कोमल यादें मीठे सपने , दादा दादी सारे आपने
गुड़ियाँ खिलोने गोटे की चुनर , सखी सहेली पनघट की डगर
गाँव की खबरे बस्ती का झमेल , आँख मिचोली का वो खैल
चाट पकोड़े की चटकार , मास्टरजी का डंडा माँ की फटकार
दादाजी दिलाते उन जलेबियों की मिठास , नानी के तोहफे खासम खास
हरी हरी गेहूं की बाली , बैरी और अमबियाँ से लदी पेड़ों की डाली
मन को रोज़ लुभाते चंदा मामा , दादी की कहानियों में कृष्ण सुदामा
ना फिक्र किसी की ना दुःख दुनिया का, छल कपट का कोई काम नहीं
फूलो से सुन्दर बचपन में बस मस्ती है आराम नहीं
जीवन के इस निश्छल स्वरूप का खुद परमेश्वर से नाता है
जिसके स्मरण मात्र से ही मन पुनर्जीवित हो जाता है
14 comments:
जिसके स्मरण मात्र से ही मन पुनर्जीवित हो जाता है
-बिल्कुल सही कहा! उम्दा रचना!
देवत्व लिए होता है बचपन -सुन्दर रचना !
बचपन और ग्रामीण परिवेश का मिलन --
वाह क्या कहने
फूलो से सुन्दर बचपन में बस मस्ती है आराम नहीं
जीवन के इस निश्छल स्वरूप का खुद परमेश्वर से नाता है
जिसके स्मरण मात्र से ही मन पुनर्जीवित हो जाता है,,,,
बहुत सुंदर पंक्तियाँ....
बचपन की यादों में चले गए....
जीवन के इस निश्छल स्वरूप का खुद परमेश्वर से नाता है
जिसके स्मरण मात्र से ही मन पुनर्जीवित हो जाता है
सही बात है शायद जीवन के यही पल अनमोल हैं । धन्यवादिस सुन्दर कविता के लिये
yad aaya bachpan hame
फूलो से सुन्दर बचपन में बस मस्ती है आराम नहीं
जीवन के इस निश्छल स्वरूप का खुद परमेश्वर से नाता है
जिसके स्मरण मात्र से ही मन पुनर्जीवित हो जाता है
Ranee ji,
aapakee kavitaa ne to ek bar fir mujhe bachapan men pahuncha diya. bahut sundar kavita.
Poonam
ना फिक्र किसी की ना दुःख दुनिया का, छल कपट का कोई काम नहीं
फूलो से सुन्दर बचपन में बस मस्ती है आराम नहीं
bahut khoob
अरे ! आज आपने कुछ नहीं लिखा ? क्यूँ? तबियत तो ठीक है ना आपकी ? नही तो यहाँ सुबह सुबह आपकी पोस्ट ज़रूर आ जाती है.....
ऐसा ही कुछ मैंने भी २४ दिसंबर को अपने ब्लॉग पर लिखा था ....
" वो नादाँ बचपन आवारा था
मगर फिर भी कितना प्यारा था ... "
सच बचपन की यादें हैं ही इतनी खूबसूरत ....
aaya hai mujhe fir yaad wo zaalim
guzra zamaana bachpan kaa..
bahut khoobsurat hai ..sab kuch..!!
बचपन की यादों का पिटारा है आपकी यह कविता. बधाई!!
वाह!! बचपन के दौर मई पहुंचा दिया आपने इस रचना के द्वारा ...
bahut khoobsurat hai
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