हैं ही इतनी खूबसूरत ....

स्वप्न मञ्जूषा said...

aaya hai mujhe fir yaad wo zaalim
guzra zamaana bachpan kaa..

bahut khoobsurat hai ..sab kuch..!!

mukti said...

बचपन की यादों का पिटारा है आपकी यह कविता. बधाई!!

Dev said...

वाह!! बचपन के दौर मई पहुंचा दिया आपने इस रचना के द्वारा ...

संजय भास्‍कर said...

bahut khoobsurat hai